इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार और पुलिस महानिदेशक (DGP) को बड़ा निर्देश दिया है. कोर्ट ने कहा कि पुलिस रिकॉर्ड और जांच से जुड़े कागजों में जाति का जिक्र नहीं किया जाना चाहिए. इसके अलावा कोर्ट ने गाड़ियों पर जातिसूचक स्लोगन और स्टिकर लगाने पर भी रोक लगाने की बात कही. कोर्ट ने साफ कहा कि पुलिस मैनुअल में बदलाव करके जाति कॉलम हटा दिया जाए.
'पुलिसवाले किसी की जाति ना लिखें,' HC ने UP सरकार और DGP को पुलिस मैनुअल बदलने का निर्देश दिया
Caste Mention Ban: एक केस की सुनवाई के दौरान Allahabad High Court ने देखा कि जांच अधिकारी ने आरोपी की जाति लिखी है. इसके बाद कोर्ट ने DGP से पूछा कि जांच में जाति लिखने की क्या जरूरत है.


जस्टिस विनोद दिवाकर ने कहा कि थानों के नोटिस बोर्ड से भी जाति कॉलम हटाया जाए. हालांकि, कोर्ट ने साफ किया किया कि जहां कानूनन जरूरी है- जैसे SC/ST एक्ट के मामलों में, वहीं जाति का जिक्र हो सकेगा. हाई कोर्ट ने कहा,
"जाति या जनजाति की जरूरत से जुड़े पैराग्राफ और कॉलम में एंट्री हटा दी जाएंगी, जबकि पुलिस महानिदेशक (DGP), यूपी के दायर जवाबी हलफनामे के साथ संलग्न सभी बताए गए फॉर्मेट में पिता और पति के नाम के साथ माता का नाम जोड़ा जाएगा."
कोर्ट ने आगे कहा,
"ये सारे निर्देश उत्तर प्रदेश की सीमा में लागू होंगे. केंद्र सरकार के लिए ये वैकल्पिक हैं, क्योंकि वो इस अदालत में नहीं आई थी."
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, इलाहाबाद हाई कोर्ट के सिंगल जज ने इस मुद्दे पर सुनवाई उस समय की, जब उनके सामने शराब की अवैध ढुलाई और कब्जे के मामले में एक आरोपी की याचिका आई थी. इसमें मुकदमा रद्द करने की मांग की गई थी. कोर्ट ने देखा कि जांच अधिकारी ने आरोपी की जाति लिखी है. इसके बाद कोर्ट ने DGP से पूछा कि जांच में जाति लिखने की क्या जरूरत है.
DGP ने तर्क दिया कि जाति लिखने से आरोपी की पहचान में मदद मिलती है. इस पर कोर्ट ने कड़ी आपत्ति जताई और कहा,
"21वीं सदी में भी पुलिस पहचान के लिए जाति पर निर्भर है. यह दुर्भाग्यपूर्ण है. खासतौर पर तब, जब पहचान के लिए आधुनिक साधन जैसे बॉडी कैमरा, मोबाइल कैमरा, फिंगरप्रिंट, आधार कार्ड, मोबाइल नंबर और माता-पिता (मां और पिता दोनों) के नाम मौजूद हैं."
कोर्ट ने कहा कि भारत में जाति केवल भेदभाव का मामला नहीं है, बल्कि यह पहचान और पावर दिखाने का एक अहम तरीका भी है. कोर्ट ने पुलिस की उस दलील से सहमति नहीं जताई कि आरोपी की पहचान जाति के आधार पर करने से किसी तरह का कंफ्यूजन नहीं रहता.
कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर किसी आरोपी की जाति बिना कानूनी वजह के लिखी या बताई जाए, तो यह पहचान के आधार पर प्रोफाइलिंग माना जाएगा. कोर्ट के मुताबिक, इससे पूर्वाग्रह बढ़ते हैं, जनता की सोच प्रभावित होती है, न्यायिक सोच पर असर पड़ता है, मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है और संवैधानिक नैतिकता कमजोर होती है.
कोर्ट ने कार-बाइक और यहां तक कि घरों पर भी जातिसूचक पहचान लगाने के चलन पर नाराजगी जताई. कोर्ट ने कहा,
"भारत के उत्तरी हिस्से- उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान जैसे राज्यों और मध्य प्रदेश और बिहार के कुछ हिस्सों में लोग आमतौर पर अपनी कार, बाइक और कभी-कभी घर पर जाति के चिन्ह लगाते हैं."
जस्टिस विनोद दिवाकर ने यह भी कहा कि केंद्रीय मोटर वाहन नियम (CMVR) में बदलाव किया जाए ताकि सभी प्राइवेट और पब्लिक गाड़ियों पर जाति आधारित स्लोगन और जाति बताने वाले स्टिकर पूरी तरह से प्रतिबंधित किए जाएं. साथ ही ऐसे चिन्ह हटाने और गाड़ियों के मालिकों पर जुर्माना लगाने के लिए भी कहा गया.
सोशल मीडिया पर जाति आधारित वीडियो और रील्स पर भी कोर्ट ने चिंता जताई. कोर्ट ने कहा कि IT नियमों को मजबूत करके ऐसे कॉन्टेंट पर कार्रवाई की जानी चाहिए.कोर्ट ने आदेश दिया कि जातिसूचक बोर्ड या बैनर तुरंत हटाए जाएं और दोबारा ना लगें. कोर्ट ने यूपी के मुख्य सचिव को आदेश की कॉपी मुख्यमंत्री तक भेजने को भी कहा.
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