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'ओमकारा' के किस्से: जब लंगड़ा त्यागी का रोल आमिर चाहते थे लेकिन विशाल चुपके से सैफ के पास गए

नसीर ने विशाल से कहा था: "तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है. ओथेलो इतना बेकार प्ले है, उस पर मूवी बना रहे हो?”

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सबसे बड़े लड़ैया रे...ओमकारा

विशाल भारद्वाज को उनकी शेक्सपीयर ट्रायलॉजी ‘मक़बूल’, ‘ओमकारा’ और ‘हैदर’ के लिए जाना जाता है. पर उन्होंने बहुत बाद में शेक्सपीयर के नाटकों को ढंग से जाना. वो मकड़ी फ़िल्म की रिसर्च कर रहे थे. उस दौरान किसी ने शेक्सपीयर पढ़ने की सलाह दी. विशाल ने मैकबेथ को शॉर्ट स्टोरी के फॉर्म में पढ़ा. उन्हें वो बहुत मसालेदार लगा. इससे पहले वो शेक्सपीयर को बोरिंग राइटर समझते थे. प्ले पढ़ने के बाद उन्होंने जापानी फिल्ममेकर अकीरा कुरोसावा की मैकबेथ पर बनी मूवी 'थ्रोन ऑफ ब्लड' देखी. तब जाकर उन्हें शेक्सपीयर के नाटकों की ताकत का अंदाज़ा हुआ. उसके बाद विशाल ने उनके प्लेज़ पर तीन-तीन फिल्में बनाईं, और सबकी सब मास्टरपीस. आज इन्हीं में से एक फ़िल्म 'ओमकारा' की मेकिंग से जुड़े कुछ किस्से आपसे साझा करेंगे. 

ओमकारा फ़िल्म का पोस्टर 

अजय देवगन के सेक्रेटरी ने प्रोड्यूस की 'ओमकारा'

बात है, 2000 के आसपास की. उस समय विशाल भारद्वाज की ‘मकड़ी’ नहीं आई थी. इंडस्ट्री उन्हें एक म्यूज़िक कम्पोजर के तौर पर ही जानती थी. पर अजय देवगन उनकी डायरेक्शन स्किल से वाकिफ़ थे. विशाल ने उन्हें एक स्क्रिप्ट सुनाई. अजय फ़िल्म में पैसा लगाने को तैयार हो गए. फ़िल्म का नाम था, 'बरफ'. शूट शुरू हुआ. इसके 6 गाने भी रिकॉर्ड कर लिए गए. चूंकि वो थोड़ी एंटी पाकिस्तान फ़िल्म थी और उस समय भारत-पाक के संबंधों में सुधार हो रहा था, फ़िल्म रोक दी गई. उसके बाद अजय ने अपने बैनर तले 2005 तक कोई फ़िल्म प्रोड्यूस नहीं की. खैर, बात पड़ी रही. विशाल 'मकड़ी' और 'मक़बूल' बना चुके थे. दोनों ही फिल्मों को क्रिटिकली सराहा गया. 5 साल बाद विशाल फिर अजय के पास एक स्क्रिप्ट लेकर आए. इसमें अजय और करीना लीड रोल में थे. अजय उस फ़िल्म को प्रोड्यूस करने को भी राज़ी हो गए. 

विशाल जब शूट करना चाहते थे, उस समय ऐक्टर अजय के पास डेट्स थी, प्रोड्यूसर अजय के पास नहीं थी. संभवतः वो अपने भाई अनिल देवगन की फ़िल्म ‘ब्लैकमेल’ में व्यस्त थे. इसलिए उनके प्रोडक्शन का काम देख रहे कुमार मंगत पाठक ने शूट के लिए अगले साल की डेट्स दीं. 2005 में कुमार मंगत ने, जो अजय के सेक्रेटरी भी थे, प्रोड्यूसर बनने का फैसला किया. ये वही कुमार मंगत हैं, जिन्होंने अजय का लगभग पूरा करियर मैनेज किया. बॉलीवुड के मशहूर स्टार सेक्रेटरीज़ में उनकी गिनती होती है. जब अजय देवगन ने 1996 में अपनी डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी देवगन एंटेरटेनमेंट एंड सॉफ्टवेयर लिमिटेड शुरू की, तो उसका सीईओ मंगत को ही बनाया. बहरहाल, मुद्दे पर आते हैं. जब मंगत ने एक इंडिपेंडेंट प्रोड्यूसर के तौर पर करियर शुरू करने की ठानी, तो चार-पांच निर्देशकों के नाम फाइनल हुए. स्क्रिप्ट सुनी गईं, कुछ समझ नहीं आ रहा था. तब अजय ने उन्हें विशाल के पास भेजा. उनका कहना था:

देख लो, विशाल जी के पास टाइम है तो ओथेलो वाली स्क्रिप्ट पर उनके साथ काम कर लो. अगर इस पर नहीं तो किसी और स्क्रिप्ट पर उन्हीं के साथ काम कर लेना.

