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अजमेर दरगाह के बाद 'अढ़ाई दिन का झोपड़ा' मस्जिद के सर्वे की मांग, ASI और हिंदू पक्ष के दावे क्या हैं?

Ajmer Sharif Dargah से थोड़ी दूरी पर स्थित 'अढ़ाई दिन का झोपड़ा' मस्जिद के ASI सर्वे की मांग उठी है. इससे पहले दरगाह को लेकर भी विवाद रहा है. कुछ दिनों पहले ही अजमेर कोर्ट ने दरगाह को लेकर नोटस जारी किया था.

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'अढ़ाई दिन का झोपड़ा' मस्जिद. (फाइल फोटो: इंडिया टुडे)

राजस्थान के अजमेर स्थित ‘अढ़ाई दिन का झोपड़ा’ (Adhai Din Ka Jhonpra) मस्जिद के सर्वे की मांग की गई है. इस मस्जिद को ऐतिहासिक माना जाता है और देश की सबसे पुरानी मस्जिदों में से एक कहा जाता है. इससे पहले ही अजमेर शरीफ दरगाह को लेकर भी ऐसी ही मांग उठी थी. इसके बाद अजमेर कोर्ट ने दरगाह के सर्वे वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए 27 नवंबर को नोटिस जारी किया था. ‘अढ़ाई दिन का झोपड़ा’, दरगाह से 5 मिनट की पैदल दूरी पर है. ये भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा संरक्षित स्मारक है.

इंडियन एक्सप्रेस से जुड़े हमजा खान की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अब अजमेर के डिप्टी मेयर नीरज जैन ने ‘अढ़ाई दिन का झोपड़ा’ को लेकर बयान जारी किया है. उन्होंने दावा किया है कि इस मस्जिद में संस्कृत कॉलेज और मंदिर होने के सबूत हैं. उन्होंने कहा कि इसे आक्रमणकारियों ने उसी तरह ध्वस्त कर दिया, जिस तरह उन्होंने नालंदा और तक्षशिला जैसे ऐतिहासिक शिक्षा स्थलों को ध्वस्त किया था. जैन के अनुसार, मस्जिद पर हमला कर के संस्कृति, सभ्यता और शिक्षा पर हमला हुआ. 

जैन ने दावा किया कि ASI के पास इस जगह से मिली 250 से ज्यादा मूर्तियां हैं. और इस जगह पर स्वस्तिक, घंटियां और संस्कृत के श्लोक लिखे हैं. उन्होंने आगे कहा कि ये मूल रूप से 1,000 साल से ज्यादा पुराना है. और इसका जिक्र ऐतिहासिक किताबों में भी किया गया है. जैन ने पहले भी इस तरह की मांग की थी कि इस जगह पर मौजूदा धार्मिक गतिविधियों को रोका जाना चाहिए. और ASI को कॉलेज के पुराने गौरव को वापस लौटाना सुनिश्चित करना चाहिए.

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ASI के मुताबिक, इस बात कि संभावना है कि यहां ढाई दिनों का मेला (उर्स) लगता था. इसी कारण से इसका नाम ‘अढ़ाई दिन का झोपड़ा’ पड़ा. इसका जिक्र हरविलास शारदा की किताब Ajmer: Historic and Descriptive में भी मिलता है. 1911 में वो लिखते हैं,

“ये नाम 18वीं शताब्दी के अंतिम सालों में आया. जब फकीर अपने धार्मिक नेता पंजाब शाह की मृत्यु की ढाई दिनों की उर्स वर्षगांठ मनाने के लिए यहां इकट्ठा होने लगे. शाह पंजाब से अजमेर चले गए थे.”

सारदा के अनुसार, सेठ वीरमदेव काला ने 660 ई. में जैन त्योहार ‘पंच कल्याण महोत्सव’ के उपलक्ष्य में एक जैन मंदिर बनवाया था. सारदा ने लिखा,

“चूंकि अजमेर में जैन पुरोहित वर्ग के रहने के लिए कोई जगह नहीं थी, इसलिए ये मंदिर बनवाया गया. बाद में यहां की संरचनाओं को 1192 में मुहम्मद गौरी के नेतृत्व में गोर के अफगानों ने कथित तौर पर नष्ट कर दिया था और संरचना को मस्जिद में बदल दिया गया था.”

जबकि ASI इस मस्जिद के बारे मानती है, 

"इसका निर्माण कुतुबुद्दीन ऐबक ने लगभग 1200 ई. में शुरू किया था, जिसमें स्तंभों में नक्काशीदार खंभे इस्तेमाल किए गए थे. स्तंभों वाला (प्रार्थना) कक्ष नौ अष्टकोणीय (8 कोणों वाले डिब्बों में विभाजित) है. और केंद्रीय मेहराब के ऊपर पर दो छोटी मीनारें हैं. (मेहराब, दरवाजे के ऊपर का हिस्सा होता है) कुफिक और तुगरा शिलालेखों से उकेरी गई तीन केंद्रीय मेहराबें इसे एक शानदार वास्तुशिल्प देती हैं."

इससे पहले मई महीने में राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष वासुदेव देवनानी ने भी ऐसी ही मांग की थी. देवनानी अजमेर उत्तर सीट से विधायक हैं. उन्होंने कुछ जैन मुनियों के दावे के आधार पर इस जगह पर ASI के सर्वेक्षण की मांग की थी. उन्होंने विश्व हिंदू परिषद के सदस्यों के साथ इस जगह कके दौरे किए थे. उन्होंने भी दावा किया था कि इस यहां कभी एक संस्कृत विद्यालय और एक मंदिर हुआ करता था.

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