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मूवी रिव्यू: ऊंचाई

इमोशन्स यूनिवर्सल होते हैं. सूरज बड़जात्या ने 'ऊंचाई' में इन्हीं इमोशन्स का बहुत ढंग से इस्तेमाल किया है. वन टाइम वॉच है फिल्म.

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बड़े ऐक्टर्स की बड़ी फ़िल्म

आज गया था 'हम आपके हैं कौन' बनाने वाले सूरज बड़जात्या की फ़िल्म, 'ऊंचाई' देखने. कई ऐसे मौके आए, थिएटर में लोग सिसकियां भर रहे थे. उनकी आंखों से आंसू ढलक रहे थे. कई मौकों पर जनता हंस भी रही थी. देखते हैं क्या सच में फ़िल्म ऐसी है जो आपको रुलाए भी और हंसाए भी.

चार दोस्त हैं. भूपेन, अमित, ओम और जावेद. भूपेन रेवेन्यू सर्विसेज से रिटायर होकर एक रेस्टोरेंट चलाता है. अमित बेस्ट सेलर लेखक है. ओम का बुक स्टोर है. जावेद की कपड़ों की दुकान है. भूपेन नेपाली है. एवरेस्ट उसके दिल का हिस्सा है. कई बार वहां वो जा चुका है. एक बार अपने दोस्तों के साथ जाना चाहता है. उसने ट्रेक के लिए चार लोगों की बुकिंग भी कर ली है. पर इसी बीच भूपेन का देहांत हो जाता है. अब तीन दोस्त यानी अमित, ओम और जावेद भूपेन की अस्थियों को हिमालय में विसर्जित करने की ठानते हैं. इनके बीच जो भी कठिनाई आती है या जो मज़े आते हैं. 'ऊंचाई' इसी का पोट्रेयल है.

फ़िल्म में अनुपम खेर, बोमन ईरानी, अमिताभ बच्चन

अच्छी बातें:

# गांव-देश चाहे अलग हों, इमोशन सबको बांधते हैं. सब भिन्न हो, पर इमोशन यूनिवर्सल होते हैं. सूरज बड़जात्या ने फ़िल्म में इसका बहुत ढंग से इस्तेमाल किया है. चाहे अमिताभ की बीमारी का सीन हो, सभी के एवरेस्ट के ट्रेक पर जाने का या अनुपम खेर के अपनी हवेली पहुंचने का. आंखें नम होती हैं. एक दफ़ा नहीं कई दफ़ा. साथ ही आप हंसते भी हैं. कई जगह पर जोर से कई जगह पर मुस्कुराकर रह जाते हैं. पर फ़िल्म फुल ऑफ इमोशन्स है.

# इम्प्रोवाइजेशन. ये इस फ़िल्म की एक खास बात है. जब आपके पास अनुभवी ऐक्टर्स होते हैं, डायरेक्टर के लिए आधा मामला यहीं सेटल डाउन हो जाता है. यहां भी ठीक ऐसा ही हुआ है. कई सारे इम्प्रोवाइज्ड सीक्वेंस हैं. जैसे एक जगह कार में बैठते समय बोमन ईरानी का जैकेट गिर जाता है. अमिताभ उसे उठाकर देते हैं. इसी तरह एक जगह अमिताभ, बोमन और अनुपम पुआल के पीछे छिपे होते हैं. सीन खत्म होते-होते बोमन अपनी पत्नी को हाथ हिलाते हुए फनी तरीके से हाय करते हैं. अमिताभ डंडी उठाकर मारते हैं. अनुपम बैलेंस खोकर पुआल पर गिर जाते हैं. ये सभी चीजें स्क्रीनप्ले में लिखी नहीं जा सकती. ये ऐक्टर्स का कमाल है.

# अदाकारी के क्या कहने! सूरज बड़जात्या ने सारे मंझे हुए ऐक्टर्स लिए हैं. उन सभी ऐक्टर्स ने अपने नाम के अनुसार काम भी किया है. अमिताभ बच्चन ने दिखाया है कि वो इतने बड़े कलाकार क्यों हैं! अचानक बीमार पड़े अमिताभ जब बेड पर सिर्फ़ लेटे होते हैं. उसमें भी आपको लगता है क्या कमाल का काम है! माने जब वो कुछ नहीं भी कर रहे होते, तब भी बहुत कुछ कर रहे होते हैं. अमित के रोल में उन्होंने जो कर दिया है. उसे देखकर लगता है कि ये सिर्फ़ अमिताभ ही कर सकते थे. एकाध जगह उनकी आंखों का क्लोजअप है. उनकी सजल, बीमार और किसी को पुकारती आंखें. उन आंखों के बारे में जितना भी कहें कम है. अनुपम खेर ने ओम के रोल की सिद्धांतवादिता को बहुत सही ढंग से पकड़ा है. वो सीरियस रहकर आपको हंसाते हैं. जो आदमी बात-बात पर रूठ जाता है, अनुपम खेर उसको बहुत ढंग से ओढ़ते हैं. एक सीन जहां पर वो मूत्रविसर्जन कर रहे होते हैं. मस्त कॉमेडी उपजी है. 

