The Lallantop

'नदिया के पार' वाले सचिन आज कल कहां हैं?

इन्होंने साढ़े चार साल की उम्र में फिल्मों में काम करना शुरू किया था और आज तक काम कर रहे हैं.

post-main-image
फिल्म 'नदिया के पार' के दो अलग-अलग सीन्स में सचिन पिळगांवकर.
बैंगलोर से 50 किलोमीटर दूर एक छोटा सा शहर है रामनगर है. 1973 में वहां फिल्म 'शोले' की शूटिंग शुरू हुई. फिल्म में 17 साल का एक बच्चा भी काम कर रहा था. जब उसके हिस्से की शूटिंग पूरी हो गई, तो उसने डायरेक्टर रमेश सिप्पी से उनकी टीम के साथ बैंगलोर में ही रुकने की इजाज़त मांगी. अपना काम खत्म हो चुकने के बाद भी वो रोज सेट पर आता और जब रमेश सिप्पी शूटिंग करते, तो उनके कैमरे के ठीक पीछे जमीन पर चुपचाप बैठकर उनका प्रोसेस देखता. बड़े एक्टर्स को एकोमोडेट करने में व्यस्त सिप्पी ने टेक्निशियन लोगों की एक दूसरी टीम बनाई. ये टीम कुछ एक्शन सीक्वेंस वगैरह शूट करने वाली थी. इस टीम का क्रिएटिव हेड उस 17 साल के बच्चे को बनाया गया. उसकी ही देखरेख में फिल्म 'शोले' का ट्रेन वाला सीक्वेंस शूट किया गया. हर सीन को परफेक्ट बनाने के लिए उसे कई बार शूट करने वाले सिप्पी ने वो शॉट देखा और उसे जस का तस अपनी फिल्म में रख लिया. उस बच्चे का नाम था सचिन पिळगांवकर. वही, 'नदिया के पार' में चंदन का रोल करने वाले सचिन. 17 अगस्त को उनका बड्डे आता है.
साढ़े चार साल का बच्चा, जिसने बुखार में तपते हुए फिल्म की शूटिंग की
सचिन साढ़े तीन बरस के थे. तभी मराठी फिल्ममेकर माधवराव शिंदे ने फिल्म 'सुनबाई' में सचिन को एक छोटे से रोल में लेने के लिए उनके पिता से संपर्क किया. किन्हीं वजहों से सचिन को वो फिल्म तो नहीं मिल पाई लेकिन उनके पिता को फिल्मों में काम करने वाला आइडिया भा गया. वो अपने बेटे को फिल्म में काम दिलाने के लिए दूसरे फिल्ममेकर्स से बातचीत करने लगे. सचिन को पहला मौका दिया राजा परांजपे ने. राजा 1961 में 'हा माझा मार्ग एकला' नाम की फिल्म बना रहे थे. इसमें साढ़े चार साल के सचिन को कास्ट कर लिया गया. जिस दिन अपने फिल्म करियर का पहला शॉट देना था, उस दिन सचिन 103 डिग्री बुखार से तप रहे थे. इस चीज़ से परेशान उनके पिता ने राजा परांजपे से गुज़ारिश की कि हो सके, तो सचिन से आज शूटिंग ना करवाई जाए. लेकिन राजा साहब नहीं माने. उन्होंने भी रिक्वेस्ट वाले स्वर में सचिन के पिता से कहा कि सारी तैयारियां हो चुकी हैं. अगर आज शूटिंग नहीं हुई, तो दिक्कत हो जाएगी. हालांकि उन्होंने ये आश्वासन भी दिया कि वो सचिन को ज़्यादा देर सेट पर नहीं रोकेंगे. जैसे ही शूट के लिए सचिन का मेकअप शुरू हुआ, उनका बुखार उतरने लगा. जब तक वो अपनी पहली लाइन बोलने के लिए कैमरे के सामने पहुंचते उनका बुखार गायब हो चुका था. वो फिल्म बनकर तैयार हुई और उसके लिए सचिन को बेस्ट चाइल्ड एक्टर का नेशनल अवॉर्ड मिला.
फिल्म 'ब्रह्मचारी' के एक सीन में शम्मी कपूर और बच्चा गैंग के साथ सचिन. दूसरी पंक्ति में तीसरे बच्चे सचिन ही हैं (बाएं से दाएं).
फिल्म 'ब्रह्मचारी' के एक सीन में शम्मी कपूर और बच्चा गैंग के साथ सचिन. दूसरी पंक्ति में तीसरे बच्चे सचिन ही हैं (बाएं से दाएं).


