'दोस्त और लड़की में हमेशा लड़की ही जीतती है.' इसे फिल्म 'सोनू के टीटू की स्वीटी' का हुक लाइन माना जा सकता है. पूरी फिल्म इसी लाइन को साकार करने में निकलती है. फिल्म शुरू होती है कार्तिक आर्यन यानी सोनू के मोनोलॉग से. 'प्यार का पंचनामा 2' में उनकी एक सांस में बिना रुके बोले गए डायलॉग को बहुत पसंद किया गया था. उस फिल्म में तो माहौल के अनुसार वो फिट था. इस फिल्म में साफ पता चलता है कि लोगों को उसी मोनोलॉग से स्टार्ट करके एंगेज करने की कोशिश की जा रही है. जो नाकाम साबित होती है. 'सोनू के टीटू की स्वीटी' की कहानी ठीक उतनी ही और वैसी ही है, जैसी आपको ट्रेलर में दिखाई गई थी. दो लड़के हैं- सोनू और टीटू. सोनू की मां नहीं है इसलिए उसका पालन-पोषण भी टीटू के साथ ही हुआ है. बहुत गहरी दोस्ती है. सोनू टीटू को लेकर बहुत पज़ेसिव है. टीटू का ब्रेकअप होता है और वो सेटल होने के लिए शादी का मन बना लेता है. शादी फिक्स हो जाती है. जिस लड़की से टीटू की शादी फिक्स हुई है, उसपर सोनू को भयानक वाला शक है. उसे लगता है की ये 'टू गुड टु बी ट्रू' वाला सीन है. मतलब लड़की सिर्फ अच्छा बनने का ढ़ोंग कर रही है. ये बात वो टीटू से कर नहीं सकता क्योंकि टीटू को लड़की बहुत पसंद है और वो उसके खिलाफ कुछ भी सुनने के मूड में नहीं है.

पहले सोनू अपनी शक वाली बात को कंफर्म करता है. इसी बीच उसे स्वीटी चैलेंज कर देती है कि 'दोस्त और लड़की में हमेशा लड़की ही जीतती है'. पहले तो वो जुगाड़ लगाकर शर्त जीतने की कोशिश करता है. ऐसा न होता देख चैलेंज वगैरह पे मिट्टी डालकर अपने दोस्त को उस शादी से बचाने की कोशिश करने लगता है. अब बचा पाता है या नहीं ये देखने के लिए आपको सिनेमाघर में जाना पड़ेगा. अगर एक्टिंग की बात करें तो, कार्तिक आर्यन इस तरह के रोल में इतने टाइपकास्ट हो गए हैं कि परफेक्ट हो गए हैं. इस फ़िल्म में सनी और नुसरत लीड पेअर हैं लेकिन इन दोनों से अच्छी केमिस्ट्री सनी और कार्तिक के बीच देखने को मिलेगी. फ़िल्म में सबसे इंटरेस्टिंग कैरेक्टर है आलोक नाथ का. उनको बाबू जी वाले इमेज से निकालकर एक नया मेकओवर दिया गया है. जो यकीन मानिए फ़िल्म का सबसे मजेदार हिस्सा. आलोक नाथ जितनी भी बार स्क्रीन पर आते हैं, मौज देके जाते है. नुसरत जब से इंडस्ट्री में आई हैं वही डॉमिनेटिंग गर्लफ्रेंड वाला रोल किए जा रही हैं. उस तरह के किरदार में उन्हें देखकर अब तो जनता भी बोर हो गई है. कहीं मिलें तो बता दीजिएगा.

लव रंजन की ये चौथी फिल्म है. लेकिन इन चार फिल्मों से ही उन्होंने अपनी एक अलग तरह की ऑडियंस बना ली है. जो यंग है रिलेशनशिप में आकर उसके झोल को समझने की कोशिश में है. जिन्हें बढ़िया बेस बाले फुट टैपिंग म्यूज़िक चाहिए. इस फिल्म में उन्होंने ये भी बताया है कि सिर्फ लड़के ही नहीं लड़कियां भी विलेन हो सकती हैं. मतलब वो जेंडर वाला स्टीरियोटाइप तोड़ने की कोशिश की है. बैलेंस को बनाए रखने के लिए फिल्म में एक दूसरी फीमेल कैरेक्टर भी है, जो रेगुलर फीमेल साइडकिक प्ले करती है और जाने से पहले क्लाइमैक्स को थोड़ा और खींचाऊ बना देती है. कुछ अच्छा और कुुछ बुरा हर चीज़ में होता है.कहने का मतलब ये कि लव ने अपने लिए एक सेेेपरेट जॉनर क्रिएट किया है और उसमें वो अच्छा परफॉर्म कर रहे हैं.

जहां तक म्यूज़िक की बात है , फिल्म के ज़्यादातर गाने पहले ही चार्टबस्टर्स में हैं. बहुत क्वालिटी म्यूज़िक तो नहीं है लेकिन फिल्म के हिसाब से ठीक है. दो साल बीमार रहने के बाद हनी सिंह इस फ़िल्म से वापसी कर रहे हैं. बेशक रोचक कोहली का बनाया और अरिजीत का गाया 'मेरा यार' गाना इस एल्बम में स्टैंड आउट करता है. फिल्म के कुछ सींस बहुत मजेदार हैं. खासकर वो वाला जब लड़की बिकनी पहनकर अपने दादा ससुर के पांव छूती है. ये इस सदी का सबसे क्रांतिकारी सीन है. इसे देखने के बाद थिएटर में मौजूद सारी जनता हंस-हंसकर लहालोट हो गई थी. फिल्म की लंबाई थोड़ी और छोटी होती तो ज़्यादा मजा देती. जबरदस्ती वाले ट्विस्ट्स को कम करके आसानी से ये किया जा सकता था. कहना ये चाहते हैं कि ये फ़िल्म देखने से न आप में कुछ बदलाव होगा न समाज में. इसे नहीं देखकर ऐसा फील न करें कि आपने बहुत कुछ मिस कर दिया है. वीकेंड पर एकदम खलिहर हैं तो एक बार जाकर देख सकते हैं. स्ट्रेस थोड़ा कम हो जाएगा.
ये भी पढ़ें: सुशांत की फिल्म के डायरेक्टर ने शाहरुख़ से पंगा ले लिया है टाइगर श्रॉफ की 'बागी 2' की कहानी पहले ही पता लग गई है जब हीरोइन को अपनी ही फिल्म के प्रीमियर में घुसने नहीं दिया गया क्योंकि वो नाबालिग थी
वीडियो देखें: रणवीर की अगली फ़िल्म Gully Boy की अंदर की बातें