# जावेद के रोल में बोमन ईरानी हीरे की तरह चमकते हैं. उन्हें अगर पूरी फ़िल्म में डायलॉग ना भी मिलते, तब भी वो अलग ही दिखते. अपने रिऐक्शन्स से उन्होंने हर सीन को संवारा है. नीना गुप्ता, बोमन की पत्नी शबीना के रोल में जंची हैं. वो ऐसा किरदार है, जिसे वो सोते हुए कर सकती हैं. 'बधाई हो' जैसा किरदार. शबीना की चालाकी और उसी के साथ-साथ उस किरदार की मासूमियत को भी उन्होंने बढ़िया आत्मसात किया है. माला के रोल में सारिका ने भी अपनी साख के अनुसार काम किया है. उस किरदार में दबे तनाव और पश्चाताप को उन्होंने पर्दे पर निखारा है. डैनी का रोल छोटा है. पर उन्होंने भूपेन के रोल में सटीक काम किया है. ऐक्टिंग नहीं की है.

# चूंकि फ़िल्म का ज़्यादा हिस्सा यात्रा का है. इसलिए नई-नई और सुंदर लोकेशन देखने को मिलती हैं. खासकर जब-जब नेपाल और हिमालय पर चढ़ाई के सीक्वेंस आते हैं. देखकर मज़ा आ जाता है. जब सभी एवरेस्ट बेस पर पहुंच जाते हैं, उस दृश्य में ड्रोन का इस्तेमाल बहुत उम्दा है. ऐसे ही रोड ट्रिप के दौरान भी ड्रोन के बढ़िया शॉट्स हैं.

# '65 का छोकरा 16 का हो चला' गाने का स्क्रीनप्ले बहुत अच्छा है. अभिषेक दीक्षित के लिखे स्क्रीनप्ले को टोटैलिटी में देखेंगे, तब भी अच्छा लगेगा. एक दो जगह छोड़कर कहीं पर भी खास बोझिल नहीं लगेगा. जहां थोड़ा बहुत लगेगा भी तो उसे डायलॉग की चुटिलता और ऐक्टर्स की टाइमिंग संभाल लेती है. अच्छी बात है, डायलॉग बहुत प्रीची नहीं हैं. सिम्पल डायलॉग आपको हंसाते भी हैं और रुलाते भी हैं.

एवरेस्ट चढ़ने की ऐक्टिंग कर दें

कम अच्छी बातें:

# अमित त्रिवेदी के गाने अच्छे हैं. कर्णप्रिय हैं. दूसरी ओर जॉर्ज जोसेफ का बैक ग्राउन्ड स्कोर कई जगहों पर बहुत ज़्यादा लाउड है. सीन को इम्पैक्टफुल बनाने और इंटेंसिटी बढ़ाने के चक्कर में बीजीएम लाउड रखना कोई अच्छा विकल्प नहीं है. कई जगहों पर बीजीएम मधुर है. कई जगहों पर कानों को दर्द देने वाला है.

# फ़िल्म लमसम तीन घंटे की है. ये इसकी सबसे कम अच्छी बात है. फ़िल्म की लेंथ को घटाया जा सकता था. इसे यदि ढाई घंटे के क़रीब कर दिया जाता, तो दर्शकों को और मज़ा आता. जैसा सब्जेक्ट सूरज बड़जात्या ने चुना है, वो तीन घंटे तक ले जाना बहुत रिस्की है. इसी कारण से सेकंड हाफ में एकाध मौकों पर लगता है, फ़िल्म को फास्ट फारवर्ड कर दिया जाए.

# जैसा कि ऊपर बता चुके हैं, फ़िल्म की सबसे अच्छी बात इसकी ऐक्टिंग है. पर परिणिति चोपड़ा ने निराश किया है. जो नॉर्मल सीन हैं, वहां वो ठीक लगी हैं. पर जहां पर उन्हें किसी भी तरह का इमोशन लेकर आना है, वहां वो मात खा गई हैं. उनके चेहरे पर दिखता है कि वो अभिनय कर रही हैं.

कुलमिलाकर 'ऊंचाई' एक अच्छी फ़िल्म है. वन टाइम वॉच. देख डालिए. एक चीज़ और देख सकते हैं. वो है ऊंचाई की कास्ट का इन्टरव्यू हमारे ही चैनल पर.

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