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जब सोनाली बेंद्रे ने बताया कि कैंसर से ज़्यादा डरावना उसका इलाज क्यों होता है!

'दी लल्लनटॉप' के न्यूज़रूम में सोनाली बेंद्रे का आना हुआ और फिर लल्लनटॉप लोगों ने अपने-अपने सवाल सोनाली के सामने रखें. सोनाली ने खुलकर बातें की. कैंसर के डर से लेकर बचपन में फिल्में देखने की मनाही तक. पढ़िए उनसे बातचीत के कुछ अंश.

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'दी लल्लनटॉप' के संपादक सौरभ द्विवेदी के सवालों का जवाब देती सोनाली बेंद्रे

'दी लल्लनटॉप' के न्यूज़रूम में सोनाली बेंद्रे का आना हुआ और फिर लल्लनटॉप लोगों से उनका सामना हुआ. लोगों ने अपने-अपने सवाल सोनाली के सामने रखें. सोनाली ने खुलकर बातें की. कैंसर के डर से लेकर बचपन में फिल्में देखने की मनाही तक. पढ़िए उनसे बातचीत के कुछ अंश. 

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'दी लल्लनटॉप' के न्यूज़रूम में अपने मज़ेदार किस्से सुनाती सोनाली बेंद्रे 

  
सवाल :- क्या आपको घर में फिल्में या टीवी देखने की इजाज़त थी? और बहुत लोग आपके फैन हैं, पर आप किसकी फैन थी?

सोनाली बेंद्रे :-  मेरे पापा सिविल सर्विस में थें. वो मुझे पढ़ने के लिए ज्यादा फोर्स करते थें. ख़ासकर रीडर डाइजेस्ट या नेशनल जिओग्राफ़ी जैसी मगज़ीन पढ़ने के लिए वो ज्यादा कहते थे. मेरे घर में फिल्में देखने की इजाज़त ही नहीं थी. पर मेरी मासी अमिताभ बच्चन की बहुत बड़ी फैन थी. तो उनके साथ मैं कभी-कभी दो-तीन फिल्में देख लेती थी. मैं खुद एक एक्सीडेंटल ऐक्टर हूँ. मैं किसकी फैन हूँ, ये तो बहुत खतरनाक सवाल है. मुझे नहीं लगता मैं कोई एक नाम ले पाऊँगी. पर जिस तरह से मैंने ज़्यादातर फिल्में देखी हैं, मैं बच्चन साहब की बहुत बड़ी फैन हूं. उनके साथ मेरी पहली फिल्म थी, 'मेज़र साब'. मैं उनके सामने थोड़ी नर्वस थी और ना चाहते हुए भी मेरे पैर कांप रहे थे. लेकिन उनके साथ काम करके मुझे बहुत अच्छा लगा.  

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सवाल :- अगर सोनाली बेंद्रे हीरोइन नहीं होती तो क्या होती?

सोनाली बेंद्रे :- इस सवाल का जवाब मैंने बहुत बार अलग-अलग तरह से दिया है. पर मेरे पास आपके लिए भी एक जवाब है. सन् 2018 की जो मेरी जर्नी रही है, जब मुझे दूसरा मौका मिला. आप अस्पताल के उस बेड पर पड़े हुए, सोच रहे होते हो कि ज़िंदगी जब आपको दूसरा मौका देगी, तब आप क्या करोगे? उस वक्त बहुत सारी बातें दिमाग में चलती हैं. मेरे ज़हन में भी ऐसा ही कुछ चल रहा था. पर मेरे दिमाग की सारी उलझन एक जगह आकर रुकी और वो ये थी कि कैमरे के सामने रहना. तब मुझे रियलाइज़ होता है कि भले मैं एक्सीडेंटल ऐक्टर बनी थी, पर अब इसी प्रोफेशन में रहना है. ये बात भी मुझे बहुत वक्त के बाद समझ आयी. इसलिए मुझे लगता है कि इस सीरीज़ के साथ मुझे एक दूसरा मौका मिला है. और मुझे ऐसा लग रहा है कि मैंने इस बार पहले से ज्यादा बेहतर काम किया है. 