गुरु दत्त की फिल्म देखी और उन्होंने फिल्म दे दी
सचिन बताते हैं कि उन्होंने 7 साल की उम्र में गुरु दत्त की फिल्म 'कागज़ के फूल' देखी थी. उन्हें फिल्म देखकर ज़्यादा कुछ समझ तो नहीं आया लेकिन उन्होंने तय कर लिया कि बड़े होकर डायरेक्टर बनेंगे. इस फैसले की घड़ी के दो साल बाद गुरु दत्त के ऑफिस से सचिन के लिए फोन आया. गुरु दत्त उनसे मिलना चाहते थे. सचिन अपने पिता के साथ तय समय और जगह पर मीटिंग के लिए पहुंच गए. गुरु दत्त ने कहा कि वो ऑलिवर ट्विस्ट को हिंदी में बनाने जा रहे हैं. वो चाहते हैं कि उनकी फिल्म में ऑलिवर का रोल सचिन करें. उन्होंने सचिन से पूछा तुम्हारी उम्र कितनी है. जवाब आया- 9 साल. गुरु दत्त ने कहा कि मगर उनका ऑलिवर तो 11 साल का है. ये सुनते ही सचिन ने बाल सुलभ चंचलता में पूछ लिया- तो क्या आप फिल्म में किसी और को लेंगे? गुरु दत्त ने बिना कुछ सोचे कहा- ''नो. आई विल वेट फॉर यू''. इसके बाद गुरु दत्त अपने प्रोडक्शन की फिल्म 'बहारें फिर भी आएंगी' की शूटिंग में लग गए. इसी फिल्म की मेकिंग के दौरान 1964 में उनकी मौत हो गई. जैसा कि गुरु दत्त ने सचिन से वादा किया था वो जब 11 साल के हुए, तो उन्हें गुरु दत्त के छोटे भाई आत्मा राम पादुकोण का फोन आया. उन्हें ऑलिवर ट्विस्ट के हिंदी वर्ज़न की स्क्रिप्ट दी गई. उन्होंने जैसे ही स्क्रिप्ट को खोला, पहले ही पन्ने पर गुरु दत्त की हैंडराइटिंग में लिखा था- 'सचिन के साथ बनाने के लिए जब वो 11 का होगा' (अंग्रेज़ी में).
फिल्म 'कागज़ के फूल' के एक सीन गुरुदत्त और वहीदा रहमान. इस फिल्म को फिल्ममेकिंग का मास्टक्लास माना जाता है.
फिल्म 'कागज़ के फूल' के एक सीन में गुरु दत्त और वहीदा रहमान. इस फिल्म को फिल्ममेकिंग का मास्टक्लास माना जाता है. बेस्ट ऑफ गुरु दत्त.


'शोले' में सचिन की बेहतरी के चक्कर में उनके साथ धोखा हो गया
आगे सचिन ने मीना कुमारी के साथ 'मझली दीदी', देव आनंद के साथ 'ज्वेल थीफ', शम्मी कपूर के साथ 'ब्रह्मचारी' और संजीव कुमार के साथ 'बचपन' जैसी फिल्मों में चाइल्ड आर्टिस्ट के तौर पर काम किया. इसके बाद उन्हें ऑफर हुई सलीम-जावेद की लिखी 'शोले'. फिल्म 'शोले' में सचिन ने इमाम के बेटे अहमद का रोल किया था. लेकिन फिल्म में उनके साथ बहुत बुरा हुआ. फिल्म में गब्बर, अहमद को तड़पा-तड़पाकर मार देता है. पकड़े जाने से लेकर गब्बर के हाथों मारे जाने तक वो पूरा सीन सचिन के साथ शूट किया गया. जिसमें तकरीबन 19 दिन का समय लगा. जैसा कि हमने बताया रमेश सिप्पी हर सीन को अति-परफेक्ट बनाना चाहते थे. इसलिए वो सीन्स को  कई बार अलग-अलग तरीके से शूट करते थे. 'शोले' अपने एंड को लेकर काफी चर्चा में थी. क्योंकि सेंसर बोर्ड उसे फिल्म से हटवाना चाहता था. फिल्म का एंड तो बदला ही लेकिन जब फिल्म सिनेमाघरों में उतरी, तब उसका एक और हिस्सा कट चुका था. सचिन का वो सीन, जिसमें गब्बर उनके किरदार की हत्या कर देता है. लोगों को लगा ये सीन भी सेंसर बोर्ड के प्रेशर में हटाया गया लेकिन ये एक मिथ है. सचिन अपने एक इंटरव्यू में बताते हैं कि तब उनकी उम्र मात्र 17 साल थी. इसलिए रमेश सिप्पी नहीं चाहते थे कि उस बच्चे के साथ स्क्रीन पर ऐसी चीज़ें होती दिखाई जाएं. पता नहीं पब्लिक स्वीकार करे न करे. इसलिए उस सीन को सिंबॉलिक तरीके से फिल्म में रखा गया. थिएटर में 'शोले' का जो कट रिलीज़ हुआ, उसकी लंबाई थी 198 मिनट यानी 3 घंटे और 18 मिनट. 204 मिनट का ओरिजिनल कट 1990 में पब्लिक को मुहैया करवाया गया. फिल्म के सचिन वाले हिस्से का थिएटर कट आप यहां देख सकते हैं-

