हर क्लास की पहचान दो टाइप के बच्चों से होती है – फ्रंटबेंचर और बैकबेंचर. ये दोनों टाइप के बच्चे ही रिस्क लेते हैं. बीच में बैठने वाले सेफ खेलना चाहते हैं. यही वजह है कि क्लास में बेचारों की पहचान नहीं बन पाती. ‘श्रीकांत’ फिल्म भी बीच में बैठने वाले बच्चे की ही तरह है. मेनस्ट्रीम हिंदी सिनेमा की बायोपिक्स में एक टेम्पलेट बन गया है. उसी टेम्पलेट में ‘श्रीकांत’ को भी फिट कर के परोसने की कोशिश हुई है. फिल्म अपने नायक के इर्द-गिर्द हवा बनाने की कोशिश करती है. उसे वन लाइनर्स देती है, बस उन वन लाइनर्स के आगे-पीछे डायलॉग नहीं मिलते. फिल्म पर ज्यादा जानकारी के लिए देखें वीडियो-
श्रीकांत मूवी रिव्यू: नायक और एक्टर के साथ न्याय नहीं कर पाई फिल्म!
'श्रीकांत' फिल्म का नायक एक हिम्मतवाला आदमी है. बस ये फिल्म उसकी कहानी दिखाने के लिए हिम्मत नहीं दिखाती.
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