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फ़िल्म रिव्यू : स्निफ़

बच्चों की फ़िल्म जिसे बड़े भी उतने ही मज़े से देखेंगे.

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फोटो - thelallantop
अमोल गुप्ते. कमीने फ़िल्म में प्रियंका चोपड़ा के भाई बने थे. बहुत सारी प्रतिभाओं के धनी हैं. लेखक हैं, डायरेक्टर हैं, ऐक्टर तो हैं ही. फिल्मों में रचे-बसे हैं. फ़िल्म बनाई स्निफ़. अंग्रेजी शब्द है. हिंदी में मतलब होता है 'सूंघना'. कहानी है सनी की. एक पंजाबी फ़ैमिली का मेंबर जिसके घर में अचार की फैक्ट्री है. लिहाज़ा घर खुशबू से भरा रहता है. लेकिन सनी ए साथ समस्या ये है कि उसकी नाक काम नहीं करती. वो सांस तो ले सकता है लेकिन किसी चीज को सूंघ नहीं सकता. वो नर्व जो उसकी सूंघने की क्षमता को ऐक्टिव करती है, ब्लॉक है. लेकिन कहानी में ट्विस्ट वहां आता है जहां से उसकी नाक सूंघने का काम करने लगती है. केमिस्ट्री लैब में हुए एक एक्सीडेंट की वजह से. अब वो 2 किसी भी चीज को 2 किलोमीटर की दूरी से भी सूंघ सकता है. जो चाहिए, वो बोलो. सनी सब ढूंढ कर ला देगा. अपनी नाक के दम से. इसके बाद की कहानी है फ़िल्म की कहानी है. मुंबई में गाड़ियां चोरी हो रही हैं. सनी की कॉलोनी से भी एक चोरी हुई. सनी लग गया चोर को ढूंढने. अमोल गुप्ते ने बच्चों के लिए शानदार काम किया है. तारे ज़मीन पर, स्टेनली का डब्बा जैसी बेहतरीन फिल्मों से वो जुड़े रहे हैं. इसके अलावा जो कमाल का फैक्ट मालूम हुआ था वो ये था कि तारे ज़मीन पर में इशान की पेंटिंग्स अमोल गुप्ते ने ही बनाई थीं. amol_650_050914073813 फ़िल्म बच्चों के देखने के लिए अच्छी फ़िल्म है जिसे बड़े भी एन्जॉय करेंगे. इंडिया में बच्चों को लेकर फ़िल्मों में कम ही काम हुआ है. चिल्लर पार्टी जैसी फ़िल्में आती रहनी चाहिए लेकिन उनकी कमी ही नज़र आई है. ऐसे में स्निफ़ एक आशा की किरण टाइप नज़र आई है. खासकर तब, जब फ़िल्म ख़तम होते-होते मालूम चलता है कि इसका सीक्वेल भी आएगा. फ़िल्म के लीड कैरेक्टर सनी यानी खुश्मीत गिल को खूब शाबाशी मिल रही है. उसमें इतना पोटास दिखता है कि बच्चों की केटेगरी में बने स्टार्स में उनका नाम जोड़ा जा सकता है. sniff ये फ़िल्म इस सवाल को जन्म दे सकती है कि यहां बच्चों को लेकर फिल्में क्यूं नहीं बनतीं? उसके लिए हमें विदेशी फ़िल्मों पर ही आश्रित रहना पड़ता है. बनता भी है कुछ तो कृष, जिसमें गिनती का झोल है, और द्रोणा. काहिर, फ़िल्म देखी जाए. घर में कोई बालक-बालिका हो तो उसे ले जाएं. मज़ा आएगा. फ़िल्म की कहानी कहीं-कहीं झोल खा जाती है लेकिन उससे निपटा जा सकता है.
 

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