सचिन का जो सीन थिएटर कट में नहीं था, उसे आप नीचे दिए लिंक पर क्लिक करके देख सकते हैं-

प्रोड्यूसर ने पहले सचिन को साइन किया, फिर फिल्म के लिए कहानी ढूंढी
आमतौर पर ये देखने को मिलता है कि चाइल्ड एक्टर्स का करियर बड़े होने के बाद ढलान पर आना शुरू हो जाता है. क्योंकि उन्हें पब्लिक से लेकर फिल्ममेकर्स तक ने बच्चे की तरह देखा, उन्हें फिल्म के हीरो के तौर पर देख पाना थोड़ा मुश्किल रहता है. सचिन वाले दौर में राजू श्रेष्ठा (चित चोर), अलंकार जोशी (दीवार), जूनियर महमूद (कटी पतंग) और मास्टर सत्यजीत (चाचा-भतीजा) जैसे तमाम चाइल्ड एक्टर्स काम कर रहे थे. उन्होंने सैकड़ों फिल्मों में बाल कलाकार के तौर पर काम किया. जब बड़े हुए तो इक्का-दुक्का फिल्मों में सपोर्टिंग रोल मिला और फिर काम खत्म. अलंकार ने कई फिल्मों में अमिताभ बच्चन के बचपन का किरदार निभाया था. जूनियर महमूद का तो ये नाम ही खुद कॉमेडियन महमूद ने रखा था. लेकिन ये लोग एडल्ट होने के बाद फिल्मों में अपना नाम नहीं बना पाए. खैर, राजश्री प्रोडक्शन के राजकुमार बड़जात्या ने सचिन की एक मराठी फिल्म देखी 'अजब तुजे सरकार'. वो सचिन के साथ प्रेम और दोस्ती के इर्द-गिर्द एक फिल्म पर काम करना चाहते थे. उन्होंने सबसे पहले सचिन को साइन किया. इसके बाद उनके लायक कहानी ढूंढी गई, जिस पर 'गीत गाता चल' नाम की फिल्म बनी. इस फिल्म का स्क्रीनप्ले सचिन के पिता शरद पिळगांवकर और मधुसुदन कारेलकर ने मिलकर लिखा था. सचिन, सारिका और मदन पुरी के साथ बनी ये फिल्म बड़ी हिट रही. खासकर इसके गाने. 'श्याम तेरी बंसी पुकारे' और 'मंगल भवन अमंगल हारी' जैसे गाने इसी फिल्म का हिस्सा थे. फिल्म में म्यूज़िक और लिरिक्स दोनों ही रविंद्र जैन का था. आगे सचिन ने राजश्री प्रोडक्शन के साथ 'अंखियों के झरोखों से' और 'नदिया के पार' जैसी सुपरहिट फिल्मों में काम किया.
फिल्म 'मझली दीदी' के एक सीन में मीना कुमार और धर्मेंद्र के साथ बालक सचिन.
फिल्म 'मझली दीदी' के एक सीन में मीना कुमार और धर्मेंद्र के साथ बालक सचिन.


