और अगर जेम्स बॉण्ड के साथ तर्रार बॉण्ड गर्ल्स थीं, तो बादशाह के बादशाह बॉयज़ भी कुछ कम नहीं थे. इनके चीफ़ थे रामलाल. जो डॉक्टर रुस्तम बन कर उल्लू और बकरे की आंख लगा देते थे. साथ ही बादशाह के पास थे टॉफ़ी बम, छिपकली जूते और एक्सरे चश्मों जैसे सुपरकूल गैजेट्स. कोई कबूले या ना कबूले लेकिन ऐसा कोई जीवत व्यक्ति नहीं है, जिसने ये फ़िल्म देखी हो और मन ही मन कभी एक्सरे वाले चश्मे और छिपकली जूतों की कामना ना की हो. और वो बादशाह की किसी छोटे-मोटे देश के टोटल एम्म्युनेशन से ज्यादा हथियारों से लैस कार के तो क्या कहने!

सुपर डिटेक्टिव बादशाह एंड चीफ़ ऑफ़ ऑपरेशन रामलाल.
अब आप मिलेनियल हों या ना हों. अब तक तो समझ तो गए ही होंगे कि हम बात कर रहे हैं शाहरुख खान को 'किंग' की उपाधि देने वाली फ़िल्म 'बादशाह' की. 'बादशाह' अगस्त 1999 में रिलीज़ हुई शाहरुख़ की इस साल की पहली और अंतिम फ़िल्म थी. फ़िल्म का बज़ अच्छा था. सबको फ़िल्म से काफ़ी उम्मीदें थीं. लेकिन सबकी उम्मीदों पर पानी फेरते हुए 'बादशाह' की बादशाहत बॉक्स ऑफिस पर ज्यादा देर तक कायम रहने में नाकाम रही. फ़िल्म का बिज़नस औसत रहा. लेकिन आज इतने सालों बाद इस फ़िल्म का क्रेज़ कल्ट क्लासिक 'अंदाज़ अपना अपना' से 21 नहीं है, तो 19 भी नहीं है. 'अंदाज़..' की तरह ही 'बादशाह' भी टीवी के माध्यम से खूब पॉपुलर हुई. हर बार टेलीकास्ट पर अच्छी TRP आई. 'बादशाह' एक सिचुएशनल कॉमेडी है, जिस वजह से फ़िल्म बार-बार देखने पर भी बोर नहीं करती.
आज हम आपके लिए फ़िल्म से जुड़े कुछ सुने-अनसुने-कमसुने लेकर आए हैं. साथ ही साथ फ़िल्म के कल्चरल इम्पैक्ट और बॉक्स ऑफिस असफ़लता के पीछे क्या वजह रही थीं, उस पर भी नजर डालते हुए चलेंगे.

इन एक्सरे चश्मों की ख्वाइश लिए सब बड़े हुए हैं.
# बॉक्स ऑफिस पर शिकस्त खाई बादशाह ने अगस्त 1993. आतंक को अपने जज़्बे का नमूना देते हुए मुंबई एक बार फ़िर तेज़ी से दौड़ रही थी. बदलाव का दौर था. इसी महीने एक फ़िल्म रिलीज़ हुई. 'बाज़ीगर'. नए एक्टर्स, नए डायरेक्टर्स और नए प्रोड्यूसर की फ़िल्म थी. नाम अनुसार फ़िल्म भी अपने आप में एक बाज़ी थी. शाहरुख़ निगेटिव रोल में थे. कुछ भी हो सकता था. लेकिन बाज़ीगर की बाज़ी ऐसी चली कि फ़िल्म से जुड़ा हर शख्स अपने डिपार्टमेंट का स्टार बन गया. शाहरुख खान के मेगास्टारडम की शुरुआत हुई. डायरेक्टर डुओ अब्बास-मस्तान थ्रिलर फ़िल्मों के ब्रैंड एम्बेसडर बन गए. फ़िल्म की प्रोडक्शन कंपनी वीनस के मालिक रतन जैन के अकाउंट में भी कुबेर बस गए. सब तरक्की पर थे.
