Pathaan को देखने की तमाम वजहें हैं. और देखी भी जानी चाहिए. मगर हमारा काम आपको किसी भी चीज़ का दोनों पक्ष बताना है. अच्छा भी, बुरा भी. Shahrukh Khan की इस फिल्म की अच्छी बातें, जिनकी वजह से ये देखी जानी चाहिए, वो आप यहां क्लिक करके पढ़ सकते हैं. आगे हम फिल्म के उन मसलों पर बात करेंगे, जो 'पठान' को कमज़ोर फिल्म बनाती हैं. इस बातचीत के फ्लो में फिल्म से जुड़ी कुछ बातों का बाहर आ जाना लाज़िमी है. इसलिए अगर आपने फिल्म नहीं देखी है, तो प्लीज़ आगे पढ़ने/देखने से बचें. वरना आपका फिल्म देखने का मज़ा किरकिरा हो सकता है.
वो 4 वजहें, जो पठान को एक कमज़ोर फिल्म बनाकर छोड़ देती हैं
'पठान' खुद को शाहरुख खान की कमबैक फिल्म बताकर दर्शक बटोरना चाहती है. वो सिनेमा की नहीं, शाहरुख फैंस की सर्विस करती है.


1) बुरी और भटकी हुई कहानी
'पठान' की कहानी एक इंडियन स्पाय के बारे में है, जिसे मरा हुआ मान लिया गया था. मगर वो ज़िंदा है. जब उसकी कहानी शुरू होती है, तो उसमें बहुत सारे सब-प्लॉट्स खुल जाते हैं. कहानी के इन अलग-अलग सिरों को छूती हुई फिल्म थोड़ी भटक सी लगती है. क्योंकि पठान अपने मेन मिशन के पहले बहुत सारे छोटे-छोटे मसलों में फंस जाता है. उससे मेन कहानी पर फोकस नहीं रह पाता. दीपिका और शाहरुख के बीच जो रोमैंटिक एंगल क्रिएट करने की कोशिश हुई है, वो भी पूरी तरह से वर्क आउट नहीं होती. अधूरा सा छूटा रह जाता है. ये चीज़ फिल्म की रफ्तार को प्रभावित करती है.
किसी फिल्म की सबसे ज़रूरी चीज़ होती है कहानी. अगर कोई सुपरस्टार चार साल के बाद कोई फिल्म कर रहा है, तो कम से कम उसकी कहानी सधी होनी चाहिए. कौन सी कहानी सधी और सही है, ये बिल्कुल सब्जेक्टिव मसला है.
2) फिल्म के डायलॉग्स, जो और बेहतर और यादगार हो सकते थे
जब कोई मसाला एंटरटेनर टाइप 'बड़ी' पिक्चर बनती है, तो पब्लिक को उससे फुल मज़ा एक्सपेक्ट करती है. लोग फिल्मों के डायलॉग्स सालों तक याद रखते हैं. शाहरुख के खुद कई डायलॉग्स पब्लिक को मुंह जबानी याद हैं. 'पठान' में आपको सिर्फ एक डायलॉग ऐसा मिलता है, जिसे आप याद रख सकें. या आगे कहीं इस्तेमाल कर सकें. ''एक सोल्जर ये नहीं पूछता, देश ने उसके लिए क्या किया. पूछता है, वो देश के लिए क्या कर सकता है. जय हिंद!''
मगर ये लाइन भी 1961 में अमेरिका के 35वें राष्ट्रपति जॉन एफ. केनेडी के स्पीच से कॉपी की गई है. डिट्टो. इस बारे में विस्तार से आप यहां क्लिक करके पढ़ सकते हैं.
कई बार डायलॉग्स फिल्म के वर्ड ऑफ माउथ को मजबूत करती हैं. 'पठान' के पास ये पावर नहीं है. इस फिल्म के डायलॉग्स अब्बास टायरवाला ने लिखे हैं.
3) कमज़ोर VFX वर्क
आज कल हर फिल्म के VFX को खराब बोलने का ट्रेंड सा चल पड़ा है. जब तक मामला 'आदिपुरुष' जितना गड़बड़ न हो, तब तक अधिकतर लोग VFX या CGI की कमियां पकड़ भी नहीं पाते. क्योंकि वो बहुत माइन्यूट काम होता है. जैसे पिछले दिनों 'भेड़िया' आई थी. उसका VFX वर्क भले बहुत तगड़ा नहीं था. मगर खलने वाला नहीं था. 'ब्रह्मास्त्र' में VFX का काम वर्ल्ड क्लास था. 'पठान' इस डिपार्टमेंट भी हल्की पड़ जाती है. फिल्म के दो सीन्स हैं, जिनमें मुझे पर्टिकुलरी ऐसा लगा कि जो मैं देख रहा हूं, वो विज़ुअली थोड़ा कमज़ोर या कम यकीनी है. सबसे पहले तो सलमान और शाहरुख का जो एक्शन सीक्वेंस है. उसके बारे में ज़्यादा बता नहीं सकते. दूसरा सीन फिल्म के क्लाइमैक्स में आता है, जब जॉन और शाहरुख हवा में उड़ रहे हैं. वहां मामला थोड़ा और बेहतर हो सकता था. जो कि फिल्म देखने को अनुभव को और बेहतर बनाता.
4) लॉजिक की कमी
'पठान' ने स्पाय थ्रिलर और शाहरुख खान फिल्म होने के नाम पर सारी तार्किकता को साइड पर रख देती है. एक्शन सीक्वेंस प्लान करते वक्त मेकर्स ने जैसे लॉजिक वाला बॉक्स ही खाली छोड़ दिया. फिल्म में कभी भी कुछ भी हो जा रहा है और उसका जस्टिफिकेशन कुछ नहीं है. जैसे फिल्म में एक सीन है, जहां शाहरुख और जॉन पहली बार लड़ते हैं. इस सीन में जॉन अब्राहम दो उड़ते हुए हेलीकॉप्टर को चलते हुए ट्रक से बांध देते हैं. और उसके ऊपर शाहरुख के साथ मुक्का-मुक्की कर रहे हैं. उदाहरण के तौर पर मैंने सिर्फ ये सीन बताया. ऐसे फिल्म में कई सीन हैं. जैसे 'रक्तबीज़' चोरी के लिए हवा में उड़कर जाने वाला सीन भी वैसा ही है.
हर चीज़ में सुधार की गुंजाइश हमेशा बाकी रहती है. 'पठान' भी वैसी ही है. मेरा मसला सिर्फ ये है कि 'पठान' खुद को शाहरुख खान की कमबैक फिल्म बताकर सारे दर्शक बटोर लेना चाहती है. वो सिनेमा की नहीं, शाहरुख फैंस की सर्विस करती है. सिनेमा की बेहतरी में उसका योगदान न के बराबर रहता है. इसलिए 'पठान' आपको कुछ भी नया ऑफर नहीं कर पाती. और एक औसत सी फिल्म बनकर रह जाती है.
वीडियो: पठान देखकर आए लल्लनटॉप के दो लड़के, सलमान, शाहरुख पर क्यों भिड़ गए?













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