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फिल्म रिव्यू- वलिमई

'वलिमई' में वो सबकुछ है, जो अजीत कुमार के फैंस देखना चाहते हैं. मगर वो नहीं है, जो अच्छी फिल्म में होना चाहिए.

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फिल्म 'वलिमई' के एक सीन में सुपरस्टार अजीत.
जिस फिल्म का इंतज़ार लंबे वक्त से हो रहा था, वो फाइनली रिलीज़ हो चुकी है. अजीत कुमार की फिल्म 'वलिमई' के बारे में बात हो रही है. दो साल बाद अजीत की कोई फिल्म आ रही है. इसलिए फिल्म का हाइप भरपूर था. ट्रेलर टीज़र ने उस बज़ को और बढ़ाया. अब फाइनली फिल्म आई है. कहानी ये है कि चेन्नई में एक बाइक गैंग है. वो लोग एक साथ शहर के अलग-अलग इलाकों में चेन स्नैचिंग करते हैं. चेन स्नैचिंग को बड़ा क्राइम माना नहीं जाता है, इसलिए पुलिस लोड नहीं ले रही थी. मगर अचानक से शहर में ड्रग्स और मर्डर जैसे क्राइम तेजी से बढ़ने लगे. ऐसे में चेन्नई को बचाने का जिम्मा दिया जाता है 'People's cop' अर्जुन को. अर्जुन को सबस पहले एक सुसाइड का केस मिलता है. मगर इस सुसाइड के तार बाइकर गैंग से जुड़े हुए हैं. अर्जुन इस Satan's Slave यानी शैतान के गुलाम नाम के गैंग की जड़ तक पहुंचकर उसे खत्म करने की कोशिश करता है.
'वलिमई' की कहानी बड़ी सिंपल है, इसलिए फिल्म प्रेडिक्टेबल हो जाती है. इसकी शुरुआत प्रॉमिसिंग तरीके से होती है. मगर फैन सर्विस के चक्कर में डायरेक्टर एच. विनोद का कंट्रोल फिल्म पर कम होता चला जाता है. उन्हें एक एक्शन थ्रिलर बनानी है. और सुपरस्टार के फैंस को भी खुश करना है. उनकी ये उधेड़बुन पूरी फिल्म में आपको नज़र आती है. फैमिली के साथ दो-तीन इमोशनल सीन्स होते हैं और फिर एक लंबा एक्शन या चेज़ सीक्वेंस आपके सामने रख दिया जाता है. ज़ाहिर तौर पर वो सीक्वेंसेज़ शानदार और स्टाइलिश हैं. मगर इनका स्टोरी से कुछ खास लेना-देना नहीं है. ऐसा लगता है कि फिल्म अपनी कमज़ोर कहानी को छुपाने के लिए इन फैंसी सीक्वेंस का इस्तेमाल कर रही है.
Satan's Slave यानी शैतान के गुलाम नाम के गैंग के लोग, जिन्होंने शहर में उत्पात मचाया हुआ है.
Satan's Slave यानी शैतान के गुलाम नाम के गैंग के लोग, जिन्होंने शहर में उत्पात मचाया हुआ है.


फिल्म में अजीत कुमार ने अर्जुन नाम के पुलिस ऑफिसर का रोल किया है. वो एसीपी है. उसे चेन्नई शहर को शैतान के गुलाम गैंग से मुक्त करने के लिए बुलाया गया है. अर्जुन अच्छा आदमी है, वो लोगों की भलाई करना चाहता है. अच्छा बेटा है. अच्छा भाई. ये सब इसलिए करना पड़ता है क्योंकि अजीत अच्छे सुपरस्टार हैं. फैंस के लिए अच्छा सुपरस्टार वो होता है, जो अपनी फिल्मों में वही चीज़ें करता है, जो उसके फैंस पसंद करते हैं. उसे शास्त्रों में फैन सर्विस कहा गया है. RX100 फेम तेलुगु एक्टर कार्तिकेय ने फिल्म के विलन 'सेटन' का रोल किया है. ये विलन कभी अजीत के साथ भिड़कर जीतने की स्थिति में नहीं लगता. जितनी मेहनत कार्तिकेय के लुक्स और फिज़िक पर हुई है, उतना ही मेहनत उनके कैरेक्टर ग्राफ पर भी होती, तो ये कुछ अलग ही फिल्म होती.
शैतान के गुलाम गैंग से निपटने के लिए बुलाया गया पुलिस ऑफिसर अर्जुन.
शैतान के गुलाम गैंग से निपटने के लिए बुलाया गया पुलिस ऑफिसर अर्जुन.


