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मैं कोणार्क टेंपल का नाम सिर्फ सुनी हूं. कभी जाने का मौका नहीं लगा. फोटू में ही बस देखा है. लोग कहते हैं कि ओडिशा गए और कोणार्क मंदिर नहीं देखा तो कुछ नहीं देखा. मतलब वहां जाना बेकार है. मेरे जैसे और भी लोग होंगे जिन्होंने ओडिशा घूमने का प्लान अबतक नहीं बनाया. या फिर उन्हें भी मौका नहीं लगा होगा. क्या खास है इस मंदिर में ये जान लीजिए.
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कोणार्क मंदिर भगवान सूर्य का मंदिर है. 13वीं शताब्दी में गंगा वंश के राजा नरसिंहदेव 1 ने बनवाया था. ये ओडिशा के कोणार्क शहर में स्थित है.2.
खोंडलाइट और काला ग्रेनाइट एक तरह का पत्थर है. इन दोनों पत्थरों से बना है. ए ही लिए यूरोप के नाविक इसको काला पगोड़ा कहते थे. मंदिर की चोटी में 52 टन मैगनेट लगा है. यूरोपियन कहते थे कि मंदिर में नदी के किनारे से नाव को अपनी तरफ खींचने का पावर है.
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मंदिर का नाम ''कोणार्क दो संस्कृत शब्दों से मिलकर बना है. कोणा'' और आर्क''. जिसका मतलब है कोना और सूर्य.4.
मंदिर को बनाने में पूरे 12 साल लगे थे. कुल 12 हजार मजदूरों ने इसे बनाने में अपना योगदान दिया था.5.
कोणार्क मंदिर चन्द्रभागा नदी के किनारे पर बना हुआ है. ये नदी मंदिर के उत्तरी दिशा से बहते हुए बंगाल की खाड़ी को जोड़ता है. पर अब ये सूख चुका है.
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कलिंगा आर्किटेक्चर के ट्रेडिशनल स्टाइल को ध्यान में रखते हुए मंदिर को एक रथ का शेप दिया गया है. रथ में 12 जोड़ी चक्के लगे हैं जिसे 7 घोड़ें खींच रहे हैं. इन पहियों की परछांई देखकर आप समय का अंदाजा लगा सकते हैं.
पूरे मंदिर पर पत्थर की शानदार नक्काशी की हुई है. ज्यादातर लगी मूर्तियां प्रेम-संबंध को दर्शाती है.

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मंदिर पूरब दिशा की ओर झुका है. ऐसा इसलिए की धूप की किरणें सबसे पहले मंदिर के मेन गेट पर पड़े.
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मंदिर के अंदर भगवान सूर्य की प्रतिमा हवा में झूलती रहती है. इसके लिए मंदिर के बेसमेंट और चोटी पर मैगनेट लगाया गया है. मूर्ति के बीचो-बीच एक चमचमाता हीरा लगा है. जो आने वाली सूर्य की किरणों को रिफलेक्ट करता है.
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1627 में कुर्दा के राजा ने भगवान सूर्य की मूर्ति को कोणार्क से पूरी के जगरनाथ मंदिर में ले गए थे.10.
मंदिर जीवन की नश्वरता को सिखाता है. उसके मेन गेट पर दो शेर की मूर्तियां बनी हैं. जो गौरव को दर्शाता है. हर एक शेर एक हाथी को मार रहा है. जो कि धन का प्रतीक है. हाथी के नीचे इंसान दबा है जो ये दर्शाता है कि कैसे धमंडऔर पैसा इंसान को बर्बाद कर देता है.
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