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कोरोना : क्या है 'महामारी ऐक्ट, 1897', जिसके तहत सरकार आपसे जुर्माना वसूल सकती है?

Epidemic Diseases Act, 1897 के तहत सरकार को कई शक्तियां मिल जाती हैं.

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कोरोना वायरस को लेकर जब सरकार ने महामारी ऐक्ट 1897 का सेक्शन 2 लागू करने की बात कही तो आज़ादी के पहले की महामारी याद आ गई. लेकिन उसकी वजह है (तस्वीर इंडिया टुडे)

कोरोना वायरस से बचने के लिए केंद्र सरकार ने एक ऐक्ट लागू करने की बात कही है. Epidemic Diseases Act, 1897 यानी महामारी अधिनियम, 1897. कैबिनेट सचिव ने 11 मार्च, बुधवार को कहा कि सभी राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशों को इस कानून के खंड-दो को लागू करना चाहिए, ताकि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और राज्य सरकार द्वारा समय-समय पर जारी परामर्श लागू किये जा सकें. अब सवाल उठता है कि ये महामारी अधिनियम, 1897 है क्या?


महामारी ऐक्ट के नियम क़ानून शुरुआत में बहुत सीधे साढ़े लगते हैं लेकिन ये वही क़ानून है जिसने आज़ादी से पहले अच्छा ख़ासा बवाल काटा था. कईयों को फांसी हुई. कई जेल गए (तस्वीर इंडिया टुडे)
महामारी ऐक्ट के नियम क़ानून शुरुआत में बहुत सीधे-सादे लगते हैं लेकिन ये वही क़ानून है, जिसने आज़ादी से पहले अच्छा-ख़ासा बवाल काटा था. कइयों को फांसी हुई. कई जेल गए (तस्वीर इंडिया टुडे)

# क्या है ये महामारी अधिनियम?

ख़तरनाक महामारी के प्रसार की बेहतर रोकथाम के लिए बनाया गया कानून है. केंद्र सरकार ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को जिस धारा को लागू करने के लिए कहा है, वो धारा-2 है.

इस एक्ट की धारा-2 में लिखा है,


जब राज्य सरकार को किसी समय ऐसा लगे कि उसके किसी भाग में किसी ख़तरनाक महामारी का प्रकोप हो गया है या होने की आशंका है, तब अगर वो (राज्य सरकार) ये समझती है कि उस समय मौजूद क़ानून इस महामारी को रोकने के लिए काफ़ी नहीं हैं, तो कुछ उपाय कर सकती है. ऐसे उपाय, जिससे लोगों को सार्वजनिक सूचना के जरिए रोग के प्रकोप या प्रसार की रोकथाम हो सके.

इस एक्ट के सेक्शन-2 के भी 2 सब-सेक्शन हैं. इनमें कहा गया है कि जब केंद्रीय सरकार को ऐसा लगे कि भारत या उसके अधीन किसी भाग में महामारी फ़ैल चुकी है या फैलने का ख़तरा है, तो रेल या बंदरगाह या अन्य तरीके से यात्रा करने वालों को, जिनके बारे में ये शंका हो कि वो महामारी से ग्रस्त हैं, उन्हें किसी अस्पताल या अस्थायी आवास में रखने का अधिकार होगा.

Epidemic Diseases Act, 1897 यानी महामारी अधिनियम 1897 का सेक्शन-3 जुर्माने के बारे में है. इसमें कहा गया है कि महामारी के संबंध में सरकारी आदेश न मानना अपराध होगा. इस अपराध के लिए भारतीय दंड संहिता यानी इंडियन पीनल कोड की धारा 188 के तहत सज़ा मिल सकती है.

इस ऐक्ट का सेक्शन 4 क़ानूनी सुरक्षा के बारे में है. जो अधिकारी इस ऐक्ट को लागू कराते हैं, उनकी क़ानूनी सुरक्षा भी यही ऐक्ट सुनिश्चित करता है. ये सेक्शन सरकारी अधिकारी को लीगल सिक्योरिटी दिलाता है. कि ऐक्ट लागू करने में अगर कुछ उन्नीस-बीस हो गया, तो अधिकारी की ज़िम्मेदारी नहीं होगी.


