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'जवान' के सामने विक्की कौशल की फ़िल्म 'द ग्रेट इंडियन फ़ैमिली' पहले दिन कितनी चली?

फ़िल्म 'द ग्रेट इंडियन फ़ैमिली' का प्री और पोस्ट-रिलीज़ प्रमोशन भी कम ही देखने को मिला था. और, पहले दिन की कमाई भी बहुत हल्की रही.

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पहले दिन की कमाई बहुत कम रही. (फ़ोटो - 'द ग्रेट इंडियन फैमिली' का पोस्टर.)

विजय कृष्ण आचार्य, विक्की कौशल (Vicky Kaushal) और मानुषी छिल्लर की फ़िल्म 'द ग्रेट इंडियन फ़ैमिली' (The Great Indian Family) 22 सितंबर को रिलीज़ हुई थी. फ़िल्म का प्री और पोस्ट-रिलीज़ प्रमोशन भी कम ही देखने को मिला था. और, पहले दिन की कमाई भी बहुत हल्की रही. 

ट्रेड वेबसाइट Sacnilk के मुताबिक़, 'द ग्रेट इंडियन फ़ैमिली' ने पहले दिन 1.40 करोड़ रुपये कमाए हैं. क़यास ऐसे भी हैं कि 'जवान' के चलते भी फ़िल्म को उतनी बड़ी ओपनिंग नहीं मिली, जितनी मिल सकती थी. ऐसी उम्मीद की जा रही है कि वीकेंड पर फ़िल्म की कमाई में कुछ बढ़ावा मिलने की उम्मीद है.

विक्की कौशल ने ‘मसान’,'रमन राघव-2.0',‘उरी: द सर्जिकल स्‍ट्राइक’ जैसी फ़िल्‍मों में काम किया है. ख़ूब सराहे भी गए. लेकिन अब वो ‘गोव‍िंदा नाम मेरा’, ‘ज़रा हटके ज़रा बचके’ और ‘द ग्रेट इंडियन फ़ैमिली’ जैसी पिक्चरें कर रहे हैं. विक्की की पिछली फ़िल्म ‘ज़रा हटके ज़रा बचके’ को 5.40 करोड़ रुपये की ओपनिंग मिली थी.

फ़िल्म किस बारे में है? 

यूपी के छोटे से शहर बलरामपुर में कहानी सेट है. यहां रहता है, त्रिपाठी परिवार. इलाके के प्रतिष्ठित लोग. पूजा-पाठ, शादी-ब्याह करवाते हैं. अतरंगी फैमिली है. यहां सारे फ़ैसले लोकतांत्रिक तरीक़े से लिए जाते हैं. सबकुछ सही चल रहा था, फिर एक दिन पता चलता है कि त्रिपाठी परिवार का एक सदस्य मुस्लिम है. यहां से उस किरदार का संघर्ष शुरू होता है. इस आइडेंटिटी क्राइसिस से निजात पाने के लिए उसे परिवार और समाज दोनों के ख़िलाफ़ फाइट मारनी पड़ती है. वो ये जंग जीत पाता है कि नहीं? और अगर जीतता है, तो कैसे? ये दो सवाल बचते हैं, जिसका जवाब आपको फ़िल्म में मिलेगा. हालांकि, इन दोनों ही सवालों का कोई डेफिनिट जवाब नहीं है. प्रोसेस ही जवाब है.

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हमारे साथी श्वेतांक  के बकौल, 'द ग्रेट इंडियन फ़ैमिली' सिंपल फ़िल्म है. जो थोड़ा सा एंटरटेन और एजुकेट दोनों करने की कोशिश करती है. उस लेवल पर आप फ़िल्म की नीयत पर शक नहीं कर सकते. मगर ये सब वो बड़े रूटीन तरीक़े से करती है. एक गंभीर मसला, जिसके बारे में बात करने के लिए कॉमेडी की बैसाखी के सहारे चलना पड़ता है. इस फिल्म का नायक अपने आसपास होने वाली चीज़ों से इतना अनभिज्ञ है कि उसे ये भी नहीं पता 'अल्लाह हू अकबर' ग्रीटिंग नहीं है. उसे लगता है कि मुसलमान बात करते वक़्त हर शब्द में नुक़्ता लगाते हैं. च़ाहे ज़रूरत ह़ो य़ा ऩहीं. इस पर उसका मुसलमान दोस्त उसे तुरंत टोक देता है.   

कुल जमा बात ये है कि 'द ग्रेट इंडियन फ़ैमिली' ऐसी फिल्म है, जिसे परिवार के साथ बैठकर देखा जा सकता है. पिक्चर के पास जनता तक पहुंचाने के लिए एक मैसेज है. वो ये फिल्म डिलीवर कर देती है. न ये बहुत कमाल का सिनेमा है, न ही ऐसा सिनेमा जिसे ख़ारिज किया जाना चाहिए. इस फिल्म की सबसे पॉज़िटिव बात ये है कि एक सही बात कहने के चक्कर में चार ग़लत बात सिखाकर नहीं जाती. 

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