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होमबाउंडः अंतर्मन में उजास का विस्फोट (Homebound Review)
इस फ़िल्म में एक्टर शालिनी वत्स का काम एक्टिंग की क्विक मास्टरक्लास है. विशाल जेठवा को अब पीछे मुड़कर नहीं देखना पड़ेगा. ईशान खट्टर और जान्हवी कपूर के भीतर बैठे कलाकारों का ये पुनर्जन्म हो सकता है. बहुत सिंपल सी फ़िल्म होते हुए भी ये आसमान सी विशाल फ़िल्म है. ये है डायरेक्टर नीरज घेवान की "होमबाउंड." पढ़ें रिव्यूः


डायरेक्टर नीरज घेवान की 'होमबाउंड' के तीनों प्रमुख किरदारों (चंदन, शोएब, सुधा) में अंबेडकरवादी फोकस और गांधीवादी अंतरात्मा का एक सुंदर संयोजन है. इसमें हरबर्ट जे. बाइबरमैन की 'सॉल्ट ऑफ द अर्थ' के वामपंथी साम्य सरीखे अंश भी हैं कि बगैर किसी रोमांसवाद के निपट फीके ढंग से कहानी पात्रों की गरीबी, रोजगारमूलक चिंताओं और अधिकारों की लड़ाई पर बात करती जाती है. कष्ट, कोलाहल और ह्यूमन डेस्परेशन की रुलाने वाली कथा के बीच भी फ़िल्म में आशुतोष गोवारिकर की 'स्वदेश' जैसी भीनी भीनी मिठास, शांति, सुंदरता है. लेकिन फिर फ़िल्म कुछ और भी है, और उपरोक्त में से कुछ भी नहीं है. ये अपनी ही तरह की एक नई हाइब्रिड कहानी है, जो भारतीय सिनेमा में अपना एक नया संदर्भ बिंदु रचती है.
ये ऐसी पहली भारतीय या वैश्विक फिल्म भी है जिसने कोविड-19 महामारी की ह्यूमन ट्रैजेडी को इतने अनुभूत ढंग से चित्रित किया है. आप वो दृश्य कैसे भूल पाएंगे जिसमें चंदन (विशाल जेठवा, हासिल) अपने दोस्त मोहम्मद शोएब (ईशान खट्टर) के कंधे का सहारा लिए दूर, इंसानविहीन क्षितिज पर चलता चला आ रहा है और उसके पैर टूट-टूट कर मानो गिरने को हैं और अंत में दरारों से फट चुकी धरती पर वे दोनों ही गिर ही जाते हैं. जब ये महामारी घटी तब लाशों को गिनते गिनते और अपनी मृत्यु के भय से कातर हो चुके हम इंसानों को आभास ही नहीं हुआ कि वैयक्तिक स्तर पर ये वेदना कितनी ख़ौफनाक थी. नीरज इसे वैयक्तिक स्तर पर दिखाते हैं और फिर भी सभी की पीड़ाओं का प्रतिनिधित्व कर जाते हैं. रुला जाते हैं. बल्कि अंत में हर दर्शक अपने घट में भीषण रुदन कर रहा होता है.
क्रिकेट, बिरयानी, अचार, दोस्ती, पानी, परोपकार, रोग, रोजगार, अधिकार, भाव, भेदभाव, अभाव, पूंजी, प्रेम और मृत्यु जैसे तत्वों से मिलकर बना ये अनुपम पुष्प "होमबाउंड" हमारे समाज को बेहतर बनाने का प्रयास करता है. इस चलचित्र को देखते हुए हम महसूस करते हैं कि एक दूसरे से किस तरह बुरा बर्ताव करने लगे हैं. कि हम अपने मॉरल कंपास को कैसे तजते ही जा रहे हैं. कि हमने सह-अस्तित्व के विचार की उपेक्षा क्यों करनी चालू कर दी. ये कर जाना ही फ़िल्मों का एक प्रमुख गुणधर्म होता है और ये फ़िल्म उसमें खरी उतरती है.
मेरे लिए फ़िल्म के माथे का मोती वो क्षण है जब अंत में चंदन पानी से तड़प रहा है, और छतों पर खड़े गांव वाले पत्थर फेंकते हैं कि हमारे गांव से चले जाओ. लेकिन उस बीच भी मुंह पर घूंघट ओढ़े और हाथ में पानी का जग लिए एक महिला आती ही है. पानी पिलाती ही है. पीते चंदन और शोएब हैं, तृप्त हमारा अंतर्मन होता है. अब और क्या कहूं!
Film: Homebound । Director: Neeraj Ghaywan । Cast: Ishaan Khatter, Vishal Jethwa, Janhvi Kapoor, Shalini Vatsa । Writers: Neeraj Ghaywan, Varun Grover, Shreedhar Dubey, Bashaarat Peer, Sumit Roy । Editor: Nitin Baid । Director of Photography: Pratik Shah । Music: Naren Chandravarkar, Benedict Taylor । Run Time: 122 minutes । Watch at: Cinemas (Released on 26th September, 2025)
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