बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक व्यक्ति को लंबे वक्त तक हिरासत में रखने के मामले में सख्त रुख अपनाते हुए मुआवजे की रकम जिलाधिकारी की सैलरी से वसूलने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने राज्य सरकार से कहा कि वो 2 लाख रुपये का मुआवजा दे, जिसे डीएम की सैलरी से वसूला जाए.
DM के आदेश पर युवक को हुई जेल, कोर्ट ने कहा- 'सैलरी से मुआवजा वसूले सरकार'
देवीदास सपकाले की ओर से पेश हुए वकील हर्षल रणधीर ने कोर्ट को बताया कि यह आदेश जुलाई 2024 में दिया गया था, लेकिन इसका पालन 11 महीने बाद, मई 2025 तक नहीं हुआ. जब सपकाले को अन्य मामले में जमानत मिली तो पुलिस ने उसे इस आदेश का हवाला देते हुए जेल से निकलते ही फिर से पकड़ लिया.
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20 साल के इस युवक का आपराधिक रिकॉर्ड रहा है. उस पर हत्या के प्रयास का भी केस दर्ज है. इसी मामले में वो पहले से जेल में बंद था. बाद में DM आयुष प्रसाद ने उसे महाराष्ट्र प्रिवेंशन ऑफ डेंजरस एक्टिविटीज (MPDA) के तहत हिरासत में लेने का आदेश दिया था. इस हिरासत को लेकर बॉम्बे हाई कोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने कहा, ‘किसी को बिना वजह जेल में बंद रखना संविधान के खिलाफ है. इसलिए अब उस मजदूर को 2 लाख मुआवजे के तौर पर दिए जाएं. इसके पैसे सीधे उन्हीं जिलाधिकारी के वेतन से वसूल किए जाएं.’
इंडिया टुडे से जुड़ीं विद्या की रिपोर्ट के मुताबिक, मामला महाराष्ट्र के जलगांव का है. वहां के रहने वाले 20 साल के दीक्षांत उर्फ दादू देवीदास सपकाले को हिरासत में लिया गया था. उसे जुलाई 2024 में DM ने MPDA के तहत हिरासत में लेने का आदेश दिया था. लेकिन वह पहले से ही MIDC पुलिस स्टेशन के एक केस में न्यायिक हिरासत में था. उसे बेल मिलने वाली थी, लेकिन नए आदेश के तहत उसे फिर हिरासत में लिया गया.
देवीदास सपकाले की ओर से पेश हुए वकील हर्षल रणधीर ने कोर्ट को बताया कि यह आदेश जुलाई 2024 में दिया गया था, लेकिन इसका पालन 11 महीने बाद, मई 2025 तक नहीं हुआ. जब सपकाले को अन्य मामले में जमानत मिली तो पुलिस ने उसे इस आदेश का हवाला देते हुए जेल से निकलते ही फिर से पकड़ लिया.
इसी को लेकर न्यायमूर्ति विभा कंकनवाड़ी और हितेन एस वेनेगावकर की बेंच ने कहा कि प्रिवेंटिव डिटेंशन एक बड़ा कदम है. यह किसी की आजादी पर चोट करने जैसा है. कोर्ट ने आगे कहा कि अधिकारियों का आचरण और भी गंभीर है. उन्होंने हिरासत के आदेश को ठंडे बस्ते में डाल दिया. कोर्ट ने कहा कि जानबूझकर की गई इस देरी पर कोर्ट में कोई उचित स्पष्टीकरण नहीं दिया गया.
रिपोर्ट के मुताबिक सपकाले के कस्टडी ऑर्डर में साल 2023 के एक केस का जिक्र था, जिसका उससे कोई लेना-देना ही नहीं था. बाद में अधिकारियों ने सफाई दी कि वो ‘टाइपिंग मिस्टेक’ थी. इस पर कोर्ट ने कहा कि जब बात किसी की आजादी की हो तो ‘टाइपिंग मिस्टेक’ जैसी दलीलें बर्दाश्त नहीं की जा सकतीं.
इसके अलावा कोर्ट ने यह भी पाया कि सपकाले एक मराठी मीडियम का छात्र था. उसे जरूरी डॉक्यूमेंट का मराठी में ट्रांसलेशन नहीं दिया गया. इससे उसका अपना पक्ष रखने का अधिकार खत्म हो गया. हालांकि डीएम ने अपना पक्ष रखते हुए बताया कि युवक को मराठी में डॉक्यूमेंट मुहैया कराए गए थे.
लेकिन कोर्ट ने पुलिस-प्रशासन के इस रवैये को ‘शक्ति का गलत इस्तेमाल’ बताया और आदेश दिया कि मजदूर को 2 लाख रुपये का मुआवजा दिया जाए, जिसकी रकम सीधे DM के वेतन से वसूली जाएगी.
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