'उड़ता पंजाब' में आलिया भट्ट ने बौरिया उर्फ मैरी जेन नाम की बिहारी माइग्रेंट का रोल किया था. जो गलती से ड्रग्स के बिज़नेस में आ गई थी. अगर इस कैरेक्टर पर स्पिन ऑफ फिल्म बनेगी, तो उसका नाम होगा- 'गुड लक जेरी'. इसी नाम की नई फिल्म डिज़्नी+हॉटस्टार पर रिलीज़ हुई है. मगर इसमें आलिया भट्ट की जगह जाह्नवी कपूर ने काम किया है.
फिल्म रिव्यू- गुड लक जेरी
फिल्म में कई सामाजिक मसलों पर चोट करने की कोशिश की जाती है. मगर वो सिर्फ दर्शकों को चोटिल करती हैं. एक किस्म की असंगती है. बिखराव सा महसूस होता है.

‘गुड लक जेरी’ बिहार से पंजाब गई एक फैमिली की कहानी है. इस फैमिली में कुल तीन लोग हैं. जेरी-चेरी और उनकी मम्मी सर्बती. पिता की डेथ हो चुकी है. चेरी पढ़ाई कर रही है. सर्बती मोमोज़ बनाकर सप्लाई करती है. और जेरी अपनी फैमिली की मर्जी के खिलाफ एक मसाज पार्लर में काम करती है. ठीक-ठाक काम चल रहा है. मगर तभी अचानक से जेरी की फैमिली एक आफत में फंस जाती है. इससे उबरने में 20 से 25 लाख रुपए का खर्च है. मिडल क्लास लोगों के बारे में कहा जाता है कि We are one medical emergency away from poverty. मगर यहां लोअर-मिडल क्लास परिवार की बात हो रही है. खैर, पैसे जुगाड़ने के लिए जेरी ड्रग्स पेडलिंग के काम में उतर जाती है. आगे क्या होता है, ये जानने के लिए आपको खुद पिक्चर देखनी होगी.

'गुड लक जेरी', 2018 में आई तमिल फिल्म 'कोलामावु कोकिला' (Kolamaavu Kokila) का हिंदी रीमेक है. डार्क कॉमेडी, जिसमें क्राइम थ्रिलर वाले गुण भी पाए गए थे. 'गुड लक जेरी' एक सीरियस फिल्म है. जो हंसते-खेलते अपनी बात करती है. मगर फिल्म के इस रवैए की वजह से ऐसा लगता है, मानों वो अपने विषय को लेकर गंभीर नहीं है. क्योंकि फिल्म में कई सामाजिक मसलों पर चोट करने की कोशिश की जाती है. मगर वो सिर्फ दर्शकों को चोटिल करती हैं. एक किस्म की असंगती है. बिखराव सा महसूस होता है.
'गुड लक जेरी' मज़ेदार फिल्म है. ज्ञान नहीं देती. पकाती नहीं है. मगर कुछ मौकों पर फिल्म की कॉमेडी थोड़ी प्रॉब्लमैटिक लगती है. मोमोज़ के ऊपर एक जोक आपको फिल्म में सुनने को मिलता, जो कि फूहड़ टेस्ट में नहीं है. मगर उसके बिना भी काम चलाया जा सकता था. कुछ फिल्में होती हैं, जो परफॉरमेंस के लेवल पर बहुत सही होती हैं. मगर सभी एक्टर्स का काम एक साथ आकर फिल्म को एलीवेट नहीं कर पाता. 'गुड लक जेरी' के साथ ये चीज़ होती है. फिल्म में जाह्नवी कपूर ने जया कुमारी उर्फ जेरी का रोल किया है. जाह्नवी का काम 'गुंजन सक्सेना' से बेहतर होना शुरू हुआ था. इस फिल्म में वो एक कदम और आगे बढ़ती हैं. वो फिल्म में बिहारी लहज़े में बात करती हैं. वो एक्सेंट के साथ रटी गई लाइन जैसा सुनाई आता है. कोई भाषा या लहज़ा तुरंत सीखकर उसमें नैचुरली बात करना इतना आसान नहीं होता. ये बात जाह्नवी को देखकर समझ आती है.

