The Lallantop

मनोज मुंतशिर को अपने नाम में 'शुक्ला' लगाने की ज़रूरत क्यों पड़ी?

Manoj Muntashir पहले अपने नाम में शुक्ला नहीं लगाते थे. फिर उन्होंने अचानक अपने नाम के आगे शुक्ला क्यों जोड़ लिया?

Advertisement
post-main-image
मनोज पहले शुक्ला नहीं 'मुंतशिर' हुआ करते थे

Manoj Muntashir Shukla पहले अपने नाम में शुक्ला नहीं लगाते थे. बाद में उन्होंने अपने नाम के साथ इसे जोड़ा. ऐसा क्यों किया, ये उन्होंने हमारे खास प्रोग्राम 'बैठकी' में बताया. इसमें उन्होंने 'आदिपुरुष' के संवादों से लेकर अपने सभी विवादित बयानों पर भी बात की. फिलहाल आते हैं, उनके नाम पर.

Add Lallantop as a Trusted Sourcegoogle-icon
Advertisement

उनसे सवाल हुआ कि आपको अपने नाम में शुक्ला लगाने की ज़रूरत क्यों पड़ी? इस पर उन्होंने कहा:

ज़रूरत मुझे नहीं पड़ी. ऐसा हजारों बार हुआ कि मुंतशिर नाम की वजह से मुझ पर अजीब-अजीब आक्षेप लगने शुरू हुए. मुझे मौकापरस्त कहा गया. जब 20-21 साल का लड़का ये नाम चुनता है, तब तक तो उसे दुनिया के बारे में पता ही नहीं था. रूमानियत में जीने वाला आदमी था मैं. हर कोई जो शायर या गीतकार होता है, रूमानी ही होता है और मैं भी था.

Advertisement

मनोज आगे कहते हैं:

फिर मुझे लगा कि मैं जब मनोज मुंतशिर शुक्ला हूं, मेरे पासपोर्ट पर पहले दिन से यही लिखा हुआ है. लोगों को लगता है कि मैं अचानक शुक्ला हो गया. ऐसा नहीं है, मैं पहले से ही था. 2005 में मेरा पासपोर्ट बना था, पहली बार मैं यूरोप गया था 2005 में. तभी से मेरे पासपोर्ट पर यही नाम पड़ा हुआ है. इसलिए मुझे लगा कि चलो अपना पूरा नाम ही कर लेते हैं, फर्क क्या पड़ता है! ऐसा नहीं है कि मैंने मुंतशिर हटा दिया और शुक्ला जोड़ दिया. ये सवाल मुझसे तब बनता, जब मैं अचानक मनोज शुक्ला बन गया होता. मैं तो पहले से ही मनोज मुंतशिर शुक्ला था और वही हूं. कुछ नया हुआ नहीं, लेकिन तमाशा बहुत हुआ.

"विदेशी माता का पुत्र देशभक्त नहीं हो सकता..." राहुल गांधी पर दिए बयान पर क्या बोले मनोज मुंतशिर?

Advertisement

मनोज ने ये भी बताया कि उनके नाम में मुंतशिर आया कहां से. 21 की उम्र थी तब उनकी. मनोज कहते हैं:

साल 1997 में गौरीगंज में ठण्ड की एक शाम थी. सात बजे का वक्त था, वो चाय की तलाश में भटक रहे थे, दूर सिगड़ी जलती दिखी तो पहुंच गए. चाय वाले का नाम बबलू था, वहीं रेडियो पर मुशायरा चल रहा था, मनोज ने कहा, आवाज बढ़ाओ, मुशायरे में शेर पढ़ा जा रहा था, "मुंतशिर हम हैं तो रुख्सारों पे शबनम क्यूँ है,  आइने टूटते रहते हैं तुम्हें ग़म क्यूं है."

मनोज को पेन नेम की तलाश थी, पहला शब्द उनके कानों में अटक गया, उन्हें मुंतशिर का अर्थ पता था, नाम के साथ राइम कर रहा था, इसलिए बन गए, मनोज मुंतशिर.

Advertisement