बिरह और मौत पर लिखने वालों ने बहुत लिखा. मौत से ज़्यादा अमर क्या होगा? लेकिन साहित्य में मृत्यु और बिरह को जिंदा करने वाला जादूगर एक ही हुआ- शिव कुमार बटालवी. आज बटालवी का बड्डे है. उमर के चार दशक भी पूरे नहीं कर पाए बटालवी. ‘अज्ज दिन चढेया, तेरे रंग वरगा’ लिखने वाले बटालवी की ज़िंदगी में शाम बहुत जल्दी आई. 23 जुलाई 1936 को पैदा हुए बटालवी 37 साल की उम्र में 6 मई, 1973 को दुनिया छोड़ गए. साथ में पीछे छोड़ गए वो गीत, जिन्हें आज भी ऐसे गाया जाता है, जैसे वो सैकड़ों साल पहले लिखे गए हों. उनके लिखे-कहे में से 10 बेहतरीन चीज़ें ये रहीं –
'इक कुड़ी जिदा नां मुहब्बत' वाले शिव बटालवी ने बताया कि हम सब 'स्लो सुसाइड' के प्रोसेस में हैं
इन्होंने अपनी प्रेमिका के लिए जो 'इश्तेहार' लिखा, वो आज दुनिया गाती है

'अज्ज दिन चढ़ेया तेरे रंग वरगा' लिखने वाले बटालवी की ज़िंदगी में शाम बहुत जल्दी आई और उमर के चार दशक भी नहीं देख सका ये 'बिरह का सुल्तान'
#1 ग़मां दी रात लम्मी नी, जा मेरे गीत लम्मे ने ना पैड़ी रात मुकदी नी, ना मेरे गीत मुकदे ने
#2 अज्ज दिन चढ़ेया तेरे रंग वरगा
#3 गुम है, गुम है, गुम है इक कुड़ी जिद्दा नां मोहब्बत गुम है, गुम है, गुम है साद मुरादी सोहणी फब्बत गुम है, गुम है, गुम है...
#4 मैनू तेरा शबाब लै बैठा, रंग गोरा गुलाब लै बैठा किन्नी पीती ते किन्नी बाकी ए मैनू एहो हिसाब लै बैठा...
#5 की पुछदे ओ हाल फकीरां दा साडा नदियों विछड़े नीरां दा...
#6 एह मेरा गीत किसे ने ना गाणा एह मेरा गीत मैं आपे गा के भल्के ही मर जाणा...
#7 जोबन रुत्ते जो वी मरदा, फूल बणे या तारा जोबन रुत्ते आशिक मरदे, या कोई करमा वाला
#8 माए नी माए मैं इक शिकरा यार बणाया चूरी कुट्टा ता ओ खांदा नाहीं वे असा दिल दा मांस खवाया
#9 आदमी, जो है, वो एक धीमी मौत मर रहा है. और ऐसा हर इंटेलेक्चुअल के साथ हो रहा है, होगा.
#10 सीधी सी बात है कि कविता जो है न, वो एक हादसे से पैदा नहीं होती है.
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