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OMG 2: मूवी रिव्यू

अक्षय कुमार किसी भी पॉइंट पर खुद को फिल्म का हीरो नहीं बनने देते. फिल्म की कहानी ही इसकी असली हीरो है, यही इसकी सबसे बड़ी जीत है.

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फिल्म के ट्रेलर से कहानी का बिल्कुल भी आइडिया नहीं लगता है.

अक्षय कुमार की फिल्म OMG 2 रिलीज़ हो गई है. रिव्यू में आगे बढ़ने से पहले मैं इस वाक्य को सही करना चाहूंगा. OMG 2 अक्षय की फिल्म नहीं है, कम से बतौर हीरो तो. ये फिल्म है राइटर और डायरेक्टर अमित राय की. अगर एक्टर्स से फिल्म को पहचाना जाए तो ये फिल्म है पंकज त्रिपाठी और यामी गौतम जैसे कलाकारों की. अक्षय के क्रेडिट को खारिज नहीं किया जा रहा. बस ये अक्षय कुमार द सुपरस्टार की फिल्म नहीं. और यही इसकी सबसे बड़ी जीत भी है. 

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कहानी खुलती है महाकाल की नगरी में. कांति की उस शहर में दुकान है. शिव को अपना आराध्य मानता है. अपनी बीवी और दो बच्चों के साथ सुखी जीवन बिता रहा है. यहां नोट करने वाली बात है कि उनका बेटा विवेक और बेटी अलग-अलग स्कूल में पढ़ते हैं. विवेक शहर के सबसे बड़े इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ता है. एक दिन उसी बेटे के स्कूल से बुलावा आता है. स्कूल वाले कहते हैं कि आपके बेटे ने शर्मनाक हरकत की है. इसे निकाला जाता है. बेटे ने जो किया वो पूरे शहर में वायरल हो जाता है. कांति अपने बेटे के सम्मान के लिए और नग्न सच के लिए कोर्ट के दरवाज़े पर पहुंचता है. आगे ढाई घंटे की फिल्म में कई दकियानूसी मान्यताओं से, छिप-छिपकर होने वाली ज़रूरी बातों से सामना होता है.

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सेंसर बोर्ड के बदलावों के बाद अक्षय का कैरेक्टर शिव की जगह शिव का दूत बन गया.  

OMG 2 ने अक्षय कुमार की स्टार पावर को बहुत कायदे से इस्तेमाल किया है. फिल्म एक सेंसिबल सब्जेक्ट पर बनी है. लोगों तक पहुंचनी चाहिए. इस मकसद से स्टार इसका चेहरा बना. लेकिन उस चेहरे की परछाई में असली हीरो कहीं नहीं ढकता – वो है फिल्म की कहानी और उसका अपने टॉपिक को संवेदनशीलता के साथ हैंडल करना. किसी भी पॉइंट पर अक्षय कहानी को ओवरशैडो करते नहीं दिखते. वो कहानी के पहिये को आगे ले जाने का काम ज़रूर करते हैं. लेकिन उस पहिये को धक्का बाकी किरदार ही दे रहे हैं. अक्षय के कैरेक्टर को गैर ज़रूरी ढंग से फुटेज नहीं दी गई. उन्होंने काम भी अच्छा किया. कुछ सीन्स में मज़ेदार लगते हैं. सीरियस सीन्स में उनकी डायलॉग डिलीवरी सही है, अखरती नहीं. 

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दुनिया मार्स पर कोलॉनी बनाने वाली है. ऑटोमैटिक गाड़ियां चल रही हैं. इधर हम सबसे निजी, सबसे इंटीमेट बात करने में सकपका जाते हैं. महिलाओं के पल्लू मुंह में दब जाते हैं. पुरुष आंखें फेरने लगते हैं. बच्चों के कान पर हाथ रख देते हैं. सेक्स शब्द सुनने पर ये हमारा सार्वजनिक रिएक्शन बन गया है. सेक्स सुनने पर ये हाल है तो उसकी एजुकेशन पर तो कहां ही बात होगी. फिल्म में एक लाइन है कि इंसान के पैदा होने से लेकर उसकी डेथ तक, हर जगह सेक्स का रोल है. फिर भी हम इसके प्रति जागरूकता नहीं रखना चाहते. हमारे जेनिटल्स को प्राइवेट पार्ट कहकर उनकी जानकारी भी बस प्राइवेट ही रखना चाहते हैं. फिल्म ऐसे ही बिंदुओं पर बात करती है. 

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पंकज त्रिपाठी अपने किरदार के साथ पूरा न्याय करते हैं. 