मगर उनके कैरेक्टर का एक आर्क है. वो एक भोली लड़की से शुरू करती है. फिर दुनिया उसे अपने हिसाब से ढाल लेती है. जेरी को अब भी गोली चलने की आवाज़ से डर लगता है. मगर उसे खतरा महसूस होता है, तो वो कान बंद करके गोली चलवा भी देती है. फिल्म का एक सीन है, जब जेरी अपनी मां को अपना अनुभव बता रही है. वो कहती है-
''मुझे पता है, कब बोलना है, कब हंसना है और कब चुप रहना है.''
ये बात उसे किसी ने सिखाई नहीं है. उसने खुद अर्जित की है.

मीता वशिष्ट ने जेरी की मां सर्बती का रोल किया है. मीता का रोल छोटा है. कथानक के लिहाज़ से लिहाज़ से ज़रूरी है. मगर मेकर्स मीता से कुछ ऐसा करवा नहीं पाते, जो आपको याद रह जाए. दो लोग इस फिल्म में आपका ध्यान खींचते हैं. पहला किरदार है जिगर का. जिगर एक लोकल ड्रग माफिया टिम्मी के गैंग का हिस्सा है. ये किरदार साहिल मेहता ने निभाया है. वो एकदम अक्खड़ कैरेक्टर है. फिल्म में एक सीन है, जहां जेरी टिम्मी से काम मांगने जाती है. वो टिम्मी से कहती है-
‘’सर हम काम करना चाहते हैं.''
टिम्मी पूछता है-
''हम! कितने लोग आए हो?''
तभी बीच में जिगर कूदते हुए टिम्मी को समझाता है-
‘’पाजी, दीदी बिहार से हैं. इनके यहां मैं, हम होता है.''

फिल्म में आपको साहिल का काम पसंद आएगा. दूसरे शख्स हैं दीपक डोबरियाल, जिन्होंने जेरी के इकतरफा प्रेमी रिंकू का रोल किया है. दीपक डोबरियाल कुछ भी करते हैं अच्छा लगता है. मगर यहां उनके करने के लिए ज़्यादा कुछ था नहीं. पब्लिक बीच-बीच में हंसती रहे, इसलिए उनका इस्तेमाल किया जाता है. रिंकू, फिल्म के ग्रैंड स्कीम ऑफ थिंग्स में कहीं काम नहीं आता. इनके अलावा 'गुड लक जेरी' में सुशांत सिंह, सौरभ सचदेवा और समता सुदीक्षा ने भी काम किया है.
'गुड लक जेरी' अपने कॉमिक अंडरटोन का सही इस्तेमाल नहीं कर पाती. इससे फिल्म फनी तो बन जाती है, मगर उसका असर ज़्यादा देर नहीं रह पाता. क्लाइमैक्स में एक गाना बजता है- 'जोगन'. वो नेपथ्य में चल रहे एक्शन और जेरी की लाइफ दोनों को एक साथ लेकर आता है. सुंदर गाना और उससे भी सुंदर इस्तेमाल.
कुल जमा बात ये है कि 'गुड लक जेरी' जाह्नवी कपूर के लिए वो फिल्म है, जो सारा अली खान के लिए 'अतरंगी रे' थी. अगर आपने कोई बिहारी कैरेक्टर प्ले कर दिया, तो इंडस्ट्री आपको अच्छा एक्टर मानने लगती है. मगर असल में ऐसा नहीं है. अच्छा एक्टर माने जाने की एक ही शर्त है- अच्छा एक्टर होना. खैर, हम फिल्म पर लौटते हैं. 'गुड लक जेरी' एक डीसेंट वॉच है. उम्मीद नहीं रखने से नाउम्मीद का खतरा कम रहता है. हालांकि ये बहुत निराशावादी विचार है. जो है, जैसा भी है हमारा विचार है. आप इन विचारों से कितना इत्तफ़ाक रखते हैं, कमेंट बॉक्स में बताइए.