# तिलक ने इस ऐक्ट का तगड़ा विरोध किया था

केंद्र सरकार जिस महामारी ऐक्ट को लागू करने की बात कह रही है, उसका इतिहास बहुत डरावना है. साल था 1897. देश में प्लेग फ़ैल गया था. बम्बई से शुरू होकर पूना तक प्लेग का आतंक था. कहा गया कि बम्बई बंदरगाह पर कोई जहाज़ था, जिसकी वजह से प्लेग फ़ैला. अफ़सरों ने पूना छोड़ दिया. बाल गंगाधर तिलक ने अपने अखबार 'केसरी' में लिखा, 'जब अफ़सरों की ज़रूरत थे, तब वो भाग निकले.'


कोरोना से बहुत पहले एक दौर हुआ करता था जब ख़बर से पहले मौत पहुंचती थी. तब मौत ही ख़बर लेकर गांव गांव भटकती थी. (तस्वीर नैशनल म्यूज़ियम)
कोरोना से बहुत पहले एक दौर हुआ करता था, जब ख़बर से पहले मौत पहुंचती थी. तब मौत ही ख़बर लेकर गांव-गांव भटकती थी. (तस्वीर नेशनल म्यूज़ियम)

प्लेग की सूचना यूरोप पहुंची, तो भारत से दूसरे देशों का व्यापार बंद कर दिया गया. आख़िरकार वायसराय ने हालात भांपते हुए 4 फरवरी, 1897 को 'एपिडैमिक डिज़ीज़ ऐक्ट' लागू कर दिया. वायसराय और गवर्नरों को विशेष अधिकार मिल गए. किसी भी स्टीमर या जहाज़ की जांच, यात्रियों और जहाज़ों को रोकने का अधिकार. रेल में सफ़र करने वाले किसी भी यात्री को किसी भी स्टेशन पर रोककर जांच का अधिकार. यहां तक कि इस ऐक्ट के तहत मकानों की जांच का अभी अधिकार मिल गया.

सरकारी अस्पतालों की हालत खराब थी

अंग्रेज़ वायसराय और गवर्नर चाहते थे कि जनता सरकारी अस्पतालों में आए. लेकिन सरकारी अस्पतालों की हालत बहुत ख़राब थी. अब पुलिस ने घर-घर जाकर लोगों की जांच शुरू की. प्लेग की रोकथाम के लिए सरकार ने रैंड नाम के अफ़सर को पूना में नियुक्त किया. रैंड सतारा में सहायक कलेक्टर रह चुका था और सख्ती के लिए बड़ा कुख्यात था. उसे प्लेग कमिश्नर बना दिया गया. महामारी ऐक्ट के तहत उसे भी विशेष अधिकार मिल गए. बम्बई पूना के लोग प्लेग की जगह सरकार से ज़्यादा डर गए.

तिलक ने 'केसरी' में लिखा. 'सरकार को जनता का भरोसा जीतना चाहिए'. लेकिन सरकार फ़ैसला कर चुकी थी कि प्लेग से पूरी सख्ती से निपटना होगा. प्लेग कमिश्नर रैंड ने मकानों में मरीज़ों की जांच के लिए ब्रिटिश सेना को मकानों के निरीक्षण पर भेज दिया. तिलक ने 'केसरी' में लिखा, 'ये मिलिट्री टेररिज्म है. जनता के साथ सेना ने दुर्व्यवहार किया.'

कई अखबारों ने स्त्रियों के साथ छेड़खानी और बुजुर्गों के साथ मारपीट की बात भी लिखी. 'केसरी' ने लिखा, 'लोग कब तक इस तरह का आतंक सह सकते हैं?'


प्लेग की जांच के लिए तब गांव पहुंचे अधिकारी मौत के हरकारे लगते थे. जनता बीमारी से कम अधिकारी से ज़्यादा डरती थी (तस्वीर नैशनल म्यूज़ियम)
प्लेग की जांच के लिए तब गांव पहुंचे अधिकारी मौत के हरकारे लगते थे. जनता बीमारी से कम, अधिकारी से ज़्यादा डरती थी (तस्वीर नेशनल म्यूज़ियम)

22 जून को क्वीन विक्टोरिया की डायमंड जुबली थी. गवर्नर हाउस से डिनर करके बाहर निकलते प्लेग कमिश्नर को कुछ लोगों ने 'बदला लेने के लिए' गोली मार दी. पूना में कर्फ्यू लगा दिया गया. तिलक पर रैंड की हत्या का आरोप लगाया गया. ब्रिटिश सरकार ने एक शख्स को फांसी चढ़ा दिया और दो लोगों को देशनिकाला दे दिया. तिलक पर राजद्रोह का मुक़दमा लगाकर उन्हें कैद कर लिया गया.

