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छुट्टी में अदालत लगाएंगे CJI, अरावली पर अपने ही फैसले पर घिरी सुप्रीम कोर्ट में होगी सुनवाई

Supreme Court की केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (CEC) ने कहा था कि राजस्थान की 164 खदानों के नवीनीकरण या विस्तार की मंजूरी नहीं दी जानी चाहिए. लेकिन 20 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने अरावली की परिभाषा ही बदल दी.

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अरावली पहाड़ियों की नई परिभाषा को लेकर देश भर में बवाल है. (फाइल फोटो: इंडिया टुडे)

अरावली पहाड़ियों की नई परिभाषा को लेकर देश भर में बवाल है (Aravalli Hills Controversy). अब इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया है. CJI सूर्यकांत की वेकेशन बेंच सोमवार, 29 दिसंबर को इस मामले पर सुनवाई करेगी. इस बेंच में जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह भी शामिल होंगे. कोर्ट केंद्र और राज्य सरकारों को नए निर्देश जारी कर सकती है. 

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क्या है विवाद?

14 अक्टूबर को केंद्र सरकार के पर्यावरण मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट में अरावली पहाड़ियों को लेकर एक नई परिभाषा रखने का प्रस्ताव दिया. इसमें कहा गया कि अरावली की सीमा 100 मीटर मानी जाए. 20 नवंबर को कोर्ट ने इस प्रस्ताव को मंजूर कर लिया. 

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद से देश भर में विवाद पैदा हुआ. पर्यावरण की चिंता करने वाले लोगों को यह डर सताने लगा कि नई परिभाषा से इस प्राचीन पर्वतमाला के संरक्षण का शिकंजा ढीला पड़ जाएगा. खनन और अवैध कब्जे की ऐसी लहर उठेगी कि इलाके की पूरी पारिस्थितिकी (Ecosystem) तबाह कर देगी. 

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‘पुराना नियम ही माना जाए’

कुछ दिनों पहले ऐसी ही चिंता सुप्रीम कोर्ट की केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (सीईसी) ने भी जताई थी. सीईसी वही संस्था है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने साल 2002 में पर्यावरण और जंगलों से जुड़े अपने आदेशों पर नजर रखने के लिए बनाया था. 

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, 15 अक्टूबर को सीईसी ने कोर्ट के ‘न्यायमित्र’ (एमिकस क्यूरी) को चिट्ठी लिखी. समिति ने साफ कहा कि अरावली पहाड़ियों को बचाने के लिए भारतीय वन सर्वेक्षण (FSI) का पुराना नियम ही माना जाए, जिसमें 3 डिग्री से ज्यादा ढलान वाली जमीन को पहाड़ी माना जाता है. इससे अरावली की प्रकृति और पर्यावरण सुरक्षित रहेंगे.

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164 खदानों को मिलेगी मंजूरी?

करीब तीन हफ्ते बाद, 7 नवंबर को सीईसी ने फिर अपनी बात दोहराई. समिति ने कहा कि राजस्थान की 164 खदानों के नवीनीकरण या विस्तार की मंजूरी तब तक नहीं दी जानी चाहिए, जब तक सुप्रीम कोर्ट अरावली पहाड़ियों की आखिरी परिभाषा तय नहीं कर देता. 

सीईसी ने कोर्ट को बताया कि ये खदानें या तो पूरी तरह अरावली क्षेत्र में हैं या उनका बड़ा हिस्सा अरावली पहाड़ियों के अंदर आता है. अब यहां एक बात और गौर करने वाली है कि ज्यादातर खदानें 100 मीटर से कम ऊंचाई पर है. ऐसा इसलिए क्योंकि राज्य ने 2006 से खनन लाइसेंस जारी करने के लिए 100 मीटर की ऊंचाई की सीमा निर्धारित की है.

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राजस्थान वन विभाग के एक सीनियर अधिकारी ने बताया कि ऐसे में अगर अरावली पहाड़ियों की 100 मीटर वाली परिभाषा तय होती है तो ये खदानें अपने आप अरावली क्षेत्र से बाहर हो जाएंगी. सरल शब्दों में कहें तो नई परिभाषा तय होने के बाद इन्हें खनन की मंजूरी स्वत: मिल जाएगी.

सुप्रीम कोर्ट ने अभी तक राजस्थान की अरावली पहाड़ियों में फैले 76 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र के 164 खनन पट्टों के नवीनीकरण या विस्तार पर कोई फैसला नहीं दिया है. लेकिन 20 नवंबर के फैसले के बाद बाद इन खनन पट्टों को सीधा फायदा मिल सकता है.

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