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इस्तीफे के बाद 90 दिन का नोटिस पीरियड, बैंक मैनेजर ने काम से तंग आकर ऑफिस में ही जान दे दी

मैनेजर ने कुछ दिनों पहले अपने पद से इस्तीफा दे दिया था. लेकिन बैंक ने 90 दिनों के नोटिस पीरियड का हवाला देते हुए उन्हें तत्काल ही काम से मुक्त नहीं किया.

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पुलिस मामले की जांच कर रही है. (फाइल फोटो: सोशल मीडिया)

महाराष्ट्र (Maharashtra) के बारामती (Baramati) में बैंक ऑफ बड़ौदा के चीफ मैनेजर ने बैंक में ही अपनी जान दे दी है. मृतक का नाम शिवशंकर मित्रा है. घटना से पहले उन्होंने बैंक में ही बैठकर एक चिट्ठी लिखी थी. इसके जरिए उन्होंने बताया कि वो काम के दबाव से तंग आकर ये फैसला ले रहे हैं. घटना की जानकारी मिलते ही बारामती पुलिस मौके पर पहुंची थी. उन्होंने शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजा. 

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मामला 17 जुलाई की रात का है. इलाके में इस तरह की पहली घटना हुई है. इसके कारण लोगों में इसकी चर्चा है. 52 साल के मैनेजर उत्तर प्रदेश के प्रयागराज के रहने वाले थे. 

90 दिनों का नोटिस पीरियड…

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, उन्होंने 11 जुलाई को अपने पद से इस्तीफा दे दिया था. बारामती सिटी पुलिस स्टेशन के पुलिस इंस्पेक्टर विलास नाले ने बताया कि मैनेजर ने स्वास्थ्य और काम के दबाव को इस्तीफे का कारण बताया था. लेकिन बैंक ने 90 दिनों के नोटिस पीरियड का हवाला देते हुए उन्हें तत्काल ही काम से मुक्त नहीं किया. पुलिस का कहना है,

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मैनेजर ने किसी भी बैंक अधिकारी को दोषी नहीं ठहराया है. उन्होंने काम के दबाव की बात की है.

उन्होंने आगे कहा कि इस मामले को लेकर अन्य संभावित कारणों की भी जांच की जाएगी.

'प्रिया, मुझे माफ कर दो'

मैनेजर ने लेटर में ये आग्रह किया कि बैंक अपने कर्मचारियों पर भारी दबाव न डाले. उन्होंने कहा कि हर कोई अपनी जिम्मेदारियों के प्रति पूरी तरह जागरूक है और अपना 100 प्रतिशत योगदान देता है. उन्होंने अपनी पत्नी प्रिया से अपने इस फैसले के लिए माफी मांगी. शिवशंकर मित्रा ने इच्छा जताई कि अगर संभव हो तो उनकी आंखें दान कर दी जाएं.

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बारामती पुलिस आगे की जांच कर रही है. इस बात का पता लगाया जा रहा है कि मृतक पर काम का अतिरिक्त दबाव डाला गया था या नहीं.

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(अगर आप या आपके किसी परिचित को खुद को नुकसान पहुंचाने वाले विचार आ रहे हैं तो आप इस लिंक में दिए गए हेल्पलाइन नंबरों पर फोन कर सकते हैं. यहां आपको उचित सहायता मिलेगी. मानसिक रूप से अस्वस्थ महसूस होने पर डॉक्टर के पास जाना उतना ही जरूरी है जितना शारीरिक बीमारी का इलाज कराना. खुद को नुकसान पहुंचाना किसी भी समस्या का समाधान नहीं है.)

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