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पड़ताल: क्या संविधान का 'आर्टिकल 30A' स्कूल-कॉलेज में गीता, पुराण, वेद पढ़ाने से रोकता है

दावा है कि 'आर्टिकल 30' के तहत कुरान और हदीस पढ़ाई जा सकती है.

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आर्टिकल 30 और 30A के बारे में वायरल हो रहे मेसेज का सच आखिर है क्या?

दावा

सोशल मीडिया पर संविधान के दो अनुच्छेदों को लेकर एक दावा वायरल हो रहा है. इसमें धर्म के आधार पर भेदभाव का दावा किया जा रहा है.
एक फ़ेसबुक यूजर ने पोस्ट
(आर्काइव लिंक)
किया,
"आर्टिकल 30" मदरसों में कुरान, हदीस पढ़ाई जायेंगी ।
"आर्टिकल 30A" स्कूलों या गुरुकुलों में भगवद्गीता , वेद , पुराण , ग्रंथ नहीं पढ़ाई जाएंगे ।
क्या यही है "भारत" की धार्मिक स्वतंत्रता।
इसमें बदलाव जरूरी है।
"आर्टिकल 30" मदरसों में कुरान, हदीस पढ़ाई जायेंगी । "आर्टिकल 30A" स्कूलों या गुरुकुलों में भगवद्गीता , वेद , पुराण , ग्रंथ नहीं पढ़ाई जाएंगे । क्या यही है "भारत" की धार्मिक स्वतंत्रता। इसमें बदलाव जरूरी है।
Posted by Dinesh Pratap Singh Chauhan
on Tuesday, 5 May 2020
ये दावा और भी कई सोशल मीडिया यूजर्स
ने किया है.

पड़ताल

‘दी लल्लनटॉप’ ने इस वायरल दावे की पड़ताल की. हमारी पड़ताल में ये दावा भ्रामक निकला.
हमने इस पड़ताल के लिए भारत का संविधान
 पढ़ा. संविधान का ‘भाग-3’ देश के नागरिकों को मिले मौलिक अधिकारों के बारे में बात करता है. इस भाग में आर्टिकल 12 से 35 तक शामिल हैं.

हमने ध्यान से देखा तो पाया कि संविधान में ‘30A’ नाम से कोई आर्टिकल है ही नहीं. जहां तक आर्टिकल 30 की बात है, ये आर्टिकल अल्पसंख्यकों को शिक्षण संस्थानों की स्थापना और उनको चलाने के अधिकार के बारे में है.
भारत के संविधान का अनुच्छेद 30.
भारत के संविधान का अनुच्छेद 30.


आर्टिकल 30(1) में लिखा है,
भाषा या धर्म के आधार पर जो भी अल्पसंख्यक हैं, उन्हें अपनी मान्यता के शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और उन्हें चलाने का अधिकार होगा.
आर्टिकल 30(1A) में लिखा है,
यदि किसी अल्पसंख्यक समुदाय के द्वारा स्थापित और संचालित शिक्षण संस्थान का अधिग्रहण राज्य द्वारा ज़रूरी हो जाता है, ऐसी स्थिति में राज्य, अधिग्रहण के एवज में देने वाला मुआवजा ऐसे तय करेगी कि अल्पसंख्यकों को मिले अधिकार में रत्ती भर का भी फ़र्क न आए.
आर्टिकल 30(2) में दर्ज है,
शैक्षणिक संस्थाओं को सहायता देने के दौरान, राज्य किसी भी संस्थान के साथ इस आधार पर भेदभाव नहीं करेगा कि वो धर्म या भाषा पर आधारित किसी अल्पसंख्यक वर्ग के अधीन संचालित किया जाता है.
27 जनवरी, 2014 के भारत के राजपत्र
के मुताबिक़, मुस्लिम, सिख, ईसाई, पारसी, बौद्ध और जैन धर्म के लोगों को अल्पसंख्यक समुदाय का दर्जा मिला है.

इससे स्पष्ट है कि भारत के संविधान में आर्टिकल 30(A) जैसी कोई चीज नहीं है. आर्टिकल 30 देश के अल्पसंख्यकों को अपने शिक्षण संस्थान बनाने और उनको चलाने का अधिकार देता है. संविधान में कहीं भी किसी धार्मिक ग्रंथ का नाम नहीं लिखा है. इसलिए कुरान, हदीस पढ़ाने और गीता, वेद पुराण, ग्रंथ न पढ़ाने का दावा सरासर ग़लत है.
आप भारत का पूरा संविधान नीचे बॉक्स में पढ़ सकते हैं. ये प्रति भारत सरकार के विधि एवं न्याय मंत्रालय की वेबसाइट
से ली गई है.

भारत का संविधान 'पंथनिरपेक्षता' की बात करता है. अर्थात, भारतीय राज्य का अपना कोई धर्म नहीं होगा, वो सभी धर्मों के साथ समान व्यवहार करेगा.

नतीजा

जिस आर्टिकल 30A के नाम से स्कूलों में भगवदगीता, पुराण, वेद, ग्रंथ पढ़ाने पर रोक होने का दावा किया जा रहा है, ऐसा कोई आर्टिकल भारत के संविधान में नहीं है. आर्टिकल 30 में अल्पसंख्यकों को अपना शिक्षण संस्थान स्थापित करने और उन्हें चलाने का अधिकार दिया गया है. इसमें कुरान या हदीस को लेकर कुछ नहीं लिखा गया है.

अगर आपको भी किसी ख़बर पर शक है
तो हमें मेल करें- padtaalmail@gmail.com
पर.

हम दावे की पड़ताल करेंगे और आप तक सच पहुंचाएंगे.

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