ऐसा और भी फिल्मों में हो चुका है, तो फिर OMG 2 में नया क्या है. OMG 2 सेक्स एजुकेशन पर ज्ञान झाड़कर आगे नहीं बढ़ना चाहती. ये किसी भी पॉइंट पर प्रीच करने की कोशिश नहीं करती. ना ही अपने सब्जेक्ट को हंसी-मज़ाक का पात्र बनाती है. वो उसकी गंभीरता को पूरी तरह से समझती है. ऐसा नहीं है कि फिल्म में ह्यूमर नहीं. भरपूर ह्यूमर है और वो लैंड भी करता है. फिर चाहे वो कोर्ट वाले सीन हों या कांति का अंग्रेज़ी ना समझ पाना हो. लेकिन एक भी जोक फिल्म की मैसेजिंग को हल्का नहीं पड़ने देता. 

फिल्म की शुरुआत होती है सेक्स से जुड़े सामाजिक मिथकों से. कि ये करोगे तो ऐसा हो जाएगा. ऐसा नहीं करोगे तो वैसा हो जाएगा टाइप बातें. ये बातें एक उम्र के बाद भले ही मज़ाक लगती हैं. लेकिन जीवन के एक दौर में ऐसी बातों ने हम सभी को डराया है. फिर चाहे ऐसी बातें ट्यूशन वाले दोस्त ने बताई हों. या स्कूल के किसी सीनियर ने. ऐसे ही मिथकों से इनसिक्योरिटी पैदा होती है कि मैंने कुछ गलत किया. मैं सही इंसान नहीं. फिल्म ऐसे सभी बिंदुओं को छूती है. अपने हिसाब से जवाब देने की कोशिश भी करती है. फिल्म में कुछ खामियां भी हैं. जैसे इसका हल्का क्लाइमैक्स. कहानी हाई पॉइंट पर जाकर बड़ी शांति से बंद हो जाती है. लेकिन वो इतनी बड़ी कमी बनकर नहीं उभरता कि फिल्म को खारिज कर दिया जाए. 

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यामी गौतम ने अपने किरदार को ऐसे कैरी किया कि पुरुषों से भरे कमरे में भी लोग रुककर उन्हें सुनें. 

सब्जेक्ट के बाद बात अब एक्टर्स की. कांति बने पंकज त्रिपाठी ने सिर्फ अपने कैरेक्टर के एक्सेंट को नहीं पकड़ा. उन्होंने उसकी मासूमियत को भी समझा. एक आदमी जो पहले अपने मिथकों, अपने पूर्वाग्रहों से लड़ता है और फिर दुनिया का सामना करता है. पंकज त्रिपाठी अपने किरदार को बासी नहीं होने देते. वो मज़बूती के साथ केस लड़ते हैं. कहानी में मज़ा तभी है जब हीरो को बराबर की टक्कर मिलती रहे. यामी गौतम ने कामिनी का कैरेक्टर प्ले किया. वही कांति के सामने केस लड़ रही होती है. 

यामी गौतम ने अपने कैरेक्टर को ऐसे कैरी किया कि जैसे ही वो कमरे में एंट्री लें, हर कोई रुककर उनकी बात सुनेगा. कामिनी वो सारे तर्क देती है जो हमारे मन में धंसे हुए हैं. बस जज किए जाने के डर से हम बोलते हैं. जो हम में से अधिकांश लोगों को सही ही लगते हैं. यामी की प्रेज़ेंस मज़बूत है. इस किरदार के जूतों में वो कॉन्फिडेंट दिखती हैं. यहां मैंने एक और बात नोटिस की. कुछ दिन पहले ‘रॉकी और रानी की प्रेम कहानी’ देखी थी. वहां जया बच्चन का किरदार और उसकी पितृसत्तात्मक सोच से उपजी वैल्यूज़ ही रॉकी और रानी की दुश्मन होती हैं. OMG में कामिनी भी उसी सोच को रीप्रेज़ेंट करती है, जो सेक्स जैसे टॉपिक को सिर्फ परदे में ढके रहने देना चाहता है. इन दोनों फिल्मों ने दर्शाया कि पितृसत्ता का असर सिर्फ पुरुषों पर ही नहीं हो रहा.  

OMG 2 ‘गदर 2’ जैसी बड़ी फिल्म के साथ क्लैश कर रही है. दोनों फिल्मों की अपील एक-दूसरे से बिल्कुल जुदा है. बस एक बात कॉमन है. दोनों परिवारों के साथ देखी जानी चाहिए. हां, एक बात और. OMG 2 में ‘गदर’ का एक मज़ेदार रेफ्रेंस है. फिल्म देखने पर ही आप स्पॉट कर पाएंगे. ये जानबूझकर किया गया या ऐंवयी है, ये तो मेकर्स ही जानें. लेकिन है कमाल 

वीडियो: मूवी रिव्यू: बवाल

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