छह साल बाद ये टीम फ़िर असेम्बल हुई. 'बादशाह' की घोषणा हुई. टीवी पर भी फ़िल्म का खूब प्रमोशन हुआ. हर सड़क पर 'बादशाह' के पोस्टर चिपका दिए गए. सब में शाहरुख़ स्टाइल में बंदूक पकड़े खड़े थे. ट्रेलर में भी ज़बरदस्त एक्शन करते हुए के उनके सीन्स बार-बार लगातार दिखाए जा रहे थे. लोग फ़िल्म को लेकर अतिउत्साहित हो रहे थे. उस वक़्त एक्शन फिल्मों का दौर था. अक्षय कुमार-अजय देवगन उड़-उड़ कर अपनी फ़िल्मों में लोगों को मारा करते थे. मगर शाहरुख़ के फैन्स अब तक इस थ्रिल से वंचित थे. लेकिन अब उन्हें लग रहा था 'बादशाह' में शाहरुख़ को ज़बरदस्त एक्शन करते हुए देखने की इच्छा पूरी होगी. उनके इस उत्साह को टीवी पर आते 'बादशाह' के ज़बरदस्त एक्शन वाले प्रोमो और ज्यादा बूस्ट कर रहे थे.
अगस्त 99. 'बादशाह' रिलीज़ हुई. पहले दिन सिनेमाघरों में भीड़ टूट पड़ी. अब तक अनु मलिक का म्यूजिक भी फ़िल्म की हाइप दुगुनी कर चुका था. फ्राइडे को फ़िल्म ने ज़बरदस्त बिज़नेस किया. लगा शाहरुख़ की एक फ़िल्म बाकीयों की तीन-तीन फ़िल्मों पर भारी पड़ेगी. लेकिन सोमवार आने तक थिएटर में भीड़ का आंकड़ा इतनी तेज़ी से गिरा जितनी तेज़ी से फ्रिज खोलने पर आधा कटा नींबू गिरता है. अब 'बादशाह' के शोज़ खाली जा रहे थे. मात्र तीन दिन में ही 'बादशाह' का तख्तापलट हो गया था. इसकी वजह थी. 'वर्ड ऑफ़ माउथ'. उस वक़्त फ़िल्म के हिट/फ्लॉप में बहुत मेजर रोल पब्लिक का ओपिनियन प्ले करता था. जनता को 'बादशाह' कतई नहीं भायी.

"बादशाह के पास बादशाह नहीं आएगा तो क्या गुलाम आएगा"
#क्यों नहीं चली 'बादशाह'? बादशाह के फेलियर की कई वजहें रहीं. सबसे पहली वजह बनी फ़िल्म का गलत ढंग से किया प्रमोशन. 'बादशाह' टाइटल, फ़िल्म का पोस्टर और फ़िल्म का ट्रेलर तीनों से ये फ़िल्म कहीं से भी एक कॉमेडी फ़िल्म नहीं लग रही थी. बल्कि सारे संकेत एक एक्शन फ़िल्म के लग रहे थे. ऊपर से अब्बास-मस्तान की इमेज भी उस वक़्त तक मसाला एक्शन फ़िल्में बनाने वालों की ही थी. इसलिए फ़िल्म की ओर एक्शन फ़िल्में पसंद करने वाले लोग ऐट्रेक्ट हुए और कॉमेडी लवर्स को तो पता ही नहीं चला कि ये एक कॉमेडी फ़िल्म है.