ओमकारा में करीना और अजय

पब्लिक पोल के ज़रिए 'ओमकारा' नाम पड़ा

अजय के कहने पर कुमार ने विशाल को कॉल किया. विशाल आए. स्क्रिप्ट सुनाई. मामला सेट हो गया. कुमार को कहानी इतनी पसंद आई कि उसी समय उन्होंने हां कर दी. आखिरकार ओथेलो वाली स्क्रिप्ट ही फाइनल हो गई. ये वही स्क्रिप्ट थी, जो कुछ समय पहले विशाल अजय के पास लेकर पहुंचे थे. इसका आगे चलकर नाम पड़ा 'ओमकारा'. इस नाम के पीछे भी एक किस्सा है. ऐसा माना जाता है कि ओमकारा नाम ऑडियंस के कहने पर दिया गया था. पर विशाल तो शुरू से ही फ़िल्म का नाम ‘ओमकारा’ रखना चाहते थे. प्रोड्यूसर्स अड़े हुए थे कि ओमकारा से ऐक्शन फ़िल्म की बू आ रही है और भारत में रोमैन्टिक मूवीज ज़्यादा चलती हैं. तब विशाल दो और नामों के साथ आए: ओ साथी रे और ‘इसक’. ओमकारा समेत तीनों शब्द फ़िल्म के अलग-अलग गानों में सुनने को मिलते हैं. ऐसा माना जाता है, इश्क के बिगड़े हुए रूप इसक को मूवी के नाम के तौर पर फाइनल किया जा चुका था. पर न जाने क्या हुआ, विशाल कुछ और ही सोच रहे थे. रेडिफ डॉटकॉम ने एक कॉन्टेस्ट कराया. इसमें तीनों नाम दिए गए. सबसे ज़्यादा वोट 'ओमकारा' को मिले. बाद में विशाल ने भी इसे ही अपनी फ़िल्म का टाइटल बनाया. हालांकि सैफ नहीं चाहते थे कि फ़िल्म का नाम 'ओमकारा' हो. क्योंकि ये अजय को फ़िल्म का लीड रोल बना देता. वो चाहते थे फ़िल्म का नाम 'ओ साथी रे' रखा जाए.

फ़िल्म में नसीर और अजय देवगन

नसीर ने विशाल से कहा: ‘तुम पागल हो गए हो, ओथेलो पर फ़िल्म बना रहे हो’

चलिए एक स्टेप पीछे चलते हैं. कुमार और विशाल दोनों खुश थे. कुमार को अच्छी स्क्रिप्ट मिल गई थी और विशाल को उस पर पैसा लगाने वाला. पर अभी तो बस एक पड़ाव पार हुआ था. अब असल उलझन थी, कास्टिंग. कुमार और विशाल अजय के पास गोवा पहुंचे. दोबारा पूरी स्क्रिप्ट नरेट की. हालांकि वो ओमकारा के रोल में पहले से ही फाइनल थे. विशाल का मानना था कि इस रोल को इंडस्ट्री में सिर्फ़ दो लोग ही कर सकते हैं, अजय देवगन या फिर आशीष विद्यार्थी. अजय की एक कमर्शियल वैल्यू भी थी. इसलिए वही पहली चॉइस थे. विशाल कहते हैं:

अजय डार्क एंड लीन हैं, जो इस रोल की एक प्राइमरी डिमाण्ड थी. साथ ही वो अपनी आंखों जो जादू करते हैं, वो कमाल है. 

खैर, दूसरे किरदारों के लिए ऐक्टर्स की खोज होने लगी. काम इतनी तेज़ी से हुआ कि तकरीबन 20 दिन में कास्ट फाइनल हो चुकी थी. विशाल पहले इरफ़ान खान को केसू के रोल में लेना चाहते थे. पर डेट्स की प्रॉबलम के चलते ये रोल विवेक ओबरॉय को मिला. विवेक पहले लंगड़ा त्यागी का रोल करना चाहते थे, फिर अजय के कहने पर उन्होंने केसु का किरदार चुना. भाईसाहब का रोल नसीर से पहले ओम पुरी और अनुपम खेर के पास पहुंचा. जब बात नहीं बनी तो ये रोल नसीरुद्दीन शाह की झोली में गया. हालांकि ये वही नसीर थे, जिन्होंने एक बार विशाल से कहा था कि ओथेलो पर फ़िल्म क्यों बना रहे हो. दरअसल ऐसा माना जाता है कि ओथेलो शेक्सपीयर का सबसे कमजोर प्ले है. गोवा फ़िल्म फेस्टिवल में जब नसीर और विशाल की मुलाक़ात हुई. नसीर ने कहा: “सुना है तुम ओथेलो पर फ़िल्म बना रहे हो. तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है. वो इतना बेकार प्ले है, उस पर मूवी बना रहे हो.” विशाल ने अपनी स्क्रिप्ट नसीर को थमाई. नसीर ने रात भर पढ़ी. सुबह आकर बोले: “इसमें भाईसाहब का रोल मैं ही करूंगा और कोई नहीं करेगा.”

