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फिल्म रिव्यू- देवा

Shahid Kapoor की नई फिल्म Deva कैसी है, जानने के लिए पढ़ें ये रिव्यू.

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'देवा' मलयालम फिल्म 'मुंबई पुलिस' की रीमेक है.

फिल्म- देवा 
डायरेक्टर- रौशन एंड्र्यूज़
एक्टर्स- शाहिद कपूर, पूजा हेगड़े, पवैल गुलाटी, प्रवेश राणा, कुब्रा सैत 
रेटिंग- 3 स्टार (***)

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शाहिद कपूर की नई फिल्म 'देवा' थिएटर्स में लगी है. टीज़र के बाद से इस फिल्म के इर्द-गिर्द बहुत हल्ला था. कई जगहों पर ये दावा किया गया कि ये रौशन एंड्र्यूज़ की ही मलयालम फिल्म 'मुंबई पुलिस' का रीमेक है. मेकर्स ने इन सवालों और तुलना से बचने का एक तोड़ निकाला. बताया गया कि 'देवा' के तीन अलग-अलग क्लाइमैक्स शूट किए गए हैं. हालांकि फिल्म देखने पर मालूम पड़ता है कि 'देवा', 'मुंबई पुलिस' का ही रीमेक है. मगर 'देवा' को नॉर्थ इंडियन सेंसिब्लिटीज़ के हिसाब से ढाला गया है. सिर्फ क्लाइमैक्स बदल देने से पूरी फिल्म अलग नहीं हो जाती. मगर अच्छी चीज़ ये कि 'देवा' माइंडलेस रीमेक नहीं है. मेकर्स ने स्क्रीप्ले पर काम किया है. जो कि इसे ओरिजिनल से बहुत अलग तो नहीं बनाती. मगर स्टैंड अलोन फिल्म के तौर पर 'देवा' एक बेहतर फिल्म ज़रूर बन पड़ती है.

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'देवा' की कहानी मुंबई में घटती है. मुंबई पुलिस का ऑफिसर है देव आम्रे. फोर्स के ही एक दूसरे ऑफिसर और देवा के करीबी दोस्त रोहन की गोली मारकर हत्या कर दी जाती है. इस केस की छानबीन की जिम्मेदारी देवा को दी जाती है. क्योंकि उसके लिए रोहन की हत्या एक पर्सनल मसला है. एक दिन देवा अपने सीनियर फरहान को फोन करता है. वो बताता है कि उसने केस सॉल्व कर लिया है. उसे पता चल गया है कि रोहन की हत्या किसने की. देवा की बात पूरी हो पाती है, उससे पहले ही उसका एक्सीडेंट हो जाता है. इस घटना में उसकी मेमरी चली जाती है. देवा को ये भी याद नहीं रहता है कि वो है कौन. ऐसे में अब रोहन के केस का क्या होगा? देवा कैसे पता लगाएगा कि उसके क्लोज़ फ्रेंड की हत्या किसने की? यही फिल्म में आपको बताया जाता है.

'देवा' का फर्स्ट हाफ फायर क्रैकर है. नायक के साथ आप भी इस केस को खुलते हुए देखते हैं. बढ़िया थ्रिलिंग माहौल तैयार होता है. जहां आपको सांस लेने का भी मौका नहीं मिलता. ये फिल्म की खूबी भी है और खामी भी. क्योंकि ये फिल्म अपने में इतनी व्यस्त है कि उसे दर्शकों की फिक्र ही नहीं रह जाती. इस वजह से कई बार नैरेटिव के साथ कैच-अप कर पाना टास्क बन जाता है. वहीं सेकंड हाफ में फिल्म इतनी स्लो हो जाती है कि झपकियों की आमद शुरू हो जाती है. ऐसा होता है इन-कंसिस्टेंट राइटिंग की वजह से.