अब जब एक्शन फ़िल्म की आस लिए लोग थिएटर पहुंचे और पिक्चर निकली फुल कॉमेडी, तो लोगों ने खुद को ठगा सा पाया. और बाहर आकर फ़िल्म को एकदम बंडल बताया. उस वक़्त पब्लिक का 'वर्ड ऑफ़ माउथ' बहुत मैटर करता था. दूसरा उस वक़्त पूरी कॉमेडी फ़िल्मों का चलन नहीं था. उस टाइम सूरज बडजात्या का फैमिली ड्रामा लोगों को ज़्यादा पसंद आता था. कॉमेडी के लिए जॉनी लीवर को हर फिल्म में ले लिया जाता था. बस इतनी ही कॉमेडी की खुराक की जनता को आदत थी. इसलिए जब 'बादशाह' में फुल ऑन कॉमेडी उन्हें मिली तो जनता को पची नहीं. जिस कारण 'बादशाह' एक बॉक्स ऑफिस फेलियर साबित हुई. #कोहिनूर से बादशाह 'बादशाह' की तैयारी अब्बास-मस्तान ने 'बाज़ीगर' के बाद ही शुरू कर दी थी. उस वक़्त फ़िल्म का प्लाट काफ़ी सीरियस रखा गया था. कुछ सीन शूट भी हो गए थे. लेकिन शाहरुख़ और अब्बास-मस्तान तब तक बहुत एक्शन फ़िल्में कर चुके थे. तो उन्होंने सोचा ये कैंसिल करते हैं और कॉमेडी फ़िल्म बनाते हैं. शूटिंग पोस्टपोन हो गई. स्क्रिप्ट को नए ढंग से लिखा जाने लगा. उस वक़्त फ़िल्म का नाम 'कोहिनूर' रखा गया था. 'बादशाह ओ बादशाह' गाने को भी गीतकार समीर ने 'बाज़ीगर' के वक़्त ही लिख लिया था. बस उस वक़्त गाने के बोल 'बादशाह ओ बादशाह' की जगह ' छाया है छाया, है नूर ही नूर, आया है आया, है कोहिनूर.. ओ कोहिनूर' था, जिसे बाद में बदला गया. #शाहरुख़ खान ने सजेस्ट किया था ट्विंकल खन्ना को 'बादशाह' के लिए मल्लिका की तलाश चल रही थी. मतलब फ़िल्म की हीरोइन खोजी जा रही थी. SRK के अपोज़िट सीमा का रोल बाकी फिल्मों से थोडा अलग था. फ़िल्म में सीमा सिर्फ हीरो का लव इंटरेस्ट नहीं थी. बल्कि खुद भी जासूसी में शामिल थी. इसलिए मेकर्स, इन सभी पैमानों पर खरी उतर सके, ऐसी हीरोइन की तलाश कर रहे थे. सीमा के रोल का ऑफर मनीषा कोइराला, करिश्मा कपूर, शिल्पा शेट्टी से होता हुआ ट्विंकल खन्ना के पास पहुंचा था. ट्विंकल को डेब्यू किए हुए तब तक ज्यादा वक़्त नहीं बीता था. लेकिन उनकी पहली फ़िल्म 'बरसात' जिसमें वो बॉबी देओल के अपोज़िट थीं, काफ़ी सफ़ल रही थी. शाहरुख़ ने बरसात देखी हुई थी और उन्हें इस फ़िल्म में ट्विंकल खन्ना का काम काफीं पसंद आया था. जिस वजह से शाहरुख़ ने अब्बास-मस्तान को ट्विंकल खन्ना को साइन करने का सुझाव दिया.

ट्विंकल खन्ना और शाहरुख़ खान की ये एक साथ ये इकलौती फ़िल्म है.
#जब मिटटी में गिर पड़ीं ट्विंकल खन्ना नॉर्वे में 'हम तो 'दीवाने हुए यार' गाने की शूटिंग चल रही थी. एक सीन में शाहरुख़ सूट में और ट्विंकल साड़ी में एक गार्डन में डांस कर रहे थे. तभी शूटिंग के दौरान पानी बरसने लगा. शूटिंग रुक गई. बारिश रुकने का इंतज़ार होने लगा. बारिश तो रुक गई लेकिन भयंकर कीचड़ हो गया. लेकिन शूटिंग तो करनी ही थी. तो थोड़ा जगह बना के शूटिंग फ़िर शुरू की गई. डांस करने के दौरान शाहरुख़ का पैर गलती से ट्विंकल की साड़ी पर रख गया. जिससे ट्विंकल का बैलेंस बिगड़ गया और वो पीछे नाच रहीं लड़कियों में एक से टकराते हुए सीधे कीचड़ में जा गिरीं. इधर वो जिस बैकग्राउंड डांसर से टकराई थीं, वो भी बाकी डांसर्स समेत एक के बाद एक फ़िसलकर गिरती चली गईं. ये नज़ारा देख शाहरुख़ और फराह बहुत देर तक हंसते रहे. #जॉनी लीवर ने पिता की तबियत खराब होने के बावजूद शूटिंग की अब्बास-मस्तान