'नदिया के पार', जिससे प्रेरित होकर इंडिया की सबसे सफल फिल्म बनी
केशव प्रसाद मिश्रा नाम के नॉवलिस्ट थे. उनकी ट्रैजेडी नॉवल 'कोहबर की शर्त' से प्रेरित होकर राजश्री ने एक फिल्म प्लान की. इस फिल्म का नाम रखा गया 'नदिया के पार'. एक छोटे शहर में घटने वाली पारिवारिक कहानी. सचिन, साधना सिंह और इंद्र ठाकुर को मुख्य किरदारों में लेकर बनी ये फिल्म बिहार और यूपी वाले बेल्ट में बहुत बड़ी हिट रही. इसका क्रेडिट फिल्म की भाषा और उसकी पृष्ठभूमि को भी जाता है. मगर देश के दूसरे हिस्सों में ये एक छोटे बजट की कॉन्टेंट ड्रिवन फिल्म मानी गई, जिसे काफी कम देखा गया. 'नदिया के पार' की रिलीज़ के 10 साल बाद राजश्री ने उस कहानी को देश के बाकी हिस्सों तक पहुंचाने के लिए दोबारा उठाया. ओरिजिनल फिल्म के एक डायलॉग पर नई फिल्म का नाम 'हम आपके हैं कौन रखा' गया. अपने दौर के दो सबसे बड़े स्टार्स माधुरी दीक्षित और सलमान खान के साथ रेणुका शहाणे, रीमा लागू, आलोक नाथ और अनुपम खेर को लेकर ऑन्सॉम्बल कास्ट तैयार की गई. 'हम आपके हैं कौन' की कहानी के पब्लिक कनेक्ट को लेकर राजकुमार और ताराचंद बड़जात्या श्योर थे. इसलिए इस फिल्म को एक बिग बजट प्रोजेक्ट की तरह डील किया जाने लगा. 'हम आपके हैं कौन' रिलीज़ हुई और देशभर से इस फिल्म को गज़ब का रिस्पॉन्स मिला. 'शोले' को पीछे छोड़ते हुए 'हम आपके हैं कौन' इंडिया की सबसे कमाऊ फिल्म बन गई. इस फिल्म की मेकिंग से जुड़े और मज़ेदार किस्से जानना चाहते हैं, तो यहां क्लिक करें
.
फिल्म 'नदिया के पार' का ऑफिशियल पोस्टर.
फिल्म 'नदिया के पार' का ऑफिशियल पोस्टर.


सचिन- द ऑलराउंडर
क्रिकेट नहीं सिनेमा की पिच पर सचिन पिळगांवकर के हरफनमौला प्रदर्शन की बात हो रही है. 'शोले', 'नदिया के पार', 'सत्ते पे सत्ता' जैसी सफल फिल्मों में काम करने के बाद सचिन ने फिल्म डायरेक्शन में कदम रखा. 1982 में आई मराठी फिल्म 'माय बाप' डायरेक्टर के तौर पर सचिन की पहली फिल्म थी. इस फिल्म से वो 7 साल की उम्र में खुद से किया वादा पूरा कर रहे थे, जिसमें उनकी मदद 'शोले' के दौरान हुई ट्रेनिंग ने की. आगे सचिन ने 15 से ज़्यादा मराठी फिल्में डायरेक्ट कीं. मराठी फिल्मों में बतौर डायरेक्टर सचिन की सफलता को देखते हुए सुभाष घई ने उन्हें अपनी प्रोडक्शन कंपनी मुक्ता आर्ट्स के तहत हिंदी फिल्म डायरेक्शन डेब्यू करने का मौका दिया. फिल्म का नाम था 'प्रेम दीवाने'. इसमें जैकी श्रॉफ, विवेक मुशरान और माधुरी दीक्षित ने लीड रोल्स किए थे. फिल्म पिट गई. कुछ एक हिंदी फिल्में और बनाने के बाद सचिन वापस मराठी सिनेमा की ओर लौट गए. 2017 में सचिन ने गोविंद निहलानी की फिल्म के लिए गज़ल लिखा. गोविंद की मराठी फिल्म 'ती आणि इतर' में उन्होंने 'बादल जो घिर के आए' नाम का एक गज़ल लिखा. ये गीतकार के तौर पर उनका पहला काम था. इस गज़ल को उन्होंने शफ़क के उपनाम से लिखा था. उस गज़ल की मेकिंग का वीडियो आप नीचे देख सकते हैं:

फिल्म डायरेक्ट करते वक्त प्यार हुआ और सुपरहिट होने पर शादी
सचिन अपनी दूसरी मराठी फिल्म 'नवरी मिलो नवऱ्याला' बनाने जा रहे थे. इस फिल्म के लिए उन्हें एक नई लड़की की तलाश थी. उनकी तलाश नई-नई आईं सुप्रिया सबनिस नाम की लड़की पर आकर रुकी. फिल्म की शूटिंग के दौरान सचिन को सुप्रिया से प्रेम हो गया. प्रेम तो हुआ लेकिन इज़हार करने की हिम्मत नहीं हो पा रही थी. फाइनली फिल्म की शूटिंग खत्म होने के बाद सचिन हिम्मत जुटाकर उम्र में खुद से 10 साल छोटी सुप्रिया को अपने दिल की बात बताने पहुंचे. उन्होंने सुप्रिया से शादी के लिए पूछा. जवाब में सुप्रिया ने कहा- 'माला वातला कि तुम्हीं लगना केला आहे' यानी मुझे लगा कि आपकी शादी हो चुकी है. मगर वो शादी के लिए मान गईं. जैसे ही ये बात सुप्रिया के घरवालों को पता चली उन्होंने इस शादी से सीधे इनकार कर दिया. वजह ये थी कि सुप्रिया उन दिनों 17 साल की थीं और कॉलेज में पढ़ रही थीं. थोड़े से हो-हल्ले के बाद सचिन, सुप्रिया के घरवालों से मिलने आए और सबको मना लिया. 'नवरी मिलो नवऱ्याला' सुपरहिट साबित हुई. और इसके ठीक अगले साल 21 दिसंबर, 1985 को सचिन और सुप्रिया ने शादी कर ली.
शादी के दौरान सचिन और सुप्रिया पिळगांवकर.
शादी के दौरान सचिन और सुप्रिया पिळगांवकर.


आज कल क्या कर रहे हैं सचिन?
सचिन फिल्मों में अब भी पूरी तरह एक्टिव हैं. वो मराठी और हिंदी दोनों ही इंडस्ट्रीज़ में बतौर एक्टर काम कर रहे हैं. 2018 में रानी मुखर्जी के साथ उनकी हिंदी फिल्म 'हिचकी' और स्वप्निल जोशी स्टारर मराठी फिल्म 'रणांगन' रिलीज़ हुई. 2019 में वो हॉटस्टार की वेब सीरीज़ 'मायानगरी- सिटी ऑफ ड्रीम्स' में भी नज़र आ चुके हैं. एज़ अ डायरेक्टर उनकी आखिरी मराठी फिल्म 'अशी ही आशिकी' 2019 में रिलीज़ हुई थी. सचिन और सुप्रिया के अलावा अब उनकी बिटिया श्रिया भी फिल्मों में काम करती हैं. उन्होंने शाहरुख खान की फिल्म 'फैन' से अपना हिंदी फिल्म डेब्यू किया था. एमेज़ॉन प्राइम वेब सीरीज़ 'मिर्ज़ापुर' में स्वीटी का रोल श्रिया ने ही किया है.
पत्नी सुप्रिया और बिटिया श्रिया के साथ सचिन.
पत्नी सुप्रिया और बिटिया श्रिया के साथ सचिन.


सचिन पिळगांवकर भी बाकी चाइल्ड आर्टिस्टों की तरह कुछ फिल्मों में लीड रोल करने के बावजूद हिंदी फिल्मों के बोनाफाइड लीडिंग एक्टर नहीं बन सके. उनके खाते में कई छोटे और कैरेक्टर रोल्स आए. इस चीज़ ने उन्हें परेशान करने की बजाय एक आर्टिस्टिक लिबर्टी दे दी. ताकि वो अपने काम के साथ एक्सपेरिमेंट कर सकें. कुछ नया कर सकें. पिछले दिनों उन्होंने 'पप्पू और पापा- सेक्स टॉक' नाम की एक यूट्यूब सीरीज़ की थी, जिसमें उनका काम खूब पसंद किया गया. वो लगातार काम करते रहे. हिंदी में सफलता नहीं मिली, तो वापस मराठी इंडस्ट्री में चले गए. वहां उन्हें सिर्फ एक्टर ही नहीं सम्मानित और सफल फिल्मकार के लिए रूप में भी देखा जाता है.