लंगड़ा त्यागी के रोल में सैफ आली खान 

आमिर को भी बनना था लंगड़ा त्यागी

लंगड़ा त्यागी के किरदार ने सैफ का करियर पलट दिया. वो इससे पहले ज़्यादातर चॉकलेट बॉय वाले किरदार किया करते थे. पर लंगड़ा त्यागी ने उन्हें एक समर्थ अभिनेता के तौर पर स्थापित किया. विशाल भारद्वाज ने उनकी आंखों में ये किरदार निभाने की भूख देखी थी. उस समय सैफ अपनी लवर बॉय वाली इमेज तोड़ना चाहते थे. इन सबके बीच एक और शख्स था जो इस रोल के लिए डेस्परेट था. वो थे आमिर खान. दरअसल ओथेलो को अडॉप्ट करने का आइडिया विशाल को आमिर ने ही दिया था. वो एक समय पर इसकी स्क्रिप्ट से इतना प्रभावित थे कि इसे को-प्रोड्यूस करना चाहते थे. पर मूवी-मूवी पर लिखा है करने वाले का नाम. विशाल ने एनडीएफसी फ़िल्म बाज़ार के एक इवेंट में कहा था: “मैं और आमिर एक साथ फ़िल्म बनाने का प्लान कर रहे थे. पर कुछ मतभेदों के चलते वो फ़िल्म एक साल बाद ठंडे बस्ते में चली गई.”

उसी दौरान आमिर को विशाल ओथेलो और लंगड़ा त्यागी के बारे में बताया करते थे. आमिर ने इसके अराउंड कुछ करने के लिए उन्हें प्रोत्साहित किया. उनको विशाल का गढ़ा किरदार लंगड़ा त्यागी बहुत पसंद आया. उन्होंने स्क्रिप्ट पूरी होने पर विशाल को अपने पास आने को कहा. पर विशाल कहते हैं: मैं इस बार उनके झांसे में नहीं आने वाला था. मैं सैफ के पास चला गया. विशाल को इतना तो पता था. किसी रोल के लिए आमिर इतना उत्साहित हैं, मतलब उस रोल में कुछ दम तो है. उन्होंने सैफ का ऑडीशन किया. उन्हें सैफ की आंखों में इस किरदार को करने की आमिर से ज़्यादा भूख दिखी. बाकी तो सब इतिहास है. इस रोल ने सैफ को फ़िल्मफेयर अवार्ड दिलाया. लंगड़ा त्यागी का रोल मनोज बाजपेयी भी करना चाहते थे. पर उनका चेहरा ऐसा नहीं था कि लोग उनके नाम पर फ़िल्म देखने आएं. इसलिए फ़िल्म के डिस्टीब्यूटर्स ने मनोज के लिए हामी नहीं भरी.

केसू और लंगड़ा त्यागी

सैफ ने विशाल से बातचीत बंद कर दी

सैफ को लंगड़ा त्यागी के लिए बाल हटाने थे. पर वो इस किरदार के लिए बाल बढ़ाना चाहते थे. उनका मानना था कि बैंडिट क्वीन में निर्मल पांडे के किरदार की तरह उन्हें बाल रखने चाहिए. विशाल और सैफ के बीच उनके बालों को लेकर कई दिनों तक बहस चलती रही. यहां तक कि सैफ ने विशाल से बात करना बंद कर दिया. ईद के आसपास विशाल ने कहा: 

ये ईद का दिन है, अल्लाह मियां ईद पर की गई कुर्बानी कुबूल करते हैं. चलो अल्लाह के नाम पर अपने बालों की कुर्बानी दे दो.

पर सैफ मानने को तैयार नहीं थे. शूटिंग से एक दिन पहले उन्होंने तमाम मिन्नतों के बाद रात 12 बजे बाल कटाए. बिना बालों वाला लुक काफ़ी पसंद भी किया गया. सैफ को ओमकारा फ़िल्म की भाषा पकड़ने में काफ़ी समय लगा. किरदार की तैयारी के दौरान वो जहां जाते, इसकी बोली पर काम करते रहते. उन्हें एक बज़ कट मिला था वो इसे सुनकर पश्चिमी यूपी की बोली पकड़ने की कोशिश करते.  इस दौरान उनका मालदीव और इटली जाना हुआ. वो इटली की सड़कों पर जॉगिंग कर रहे थे, हेडफोन में ओमकारा के डायलॉग सुन रहे थे. सैफ कहते हैं पहली बार मुझे लगा मैं ऐक्टर हूं. उनके पिता मंसूर अली खान पटौदी ने 'ओमकारा' देखकर कहा था. मुझे कुछ समझ तो नहीं आया, तुम क्या बोल रहे थे. पर सबटाइटल्स के सहारे फ़िल्म अच्छी लगी.

बाक़ी अगले पार्ट में पढ़िए….

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