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सवाल :- सोनाली आपने अपने कैंसर के बारे में हमेशा खुलकर बात की है. जब वो डायग्नोस होता है, वहां से लेकर इलाज तक के बीच का जो समय होता है, वो हर कैंसर सर्वाइवर के लिए बहुत डरावना होता है. आपके लाइफ में भी वो टाइम डरावना रहा होगा. क्या आपको याद है कि ऐसे वक्त पर आपको अपने लाइफ में सबसे लो पॉइंट कब लगा? और वो कौन-कौन सी चीजें थी, जिसने आपको सहारा दिया?

सोनाली बेंद्रे :- गांव-देहात की बात छोड़िए, शहरों की औरतें भी अपनी बीमारी के बारे में खुलकर बात नहीं करती. शायद मेरी बीमारी के बढ़ जाने के पीछे की वजह भी यही रही है. हमारे यहां महिलाओं की सोशल कन्डिशनिंग ऐसी है कि वो अपनी बीमारी के बारे में खुलकर बात नहीं करती. संकोच में रहते हुए, उसे खींचती हैं और इस तरह बीमारी और बढ़ जाती है. अगर सही वक्त पर पता चल जाए, तो कैंसर इतना डरावना नहीं है. इसका इलाज संभव है. लेकिन जल्दी पकड़ में आने के लिए उसकी टेस्टिंग जरूरी है. मेरे केस में ऐसा था कि जिस दिन कैंसर का पता चला, उसके चौथे दिन मेरे पति मुझे लेकर विदेश चले गए. हर एक चीज को लेकर मैं सोशल मीडिया पर अपडेट दे रही थी. मैं चाह रही थी कि अगर चार लोग भी मुझे सुनें, तो मैं अपनी उन दिनों की कहानी डॉक्यूमेंट करूं. कैंसर तो खतरनाक है, लेकिन किमोथारेपी और उसके साइडइफेक्ट कम डरावने नहीं हैं. मैं जिस स्टेज पर थी, वहां कोई और ऑप्शन भी नहीं देख सकते थे. क्योंकि वो तब तक बहुत बढ़ चुका था. अभी मैं ठीक होने के प्रोसेस में ही हूं. इसमें मुझे मेरे परिवार का सपोर्ट बहुत मिला. और वो तमाम चीजें जो हम जानते हैं जैसे योगा और अच्छा खाना उन सबसे मदद मिली.  

सवाल :- बॉलीवुड में हमने देखा है कि हीरोइन बहुत जल्द बूढ़ी हो जाती है. यहां अगर 40 साल के हीरो की मां को दिखाना है, तो 35 साल की लड़की को कास्ट कर लिया जाता है. लेकिन OTT आने के बाद क्या ऐसा हो पाया है कि 40 साल के हीरो के सामने भी आप हीरोइन का रोल कर सकती हैं? क्या वो स्पेस OTT ने आपको वापस दिया है?

सोनाली बेंद्रे :- ये बात बिल्कुल सही है. जिन हीरोज़ के साथ मैंने काम किया है, वो अभी तक हीरो बने हुए हैं. और ऐसे रोल कर रहें हैं, जो शायद मुझे नहीं मिलेगा. लेकिन मैं कहना चाहूँगी कि जो मैं कर चुकी हूँ, उसमें अब मेरा रुझान नहीं रहा. अब मुझे नई चीजें और नये चैलेंज़ेस चाहिए. इसके लिए मैं OTT की शुक्रगुज़ार हूँ. इसके आने का फ़ायदा तो हुआ है. मैं फिल्म इंडस्ट्री में कोई ट्रेनिंग लेकर नहीं आयी थी. आप कितनी भी ट्रैनिंग लेकर आओ, कुछ चीजें आप ज़िन्दगी के अनुभव से सीखते हैं. फिर एक वक्त के बाद आप समझने लगते हो कि अब मज़ा आ रहा है. ये मेरा क्राफ्ट है, और अब मैं इसे अच्छी तरह से समझने लगी हूं. लेकिन फिर अचानक से आपके रास्ते बंद हो जाते हैं, क्योंकि रोल मिलना बंद हो जाता हैं. लेकिन OTT के वजह से वो दरवाजे फिर से खुलने लगे हैं.      

पूरा इंटरव्यू आप लल्लनटॉप के यूट्यूब चैनल पर देख सकते हैं. इसे देखने के लिए क्लिक करें.

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