बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay HC) ने 2012 में सांगली (Sangli) में एक महिला के गैंगरेप और हत्या के मामले में तीन लोगों की सजा और उम्रकैद को रद्द कर दिया है. तीनों लोगों को बरी करते हुए, हाईकोर्ट ने कहा कि प्रॉसिक्यूशन अपराध के मकसद और उस समय की परिस्थितियों की कड़ी को साबित करने में नाकाम रहा. जस्टिस सुमन श्याम और जस्टिस श्याम सी चंदक की बेंच ने 24 दिसंबर को तीन लोगों की अपील पर फैसला सुनाया. इन लोगों ने सांगली की सेशंस कोर्ट द्वारा जुलाई 2019 में सुनाए गए फैसले को चुनौती दी थी. सेशंस कोर्ट के फैसले में उन्हें भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 302 (हत्या), 376 (2) (g) (सांप्रदायिक या धार्मिक हिंसा के दौरान बलात्कार), 201 (सबूत मिटाना) और 34 (कई लोगों द्वारा एक ही इरादे से किए गए काम) के तहत दोषी पाया गया था. अपील करने वालों को प्राकृतिक मृत्यु तक आजीवन कठोर कारावास की सजा सुनाई गई थी.
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तीनों लोगों को बरी करते हुए, Bombay High Court ने कहा कि प्रॉसिक्यूशन अपराध के मकसद और उस समय की परिस्थितियों की कड़ी को साबित करने में नाकाम रहा. हाईकोर्ट ने जांच को लेकर कहा कि ये कहीं से भी अपराध का मकसद साबित नहीं कर पा रही.
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प्रॉसिक्यूशन के केस के मुताबिक, अक्टूबर 2012 में जब पीड़िता की लाश मिली, तब वो सड़ चुकी थी. लाश के के हाथ बंधे हुए थे. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में पता चला कि गला दबाने की वजह से मौत हुई है. यह भी पता चला कि पीड़िता के वजाइना में चोट के निशान थे. प्रॉसिक्यूशन के अनुसार, 19 साल की पीड़िता 12 अक्टूबर को कपड़े की दुकान के लिए घर से निकली थी. लेकिन फिर वह लापता हो गई. पीड़िता उसी कपड़े की दुकान पर काम करती थी.
जांच में पता चला था कि पीड़िता का मुख्य आरोपी के साथ संबंध थे. वह कथित तौर पर उस पर शादी करने का दबाव भी डाल रही थी, लेकिन उसके पिता को मुख्य आरोपी के साथ उसकी दोस्ती पसंद नहीं थी. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक प्रॉसिक्यूशन ने दावा किया कि आरोपी उसे एक जगह ले गया, जहां उसने कथित तौर पर उसे शराब पीने के लिए मजबूर किया. इसके बाद उसके साथ गैंगरेप किया गया और गला घोंटकर उसकी हत्या कर उसकी लाश कुएं में फेंक दी. हालांकि हाईकोर्ट ने जांच को लेकर कहा कि ये कहीं से भी अपराध का मकसद साबित नहीं कर पा रही. कोर्ट ने कहा,
रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों की सावधानीपूर्वक जांच करने कानून के सिद्धांतों की रोशनी में दोबारा मूल्यांकन करने पर, हम इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि प्रॉसिक्यूशन अपराध के पीछे के मकसद और बताई गई थ्योरी को साबित नहीं कर पाया.
साथ ही वो परिस्थितियों की कड़ी को साबित करने में भी नाकाम रहा, जिससे यह साबित हो सके कि याचिकाकर्ताओं के अलावा किसी और व्यक्ति ने पीड़िता के साथ रेप नहीं किया. या किसी और ने उसकी हत्या नहीं की और सबूतों को गायब नहीं किया.
कोर्ट ने आगे कहा कि डिफेंस द्वारा बताए गए हालात की संभावना या पक्के सबूतों को लेकर एक वाजिब शक बना हुआ है. कोर्ट के मुताबिक रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों से पता चली कि इस मामले में पुलिस द्वारा गवाहों को प्लांट करके अभियोजन पक्ष की कहानी को स्टेज मैनेज करने की संभावना से भी है. लिहाजा हाईकोर्ट ने अपीलें मंजूर करते हुए ‘शक का फायदा’ अपील करने वालों को दिया और उनकी अपील मंजूर कल ली.
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