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मूवी रिव्यू - पोन्नियिन सेल्वन 2 (PS-2)

इस फिल्म का सबसे मज़बूत और असरदार पक्ष है, नंदिनी और आदित्य करिकालन की कहानी.

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मणि रत्नम उन चुनिंदा फिल्ममेकर्स में से हैं जिन्हें परदे पर प्रेम दिखाना आता है. फोटो - ट्रेलर स्क्रीनशॉट

Ponniyin Selvan-1 के एंड में हम देखते हैं कि अरुणमोली का जहाज़ डूब जाता है. सब समझते हैं कि वो और वंदितेवन नहीं रहे. दूसरी ओर चोल साम्राज्य के प्रति षड़यंत्र गहरा ही होता जा रहा है. जब सब खत्म हो जाएगा और कहीं पे भी कुछ नहीं होगा, तब भी होंगे आदित्य करिकालन और नंदिनी. एक समय के प्रेमी. लेकिन अब बदले की आग में झुलसे हुए. इसी बदले में साम्राज्य धूल हो जाएं, उसकी भी फिक्र नहीं. 

‘पोन्नियिन सेल्वन-2’ की कहानी पहली फिल्म के इवेंट्स के बाद से ही खुलती है. भाई को मृत मानकर आदित्य तिलमिलाया हुआ है. किसी भी हद तक जाकर दो चीज़ें सुनिश्चित करना चाहता है– पहला कि काश उसका भाई जीवित हो. और दूसरा उस पर हमला करने वालों को सज़ा दे सके. समय और इलाज लेकर अरुणमोली फिर लौटता है. दूसरी ओर पांड्या वंश के लोग और नंदिनी एक ही ख्वाब पालकर जी रहे हैं. आदित्य करिकालन को अपने हाथों से मारें. इन सभी लोगों की महत्वाकांक्षाएं कहां जाकर रुकती हैं, यही इस फिल्म की कहानी है.

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वंदितेवन के रोल में कार्ति. 

बहुत लोग डूबकर प्रेम करना जानते हैं. लेकिन बहुत कम लोग उस प्रेम की एक समझ अपने साथ लेकर उसे पूरी निश्छलता के साथ परदे पर उतार पाते हैं. मणि रत्नम ऐसे चुनिंदा लोगों में से हैं. उनकी फिल्में देखकर लगता है कि वो सिर्फ प्रेम के सुहाने पल दिखाने के पक्षधर नहीं. PS-2 में प्रेम की दो स्टेज दिखती हैं. पहला जो नटखट है. हल्का-हल्का पनपने लगा है. वंदितेवन और कुंदवई के बीच. हालांकि ये बस चुनिंदा मोमेंट्स ही रहे. प्रेम असफल होने पर कैसी कड़वाहट छोड़ जाता है, इसका रूप हमें देखने को मिलता है, आदित्य करिकालन और नंदिनी के बीच. आदित्य को हम अधिकांश समय युद्धभूमि पर देखते हैं. गुस्से में सवार. अपनी तलवार लाल रंगने का मौका ढूंढने वाला. अपने आप में खुश नहीं रहने वाला. विनाशकारी प्रवृत्ति वाला. जो कहता है कि खुद से घृणा करने वाले को शांति नहीं मिलती. 

दो प्रेमियों के बीच रहे इंटिमेट मोमेंट्स को मणि रत्नम पूरी ईमानदारी से उतारते हैं. आदित्य और नंदिनी के बीच का गुस्सा देखकर समझ आता है कि एक समय इन दोनों ने डूबकर प्रेम किया था. गुस्सा, इर्ष्या जैसे भाव ने तो बाद में पैठ मारी. क्लाइमैक्स से पहले दोनों किरदारों के बीच एक सीन है. मेरे लिए वो पूरी फिल्म का सबसे असरदार और सबसे ईमानदार सीन था. आदित्य जैसा किसी और के सामने नहीं रह सकता. सिर्फ एक इंसान के सामने ही बिना झिझके वल्नरेबल हो सकता है. अपनी गलती को अपनाने की हिम्मत रख सकता है. सिर्फ नंदिनी के सामने उसका कवच गिरता है. लिटरली भी और प्रतीकात्मक रूप से भी. 

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फिल्म का एक्शन एन्जॉयेबल है.   

ये सीन आपको एहसास करवाता है कि ये आदित्य और नंदिनी का यूनिवर्स है. उस कक्ष के बाहर की दुनिया बस चल रही है. अगर PS-2 सिर्फ इन दोनों लोगों की लव स्टोरी होती, तो शायद ज़्यादा बेहतर फिल्म बनकर निकलती. नंदिनी और आदित्य बने ऐश्वर्या और विक्रम इस फिल्म के स्टार हैं. इन दोनों लोगों की दुनिया से बाहर निकलते ही फिल्म गड़बड़ा जाती है. पहली बात तो ‘पोन्नियिन सेल्वन’ की कहानी इतनी बड़ी है कि इसे एक सीरीज़ होना चाहिए था. यहां बहुत सारी जानकारी आपकी ओर भेजी जाती है. पहले पार्ट से भी बहुत लोगों को ये शिकायत रही. दूसरे पार्ट में भी ये बदलती नहीं. काफी कुछ घट रहा है. आप उन्हें जोड़कर सेंस भी बना लेते हैं. लेकिन तब अचानक से कैरेक्टर्स के मोटिव बदल जाते हैं. 

जैसे कोई शख्स पिछले दो पार्ट्स से एक भावना लेकर चल रहा है. मगर जैसे ही फिल्म खत्म होने को आती है, वो बदल जाता है. कुल जमा बात ये कि ग्रांड फिल्म को बड़ा फर्गेटेबल क्लाइमैक्स दिया गया है. ये कुछ वैसा ही था कि स्टोरी को इतना फैला लिया, अब बस इसे किसी भी तरह समेटकर छुट्टी पाओ. ये बात निराश करती है. बड़े लेवल पर माउंट की गई फिल्म सीरीज़ को वैसा फेयरवेल नहीं मिला. फर्स्ट हाफ की तुलना में सेकंड हाफ में चीज़ें फिल्म के पक्ष में काम नहीं करती. मुझे यहां एक बात ने परेशान किया. वो था गैर ज़रूरी रूप से कैमरा का घूमना. लगातार इतने सीन लाइन से आए जहां कोई किरदार बोल रहा है और कैमरा उसके इर्द-गिर्द रिवॉल्व हो रहा है. इसे रिपीट करने से आपके किरदार की बात का वज़न ही कम होता है.  

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ऐश्वर्या राय दोनों पार्ट्स की स्टार हैं. 

PS-2 से सिर्फ मुझे शिकायतें ही नहीं रही. ऐश्वर्या और विक्रम वाले मोमेंट्स के अलावा कुछ और फ्रंट्स पर फिल्म सही काम करती है. जैसे किरदारों का ट्रांज़िशन होना. लेकिन इस बदलाव में वो अपने मूल्य नहीं खोते. अरुणमोली खुद को एक मज़बूत राजा साबित करते हैं. लेकिन ऐसा करने में वो लोगों पर भरोसा करना नहीं छोड़ते. एक अच्छा भाई, दोस्त और बेटा होना नहीं छोड़ते. PS-2 के पास कहने को बहुत कुछ था. लेकिन उतना समय नहीं. उस वजह से ये कुछ अहम किरदार और उनकी बैकस्टोरी के साथ न्याय नहीं कर पाती. फिल्म खत्म होने पर याद रखने लायक मोमेंट्स ही बच जाते हैं. पूरी फिल्म नहीं. 

वीडियो: मूवी रिव्यू: PS-1