की लगभग हर फ़िल्म का जॉनी लीवर हिस्सा रहे हैं. अब्बास-मस्तान कहते हैं वो फ़िल्म जब लिखते हैं तो पहले से ही एक किरदार जॉनी लीवर के लिए सोचकर रखते हैं. लिहाज़ा 'बादशाह' में भी जॉनी थे. कसीनो वाले सीन की शूटिंग चल रही थी. भयंकर फुल ऑन कॉमेडी सीन था. शाम को पैकअप के बाद जॉनी अक्सर बाकी कास्ट के साथ मस्ती किया करते थे. लेकिन उस दिन वो शांत थे. जॉनी को इससे पहले इतना गंभीर किसी ने नहीं देखा था. ऐसे में अब्बास-मस्तान जॉनी के पास गए और उनसे पूछा कि उन्होंने तो इतना बढ़िया सीन दिया है, फ़िर वो आज इतने गुमसुम से क्यों नज़र आ रहे हैं. तब जॉनी ने बताया कि आज उनके पिता का एक बहुत ही बड़ा ऑपरेशन है. ये सुन अब्बास और मस्तान दोनों बड़े हैरान हुए. उन्होंने जॉनी से कहा कि आप पहले बतलाते तो वो आज की शूटिंग कैंसिल कर देते. जॉनी ने कहा वो यही नहीं चाहते थे. 'द शो मस्ट गो ऑन'. #बादशाहों का बादशाह ये फ़िल्म भले उतनी चली ना हो लेकिन फ़िल्म का टाइटल शाहरुख़ खान की पहचान बन गया. इसी मूवी के बाद से वो बादशाह ऑफ़ बॉलीवुड कहलाए जाने लगे. और आज भी कहलाते हैं. लेकिन शाहरुख़ अकेले नहीं हैं जो इस फ़िल्म के बाद 'बादशाह' बने. आदित्य प्रतीक सिंह जब रैपिंग इंडस्ट्री के रिवाज़ अनुसार अपना स्टेज नेम ढूँढ रहे थे, तब उन्हें अपने फेवरेट स्टार की यही फ़िल्म याद आई थी. और इसी से प्रेरित होकर आदित्य प्रतीक सिंह इट्स योर बॉय बादशाह बने थे. #कहां है वो बच्ची? बच्ची याद है. गायत्री बच्चन नहीं. वो छोटी बच्ची, जिसे बचाने के लिए बादशाह चीप..मेरा मतलब है चीफ़ को पकड़ लाया था. और बाद में थापर ने जिसको बम वाली जैकेट पहना दी थी. वो बच्ची असल में फ़िल्म के प्रोड्यूसर रतन जैन की भतीजी करिश्मा थी. करिश्मा आज 29 साल की हैं. 'बादशाह' उनके करियर की पहली और आखिर फ़िल्म थी. करिश्मा बताती हैं कि इस फ़िल्म के दौरान स्लाइड वाले टेक में उनका बैलेंस बिगड़ गया था और वाकई में उन्होंने शाहरुख़ को दुलत्ती जड़ दी थी. करिश्मा कहती हैं कि वो इस दुनिया में अकेली हैं, जिसने बादशाह ऑफ़ सिनेमा को लात मारी है.

'बादशाह' की ये छोटी बच्ची अब 29 साल की हो गई है
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#इधर-उधर से अब्बास-मस्तान अपनी कमाल की नेल बाइटिंग सस्पेंस फ़िल्मों के लिए जितने मशहूर हैं, उतने ही अपनी फ़िल्मों में विदेशी फिल्मों के सीन्स का इस्तेमाल करने के लिए बदनाम भी हैं. उनकी आज तक बनाई 90% फिल्मों में कई सीन अन्य भाषाओं की फ़िल्मों से कॉपी किए हुए हैं. 'बादशाह' के भी कई सीन अलग-अलग हॉलीवुड फ़िल्मों से लिए गए थे. जैसे फ़िल्म का क्लाइमेक्स जॉनी डेप की 1995 में रिलीज़ हुई फ़िल्म 'निक ऑफ़ टाइम' से कॉपीड था. तो कुछ हिस्सा जैकी चैन की 'रश आवर' से हुबहू मेल खाता हुआ था. 'मैं तो हूं पागल' गाने का थीम बिलकुल जिम कैरी की क्लासिक फ़िल्म 'द मास्क' के गाने 'क्यूबन पीट सांग' से लिया गया था. फ़िल्म के कुछ अन्य सीन्स जैकी चैन की ही एक और फ़िल्म 'मिस्टर नाइस गाय' से उठाए हुए थे.
हां लेकिन 'बादशाह' का शानदार स्क्रीनप्ले और डायलॉग्स नीरज वोरा ने लिखे थे. जो इस फ़िल्म को आज पसंद किए जाने की मुख्य वजह है. नीरज जी ने फ़िल्म में डॉक्टर सुरती का रोल भी किया था. वो ही थे, जिन्होंने बादशाह को गैजेट्स दिए थे.