शाहिद कपूर की तोड़फोड़ परफॉरमेंस संभवत: इकलौती वो चीज़ है, जो 'देवा' को वन टाइम वॉच तो बनाती है. फर्स्ट हाफ में शाहिद की एनर्जी, अग्रेशन, रॉ इमोशन फिल्म को ऊपर उठाते हैं. वहीं सेकंड हाफ में उनका कैरेक्टर सिर से पांव तक बदल जाता है. हर बात पर सामने वाले पर बंदूक तान देने वाले किरदार के जीवन में एक मौका ऐसा आता है, जब उसके हाथ से गोली नहीं चल पाती. इन सीन्स में शाहिद की इन्टेंसिटी कमाल की है. फिल्म में मेरा फेवरेट सीन पवैल गुलाटी और शाहिद के किरदारों के बीच घटता है. क्लाइमैक्स से ऐन पहले. जब देवा को ऐसा लगता है कि उसकी चोरी पकड़ी गई. तब उसकी आवाज़ और देहभाषा में जो बदलाव आता है, वो आला काम है. पवैल गुलाटी ने रोहन का रोल किया है. उनका रोल छोटा है, मगर उसका इम्पैक्ट बड़ा है. प्रवेश राणा और कुब्रा सैत जैसे एक्टर्स बिल्कुल दरकिनार से कर दिए गए लगते हैं. उपेंद्र लिमये पांच मिनट के रोल में अपना प्रभाव छोड़ जाते हैं. पूजा हेगड़े ने एक जर्नलिस्ट का रोल किया है. मगर उनका किरदार कहीं से भी फिल्म को अफेक्ट नहीं करता है. उस किरदार का होना या न होना बराबर था.    

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'देवा' में शाहिद की परफॉरमेंस के अलावा फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर वो विभाग है, जो आपको इम्प्रेस करता है. क्योंकि वो कानों को फ्रेश लगता है. टिपिकल बॉलीवुड फिल्म होने से दूर ले जाता है. चूंकि ये फिल्म मुंबई में सेट है. आपका नायक या खलनायक जो भी कहना चाहें, वो मराठी है. इसलिए फिल्म के एक्शन सीन्स में आपको मराठी रैप सुनने को मिलता है. जो कि नए किस्म का प्रयोग लगता है. 'देवा' का बैकग्राउंड स्कोर जेक्स बिजॉय ने बनाया है.   

ये फिल्म अपना सारा वजन क्लाइमैक्स पर डाल देती है. क्लाइमैक्स में क्या घटने वाला है, इसका न कोई हिंट दिया जाता है, न दर्शक खुद अंदेशा लगा पाते हैं. इसलिए वो एलीमेंट ऑफ सरप्राइज़ फिल्म के पक्ष में काम कर जाता है. हालांकि अगर 'देवा' के क्लाइमैक्स की तुलना ओरिजिनल फिल्म के क्लाइमैक्स से करें, तो थोड़ा हल्कापन महसूस होता है. 2013 में आई 'मुंबई पुलिस' का क्लाइमैक्स बहुत पर्सनल है, इसलिए वो ज़्यादा चौंकाने वाला है. मेकर्स ने 'देवा' में उसे चेंज किया है. जिससे ऐसा फील होता है कि नॉर्थ में लोग अब भी LGBTq को स्वीकारने को तैयार नहीं हैं. मगर असलियत में ऐसा नहीं है. क्योंकि इस साल की सबसे कमाऊ फिल्मों में शामिल 'भूल भुलैया 3' में कार्तिक आर्यन का किरदार भी इसी कम्युनिटी से नाता रखता है.

रौशन एंड्र्यूज़ की 'देवा' सही-गलत, नैतिक-अनैतिक जैसे द्वंदों से जूझती है. मगर उसका पलड़ा पूरी तरह एक तरफ कहीं नहीं झुकता. वो दर्शकों पर छोड़ दिया जाता है. इसलिए फिल्म का अप्रोच रियलिस्टिक है. ये रीमेक के नाम पर बनाई गई बेदिमाग की फिल्म नहीं है. मगर ये एक अच्छी फिल्म बनने से छोटे मार्जिन से चूक जाती है.  

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