हुमा कुरैशी ने सोफिया नाम की पुलिस ऑफिसर का रोल किया है. वो यहां सिर्फ इसलिए हैं ताकि पब्लिक को बताया जा सके कि फिल्म में हीरोइन है. मगर अजीत के साथ उसका कोई रोमैंटिक एंगल नहीं है. हालांकि हुमा के हिस्से एक धांसू एक्शन सीन आता है. बाकी मौकों पर वो लिटरली 'सपोर्टिंग रोल' में ही बनी रहती हैं. इस फिल्म में जितने भी एक्टर्स दिखते हैं, वो अजीत के फैंस की तरह ही बिहेव करते हैं. मतलब नार्सिसिज़्म की कोई तो हद होती होगी!
फिल्म के विलन सेटन, जिनका रोल कार्तिकेय ने किया है.
फिल्म के विलन सेटन, जिनका रोल कार्तिकेय ने किया है.


पंगा ये था कि फिल्म में कोई रोमैंटिक एंगल नहीं है. मसाला कहां से लाया जाए? इस चीज़ की भरपाई मां और भाई के साथ प्यार दिखाकर की जाती है. जो बहुत ओवर द टॉप, बनावटी और डेटेड लगता है. 'वलिमई' देखते वक्त लगता है कि अजीत में विन डीज़ल की आत्मा समा गई है. हालांकि फिल्म अपने लिमिटेड स्कोप में कुछ अच्छा करने की भी कोशिश करती है. जैसे एक सीन में कुछ गुंडों को पकड़ने के बाद अर्जुन उनके हाथ तोड़ देता है. उसका साथी ऑफिसर कहता है कि सर इन लोगों का तो एनकाउंटर कर देना चाहिए. इसके जवाब में अर्जुन कहता है-

''हाथ तोड़ना ही गलत है. मजबूरी में कर रहे हैं.''

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फिल्म में अपने इकलौते एक्शन सीक्वेंस के दौरान हुमा कुरैशी.
फिल्म में अपने इकलौते एक्शन सीक्वेंस के दौरान हुमा कुरैशी.


फिल्म के एक दूसरे सीन में पुलिस ब्रुटैलिटी का मसला उठाया जाता है और उसे गलत बताकर दरकिनार कर दिया जाता है. जो सेंसिबल लगता है. जैसा कि फिल्मों में दिखाया जाता है, पुलिस डिपार्टमेंट में हीरो के कुछ दुश्मन होते ही हैं. जो गुंडों से मिले रहते हैं. इस फिल्म में भी हैं. उन दो करप्ट पुलिस ऑफिसरों के नाम हैं 'शासन' और 'सरकार'. 'वलिमई' का एक सोशल एंगल भी है. फिल्म में आज कल की जनरेशन की दिक्कतों को भी उठाया जाता है. उनके ऊपर फैमिली और सोसाइटी द्वारा बनाए जाने वाले प्रेशर पर बात होती है. एक सीन में छोटे-मोटे क्रिमिल्स का माइंडसेट समझने की कोशिश की जाती है. यानी वो लोग जो कर रहे हैं, उसके पीछे क्या वजह है. इसके जवाब में अर्जुन कहता है-

''हम सिर्फ उन्हीं लोगों को इज्ज़त देते हैं, तो सफल हैं और जिनके पास पैसा है.''


अपना हीरो अर्जुन, जिसे फिल्म और रियल लाइफ दोनों में ही बाइकिंग का शौक है.
अपना हीरो अर्जुन, जिसे फिल्म और रियल लाइफ दोनों में ही बाइकिंग का शौक है.


'वलिमई' में वो सबकुछ है, जो अजीत कुमार के फैंस देखना चाहते हैं. लोगों की भलाई करने वाला हीरो, उसकी धांसू एंट्री, फैमिली की कद्र करने और ड्रग्स से दूर रहने जैसे मैसेज, ताबड़तोड़ एक्शन सीक्वेंस और ढेर सारे मासी सीन्स. फर्स्ट हाफ में तो चीज़ें ठीक चलती हैं. मगर कहानी एस्टैब्लिश हो जाने के बाद सेकंड हाफ फिल्म को बर्बादी की तरफ ढकेल देता है. आमतौर पर कहानी को एंटरटेनिंग बनाने के लिए एक्शन या अन्य सिनेमैटिक टूल्स इस्तेमाल किए जाते हैं. यहां कहानी ही बैकग्राउंड में है. ऐसा लगता है मानों सबकुछ इसीलिए हो रहा है, ताकि अजीत बाइक उठाकर सड़क पर निकल सकें. किसी फिल्म की सबसे बुनियादी और ज़रूरी चीज़ होती है कहानी. मगर 'वलिमई' पूरी तरीके से अजीत कुमार के सुपरस्टारडम को कैश करने के मक़सद से बनाई गई फिल्म लगती है. ये आइडिया अपने आप में फिल्म से ज़्यादा निराशाजनक है.

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