ये तब की बात है, जब मौत ही डाकिया हुआ करती थी. जब तक महामारी की ख़बर पहुंचती, तब तक मौत पहुंच चुकी होती थी. आज की तरह न तो whatsapp था, न ही सोशल मीडिया. चिट्ठी और तार थे, लेकिन हवा से तेज़ नहीं चल सकते थे. हवाओं में मौत घुली रहती थी.


एक तस्वीर जिसमें दिखाया गया है कि आज़ादी से पहले जब महामारी फैलती थी तो ना सोचने का वक़्त मिलता था और ना समझने का (तस्वीर नैशनल म्यूज़ियम)
एक तस्वीर जिसमें दिखाया गया है कि आज़ादी से पहले जब महामारी फैलती थी, तो न सोचने का वक़्त मिलता था और न समझने का (तस्वीर नेशनल म्यूज़ियम)

# कब-कब लगा है ये ऐक्ट?

महामारी ऐक्ट, 1897 को पहले भी समय-समय पर लागू किया गया है.

साल 2009. पुणे में स्वाइन फ़्लू फैला था. तब इस ऐक्ट का सेक्शन 2 लागू किया गया था. इस सेक्शन के तहत अस्पतालों में स्क्रीनिंग सेंटर खोले गए थे. स्वाइन फ़्लू को तब सरकार ने बेहद गंभीर बीमारी की कैटेगरी में रखा था.

साल 2018. गुजरात का वड़ोदरा ज़िला. इस ज़िले के कलेक्टर ने Epidemic Diseases Act, 1897 के तहत नोटिस जारी किया था. खेड़कर्म्सिया गांव के वागोदिया तालुका में 31 लोगों में कोलेरा के लक्षण एक साथ दिखाई दिए.

साल 2015 में चंडीगढ़ में मलेरिया और डेंगू की रोकथाम के लिए इस ऐक्ट को लगाया जा चुका है. इस ऐक्ट में सिर्फ़ सरकारी नोटिस की बात ही नहीं लागू की गई, बल्कि तब सरकारी अधिकारियों को आदेश दिया गया था कि सरकारी नियम-निर्देश न मानने वालों पर 500 रुपए का जुर्माना हो. अधिकारियों ने इस ऐक्ट के तहत चालान काटे भी थे.

अब साल 2020 में कर्नाटक पहला राज्य बन गया है जिसने Epidemic Diseases Act, 1897 लागू किया है.  हाल में मेंगलुरु हवाई अड्डे पर जब कोरोना वायरस संक्रमण के लिए जाँच हो रही थी उस वक़्त दुबई से आ रहे एक यात्री को मामूली बुख़ार था.

इस यात्री को तुरंत सरकारी अस्पताल ले जाया गया ताकि आगे की विस्तृत जाँच के लिए उनके नमूने लिए जा सकें, लेकिन ये यात्री अस्पताल से भाग गया.
बाद में सुरक्षाबलों के एक दस्ते ने इस यात्री को खोज निकाला. अस्पताल ले जाया गया और हालांकि कोरोना वायरस के संक्रमण की पुष्टि नहीं हुई. यात्री को घर पर ही क्वारंटाइन किया गया.
कर्नाटक सरकार के आदेश में महामारी ऐक्ट के सेक्शन 3 को लागू करने की बात कही गई है. (तस्वीर ट्विटर)
कर्नाटक सरकार के आदेश में महामारी ऐक्ट के सेक्शन 3 को लागू करने की बात कही गई है. (तस्वीर ट्विटर)

अब प्रदेश सरकार ने इस तरह के मामलों को रोकने के लिए एक आदेश जारी किया है. इस आदेश में कहा गया है-
यदि कोई संदिग्ध व्यक्ति अस्पताल जाने से इनकार करता है या सभी से अलग रहने से इनकार करता है तो महामारी क़ानून की के सेक्शन 3 के तहत अधिकारी व्यक्ति को जबरन अस्पताल में भर्ती करा सकते हैं, 14 दिनों के लिए या फिर उनकी जाँच रिपोर्ट नॉर्मल आने तक दूसरों से अलग रहने के लिए बाध्य कर सकते हैं.
अब देखना ये है कि बाक़ी राज्यों की सरकारें इस महामारी ऐक्ट के किस सेक्शन को लागू करती हैं. इस ऐक्ट का सारा गुणा-गणित आपने समझ लिया. अब किसी से भी चौड़े में इस ऐक्ट पर बहस कीजिए या ज्ञान दीजिए. आपकी मर्ज़ी.


वीडियो देखें:

इंडिया की लैब्स में कैसे होती है कोरोना वायरस की जांच?