Maqbool. एक ऐसी फिल्म जो सिनेमा से इश्क़ करा दे. कास्ट भी ऐसी कि किरदार निभाए नहीं, जिए गए. और इस तरह जिए गए कि हज़ारों सिनेप्रेमियों को इस फिल्म के डायलॉग लफ्ज़-ब-लफ्ज़ याद हैं. जैसे, “गिलौरी खाया करो गुलफ़ाम, ज़बान क़ाबू में रहती है”.
"मक़बूल के समय ओम पुरी, नसीर साहब, पीयूष और इरफ़ान के कारण दहशत में था मैं"
पंकज कपूर ने 'मक़बूल' के अब्बा जी के किरदार में कुछ बदलाव सुझाए. विशाल भारद्वाज ने वो बदलाव किए, तब पंकज इस फिल्म के लिए माने.
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इस फिल्म के मुरीद अक्सर ये और इस फिल्म के कई अन्य संवाद दोहराते हैं. बहरहाल, पिछले दिनों जब Pankaj Kapur, The Lallantop के ख़ास कार्यक्रम Guest in the Newsroom में आए, तो इस फिल्म का ज़िक्र होना लाज़मी था. इस दिलखुलास बतकही में पंकज कपूर ने बताया कि ‘मक़बूल’ में काम करने का उनका अनुभव कैसा रहा. उन्होंने बताया कि Om Puri, Irrfan, Piyush Mishra, Naseeruddin Shah और Tabu जैसे मंझे एक्टर्स के साथ काम करने को लेकर वो दहशत में थे. पंकज कपूर जैसा समृद्ध अभिनेता अभिनय को लेकर दशहत में था! ये सुनना अटपटा सा लगता है. ज़ेहन में सहसा ही सवाल उठता है कि कहीं मॉडेस्टी का अतिरेक तो नहीं. मगर पंकज कपूर ने बड़ी साफ़दिली से बताया कि ‘मक़बूल’ की शूटिंग के दौरान वो सचमुच दहशत में क्यों थे. जिस अंदाज़ में उन्होंने ये बात कही, वो मॉडेस्टी कम और सच्चाई ज़्यादा लगी. उन्होंने कहा,
“हम सब NSD की अलग-अलग बैच से थे. मगर कभी कॉलेज के दिनों की बात नहीं निकली. क्योंकि सब लोग अपने-अपने काम में मसरूफ़ थे. और वक्त बहुत कम था. लिमिटेड बजट की फिल्म थी. हां, मेरे अंदर इस फिल्म को हां कहने और इसके बनने के दौरान दहशत ज़रूर थी. दहशत ये कि इस फिल्म में बड़े-बड़े अभिनेता काम कर रहे हैं. नसीर साहब हैं, ओम पुरी हैं, इरफ़ान, पीयूष मिश्रा और तबू हैं. जिस वक्त मैंने इस फिल्म में क़दम रखा, तब ये सब बहुत बड़े नाम थे. मेरे लिए एक हौव्वा सा था कि बड़ी भारी कास्ट है. सारे के सारे बेहतरीन एक्टर्स हैं. मैं क़बूल करना चाहूंगा कि मेरे ज़हन में दहशत थी. इसलिए मैंने मेहनत भी वैसी ही कि ताकि इनके सामने खड़ा हो सकूं.”
# अब्बा जी का नहीं, काका का रोल मिला था पंकज को
पंकज कपूर ने इस इंटरव्यू में बताया कि ‘मक़बूल’ में पहले उन्हें अब्बा जी का नहीं, बल्कि काका का किरदार ऑफर किया था. वो किरदार जो बाद में पीयूष मिश्रा ने निभाया. ये स्विच क्यों और कैसे हुआ, इसके बारे में पंकज कपूर ने कहा,
“शुरुआत में विशाल भारद्वाज ने मुझे वो किरदार दिया था, जो पीयूष मिश्रा जी ने निभाया है. बाद में उन्होंने कहा कि अब आप अब्बा जी का रोल देख लीजिए. मैंने कहा पहले तो आप दूसरा रोल कह रहे थे. अब इसके लिए आप मुझे महीनाभर दीजिए. मैं स्क्रिप्ट पढ़ता हूं. देखता हूं कुछ कर पाऊंगा या नहीं इसके साथ. महीनेभर बाद हमारी बातचीत हुई और इस किरदार के लिए मेरा नज़रिया मैंने उनके सामने रखा. कुछ बदलाव थे. विशाल भारद्वाज और राइटर साहब अब्बास टायरवाला को वो बदलाव मुनासिब लगे, तब मुझे लगा कि मैं ये कैरेक्टर कर पाऊंगा. स्क्रिप्ट में जहांगीर खां बड़ा ख़तरनाक आदमी बताया गया था. लोग उससे थर्राते हैं. बड़ा डॉन है वो. मुझे लगा कि उसके नाम से जो दहशत फैली है, उसका नज़ारा फिल्म में दिखना चाहिए. ताकि ये सामने आए कि वो इंसान कैसा है? क्यों है उसकी दहशत? फिर कॉस्ट्यूम, डायलॉग बहुत चीज़ों पर चर्चा हुई. मैं शुक्रगुज़ार हूं विशाल साहब का कि ज़्यादातर मुक़दमे उन्होंने मुझे जीत लेने दिए.”
‘मक़बूल’ साल 2003 में रिलीज़ हुई. ये शेक्सपियर के मशहूर प्ले ‘मैकबेथ’ का सिनेमैटिक एडैप्टेशन है. और हिंदी सिनेमा की कल्ट फिल्मों में शुमार है. इसमें जहांगीर खां के किरदार के लिए पंकज कपूर को बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर के नेशनल फिल्म अवॉर्ड से नवाज़ा गया. इसके लिए उन्हें फिल्मफेयर बेस्ट एक्टर अवॉर्ड भी मिला. साल 2004 के कान फिल्म फेस्टिवल में भी ‘मक़बूल’ की स्क्रीनिंग की गई. इस फिल्म में दीपक डोबरियाल, मुरली शर्मा, दिब्येंदु भट्टाचार्य और दयाशंकर पांडे जैसे एक्टर्स ने भी काम किया है.
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