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फ़िल्म रिव्यू : ब्लैकमेल

इरफ़ान खान, कीर्ति कुल्हाड़ी, दिव्या दत्ता और अरुणोदय सिंह की फ़िल्म.

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फोटो - thelallantop
एक पति है. और चूंकि वो पति है, पत्नी भी होगी ही. हर जल्दी आया तो बीवी को बिस्तर में किसी और के साथ पाया. सोचा कि खून कर दे - पहले उस दूसरे आदमी का फिर पत्नी का. लेकिन फिर उसने तरीका निकाला. अपनी आर्थिक स्थिति सुधारने का. मिडल क्लास का आदमी, पैसे पर आकर अटक गया. पत्नी के बॉयफ्रेंड को ब्लैकमेल करने लगा. अगले के पास पैसे नहीं थे. उसने कुछ जुगाड़ निकाला. जुगाड़ की भरपाई के लिए वो किसी और को ब्लैकमेल करने लगा. ये एक चेन बन गई. जैसे एक वक़्त था कि हमारे मोहल्ले में ऐमवे वालों की चेन बनती थी. इस फ़िल्म में ब्लैकमेल करने वालों की चेन बनी हुई है.
अभिनय देव की फ़िल्म. वही अभिनय देव जो डेल्ही-बेली फ़िल्म बना चुके हैं. हांलाकि इस बीच इन्होने फ़ोर्स-2 भी बना डाली लेकिन उसके बारे में बात नहीं करते हैं. फ़िल्म में हैं इरफ़ान खान, कीर्ति कुल्हाड़ी, अरुणोदय सिंह, दिव्या दत्ता और गजराज राव. इरफ़ान खान को स्क्रीन पर देखते ही इस बात का अहसास होता है कि वो किन परेशानियों से जूझ रहे हैं. फ़िल्म का ट्रेलर आते ही इरफ़ान की बीमारी के बारे में मालूम पड़ा था. ऐक्टिंग के मामले में इस आदमी को कोई क्या ही पकड़ सकेगा. एफर्टलेस काम. हर बार लगता ही नहीं है कि ये हज़रात ऐक्टिंग कर रहे हैं. अरुणोदय सिंह बहुत वक़्त के बाद एक बड़े रोल में दिखाई दिए हैं. इससे पहले उन्हें कुछ वक़्त के लिए 'वाइसरॉय हाउस' में  देखा गया था. ब्लैकमेल में इरफ़ान की पत्नी का अफेयर इन्ही के साथ है. कीर्ति कुल्हाड़ी ने इरफ़ान की पत्नी का रोल किया है. एक एक्स्ट्रामेरिटल अफ़ेयर कर रही पत्नी जो कि बाद में ब्लैकमेल का शिकार होती है. उन पैसों का इंतज़ाम वो अपने पति से झूठ बोलकर करती है. (इसके आगे कुछ भी स्पॉइलर कहलायेगा.)
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कीर्ति कुल्हाड़ी और अरुणोदय सिंह

फ़िल्म लिखते वक़्त दिमाग का इस्तेमाल किया गया है. ज़बरदस्ती के जोक्स नहीं ठूंसे गए हैं. वन-लाइनर्स को गले तक भर देने की कोशिश नहीं की गई है. इस बात का ध्यान रखा गया है कि हंसी सिचुएशन की वजह से आए न कि बोले गए शब्दों की वजह से. इस बात की काफ़ी गुंजाइश थी कि बिस्तर से जुड़े सड़े हुए सेक्सिस्ट जोक्स डाले जा सकते थे लेकिन उनकी गैरमौजूदगी खुश करती है. फ़िल्म में कहीं भी आप लोट-पॉट होकर हंसने नहीं लगेंगे लेकिन आप खुद को मुस्कुराते हुए ज़रूर पाएंगे. कुल-मिलाकर फ़िल्म एक हेल्थी कॉमेडी है. फ़िल्म में एक बात बहुत ही अच्छे तरीके से दिखाई गई है - ऑफिस में चलता सेक्शुअल हेरेसमेंट वाला कल्चर. एक जाहिल आदमी आपको घटिया जोक्स सुनाये जाता है, लड़कियों को निहारता है, उनके बारे में हल्की बातें करता है, उन्हें 'टल्ली कर के कार के सस्पेंशन चेक करना' चाहता है. इरफ़ान से तुरंत पलटकर कहते हैं - 'अबे, इसे रेप कहते हैं.'



फ़िल्म में ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे आप सहेज कर घर ले जाएं या जो बहुत दिनों तक आपके साथ रहे. कोई मॉरल साइंस का लेक्चर नहीं. कोई भारी बातें नहीं. एक मज़ेदार फ़िल्म. जाइए, देखिये और मन करे तो भूल जाइए. ये फ़िल्म कोई बहुत बड़ा इम्पैक्ट नहीं डालने वाली है. लेकिन जो है वो सब बढ़िया है. फ़िल्म में एक गाना है जो फ़िल्म का थीम सॉंग कहा जा सकता है. फ़िल्म के साथ साथ चलता रहता है. मज़े को बढ़ा देता है. 


 
ओवर-ऑल, फ़िल्म अच्छी है. इसमें बुरा जैसा कहने के लिए कुछ है नहीं. देखी जानी चाहिए, ऐसा नहीं कहा जा सकता मगर हां, अगर देखने का मूड है तो देख डालिए.


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