Cubicles के पहले सीज़न में हमें पीयूष प्रजापति नाम के एक लड़के की कहानी दिखाई गई थी. उसने एक टेक फर्म में अपनी पहली नौकरी शुरू की थी. शो के दूसरे सीज़न में हमें उसकी कहानी का एक्सटेंडेड या यूं कहें कि रियल लाइफ वर्ज़न देखने को मिलता है. नौकरी के पहले साल में एंथु कटलेट रहा पीयूष अब मेलो डाउन हो गया है. अब वो 9 टु 5 जॉब वाले गेम में आ चुका है. काम खत्म करो घर जाओ. पैसे बढ़वाने हैं, तो अप्रेज़ल का वेट करो या फिर नई नौकरी ढूंढो. मगर प्रॉब्लम ये है कि इस प्रोसेस के बीच उसकी नैतिकता और इंटरनेट पर पढ़ा हुआ ज्ञान आड़े आने लगता है. उसे लगता है कि वो Quarter life crisis से जूझ रहा है. उसके पास दो चॉइस है- 1) उसे ऐसी जगह नौकरी करनी चाहिए, जहां वो कंफर्टेबल हो गया है. उसके दोस्त बन गए हैं. 2) या उस जॉब ऑफर को एक्सेप्ट करे, जहां बढ़ी हुई सैलरी और गला काट कॉम्पटीशन है. हम कुछ नहीं कहेंगे, आप खुद गेस करिए कि पीयूष प्रजापित क्या चुनता है...

'क्यूबिकल्स' सीज़न 2 के एक सीन में सीरीज़ के तीनों नायक.
Cubicles सीज़न 2 की प्रॉब्लम है कि ये 9 से 5 की जॉब का पर्सनल साइड वास्तविकता के करीब रखती है. मगर प्रोफेशनल साइड को काफी रोमैंटिसाइज़्ड तरीके से आपके सामने लाती है. जो लोग इन नौकरियों में हैं, वो इस चीज़ को तुरंत समझ जाएंगे. मगर जो अपनी लाइफ में कुछ बेटर... मेरा मतलब कुछ अलग कर रहे हैं, उन्हें ये चीज़ बड़ी एस्पारयरिंग सी लग सकती है. इग्ज़ांपल के साथ बताएंगे, तो ये ज़्यादा क्लीयर तरीके से समझ आएगा. सीरीज़ का एक सीन है, जिसमें पीयूष एक नई नौकरी के लिए अप्लाई कर रहा है. मगर इसके बाद उसे सामने वाली कंपनी से दसियों कॉल्स आते हैं. ये काफी अनरियल सिचुएशन है. मगर पीयूष की पर्सनल लाइफ हमारी-आपकी लाइफ से काफी मिलती जुलती है. वो रोज देर से सोकर उठता है. कैब लेकर ऑफिस जाता है. डेडलाइंस की तलवार के साथ अपने बॉस की डांट खाता है. इस कंपनी ने उसे इंक्रीमेंट तो दी है. मगर वो पैसे उसे दो साल बाद मिलेंगे. इतनी दिक्कतों के बावजूद वो यही नौकरी करना जारी रखना चाहता है. और प्लस एक तरह से ये सीरीज़ दूसरों को भी ऐसा ही करने के लिए मोटिवेट करती है. थोड़े होपफुल तरीके से.

नौकरी छोड़ने से पहले प्रोज़ और कॉन्स की लिस्ट बनाता पीयूष प्रजापति.
Cubicles 2 एक हल्की-फुल्की सी सीरीज़ है, जिसके किरदार और कहानियां बहुत रिलेटेबल हैं. एक जैसे क्यूबिकल्स में बैठे, एक सा काम करते लोग, असल में एक-दूसरे से बिल्कुल अलग होते हैं. उनका बैकग्राउंड, लाइफ को लेकर उनकी फिलॉसफी और उनके सपने सबकुछ एक-दूसरे से बिल्कुल अलग होते हैं. ये सीरीज़ एक पर्सपेक्टिव भी देती है. इसमें शॉशैंक रिडेंप्शन जैसी क्लासिक फिल्म का रेफरेंस बड़े कमाल तरीके से इस्तेमाल किया गया है. और इस रेफरेंस को जैसे खत्म किया गया, वही इस चीज़ को नोटिसेबल बनाता है.
ये सीरीज़ नौकरी और जीवन के बीच फंसे इंसानों की कहानी दिखाती है. उन्हें समझने के लिए ये मोरैलिटी का सहारा लेती है. पीयूष प्रजापति अपनी कलीग सुप्रिया को समझाते हुए एक लाइन कहता है. पीयूष कहता है-
''ऐसा डिसीज़न ही क्यों लेना जिसका बाय-प्रोडक्ट गिल्ट हो.''