फिल्म- किस किसको प्यार करुं 2
राइटर-डायरेक्टर- अनुकल्प गोस्वामी
एक्टर्स- कपिल शर्मा, मनजोत सिंह, त्रिधा चौधरी, आयशा खान, पारुल गुलाटी
रेटिंग- * (1 स्टार)
फिल्म रिव्यू- किस किसको प्यार करुं 2
कपिल शर्मा के करियर की पहली फिल्म का सीक्वल कैसा है, जानने के लिए पढ़ें ये रिव्यू.


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'किस किसको प्यार करूं 2' अहमकाना, ग़ैर-ज़िम्मेदार और डंब फिल्ममेकिंग की पराकाष्ठा है. इस फ्रैंचाइज़ (अगर मानना चाहें) की पहली फिल्म 2015 में रिलीज़ हुई थी. तब पूरी दुनिया अलग थी. इसका सीक्वल 2025 में आया. तब तक सबकुछ बदल चुका था. सिवाय इस फिल्म के मेकर्स के. उन्होंने उसी पुरानी कहानी को नई पैकेजिंग में पैक किया और थिएटर्स में उतार दिया. अगर दूसरे पर्सपेक्टिव से देखना चाहें, तो इसे कपिल शर्मा शो का एक्सटेंडेड वर्जन भी माना जा सकता है. क्योंकि वही कैजुअल बॉडीशेमिंग. वही लैंड नहीं हो पाने वाले जोक्स और वही कपिल शर्मा. अगर इतने से भी आपको जी नहीं भरा, तो एक और ट्रिविया देते हैं. इस फिल्म को उन्हीं अनुकल्प गोस्वामी ने डायरेक्ट किया है, जो लंबे समय से कपिल शर्मा का शो डायरेक्ट करते आ रहे हैं.
'किस किसको प्यार करूं 2' के किरदारों के नाम पहली वाली फिल्म से अलग हैं. मगर ये कहानी उसी दुनिया में घटती है. भोपाल शहर में मोहन शर्मा नाम का एक व्यक्ति रहता है. वो सानिया नाम की लड़की के साथ पिछले 16 सालों से रिलेशनशिप में है. मगर शादी नहीं कर पा रहा है. क्योंकि दोनों के धर्म अलग हैं. उनका परिवार और समाज उन्हें साथ नहीं आने दे रहा. इसी बीच कुछ ऐसा होता है कि मोहन की तीन अलग-अलग धर्म की लड़कियों से शादी हो जाती है. इसमें उसकी मर्जी नहीं मजबूरी है. क्योंकि वो अब भी सानिया से ही शादी करना चाहता है. क्या होगा, जब उन तीन लड़कियों को पता चलेगा कि उन सबका पति एक ही आदमी है? यही फिल्म की बुनियादी कहानी है.
'किस किसको प्यार करूं 2' चतुराई करने की कोशिश करती है. ये सिर्फ अपनी टिपिकल कॉमेडी के साथ चिपकी नहीं रहती. कुछ नया ऑफर करने के चक्कर में कहानी में धर्म का एंगल डाल देती है. क्योंकि आज कल वो सबसे ट्रेंडी टॉपिक है. मगर इस फिल्म को पता नहीं है कि उस टची विषय को बरतना कैसे है. इसलिए वो जैसे-तैसे उसे कहानी में पिरोने की कोशिश करती है. मगर नाकाम साबित होती है.
मोहन शर्मा के माता-पिता नहीं चाहते कि उसकी शादी सानिया से हो. मुस्लिम है, इसलिए मुश्किल है. मगर फिल्म के क्लाइमैक्स में जब उनके लड़के का झूठ पकड़ा जाता है, तो वही पैरेंट्स उससे कहते हैं- "क्या हमने तुझे यही संस्कार दिए थे? यही परवरिश की थी हमने तेरी?" अगर आप अपने बच्चे को ये संस्कार दे रहे हो कि कोई धर्म विशेष खराब है, तो इसे अच्छी परवरिश में तो नहीं ही गिना जाना चाहिए. मगर स्क्रिप्ट में ऐसी कोई बात लिखी नहीं थी, इसलिए किसी ने कुछ नहीं कहा. इसके बाद अगले आधे घंटे तक इस चीज़ का जस्टिफिकेशन जारी किया जाता है कि कैसे मोहन शर्मा ने तीन लड़कियों से शादी करके कोई गलती नहीं की. वो तो उन महिलाओं की बेहतरी के लिए उनके साथ था. और चौथी महिला के साथ शादी करने के लिए मंडप में खड़ा है. कोई तार-तम्यता नहीं. कोई तार्किकता नहीं. बस भौंडी कॉमेडी. और गंभीरता के नाम पर ये कह दिया जाता है कि "प्यार बदलने का नहीं, अपनाने का नाम है."
फिल्म में दो ऐसे सीन्स हैं, जो आपके चेहरे पर हंसी ला पाते हैं. उसका क्रेडिट कपिल शर्मा की कॉमिक टाइमिंग को जाता है. फिल्म के एक सीन में वो अपनी दो पत्नियों से एक साथ टकरा जाते हैं. यहां वो अपनी पत्नी के पूछने से पहले ही कहते हैं- "मैं यहां? मैं यहां क्या कर रहा हूं?"
ये फिल्म कभी भी बेहतरी की ओर बढ़ती नहीं दिखती. जिस किस्म की ये फिल्म है, ऐसे में इसका खत्म हो जाना भी बेहतरी माना जाता. मगर ये फिल्म खिंचती ही चली जाती है. जबकि उसे ड्यूरेशन में भी कहने के लिए इसके पास कुछ नहीं है.
हालांकि इसका सारा दोष फिल्म के मेकर्स पर भी नहीं मढ़ा जाना चाहिए. कपिल शर्मा ने पिछले दिनों नंदिता दास की फिल्म 'ज़्विगाटो' में काम किया था. जिसे दुनियाभर की फिल्म फेस्टिवल्स दिखाया गया. सराहा गया. मगर वो फिल्म इंडिया में कब आई और कब गई, किसी को कानों-कान खबर नहीं लगी. ऐसे में उनके पास सेट फार्मे में जाना के अलावा दूसरा कोई चारा नहीं था. मगर ये किसी भी बुरे काम का जस्टिफिकेशन नहीं हो सकता.
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