
शिवाजी महाराज से भेंट करते राजा छत्रसाल.
#कैसा है Chhatrasal शो? हिंदुस्तान के इतिहास में ऐसे बहुत से वीर और वीरांगनाएं हुईं हैं, जिन्हें हमारी पाठशाला की इतिहास की पुस्तकों के सीमित पाठ्यक्रम में जगह नहीं मिली. लिहाज़ा उनके शौर्य से जन मानस का एक बड़ा हिस्सा अंजान रहा. और सिर्फ मुट्ठी भर इतिहासकारों को ही इन वीरगाथाओं को पढने को मौक़ा मिला. सिनेमा के माध्यम से भी उन शासकों की ही कहानी पर्दे पर आईं जिनके बारे में जनता को पहले से थोड़ी-बहुत ही सही लेकिन जानकारी थी. क्यूंकि किसी 'अनसंग वारियर' की कहानी सिनेमा के पर्दे पर लाना अपने आप में एक बड़ा आर्थिक रिस्क है. इसी वजह से ज्यादातर मेकर्स मौजूदा ट्रेंड से जुड़ी आर्थिक सिक्योरिटी देने वाली 'क्राइम+कॉमेडी+एक्शन' के फ़ॉर्मूला वाली फ़िल्में बना कर सेफ़ खेलते हैं.
ऐसे में राजा छत्रसाल की कहानी पर बेस्ड शो से अपने सिनेमैटिक करियर की शुरुआत करने का जोखम लेने वाले डायरेक्टर अनादी चतुर्वेदी को साधुवाद. आइडिया तो काफ़ी अच्छा है, उसका एग्जीक्यूशन कैसा है? # आम VFX 'छत्रसाल' के VFX काफ़ी आम हैं. मतलब जहां भी VFX वाले सीन आते हैं, वहां साफ़ एनीमेशन नज़र आ जाता है. स्पष्ट मालूम पड़ता है कि ज्यादातर एक्टिंग ग्रीन स्क्रीन के आगे हुई है. लेकिन एक सीमित बजट में बनी सीरीज़ से 'गेम ऑफ़ थ्रोंस' के स्तर के VFX की उम्मीद करना भी ज़्यादती होगी. दूसरा भले एनीमेशन रियल ना लगे, लेकिन चॉइस ऑफ़ कलर्स एंड बैकग्राउंड परफेक्ट है.

सीन एनिमेटेड भले लग रहा है लेकिन कहीं से भी भद्दा नहीं लगता.
# साधारण प्रॉड्क्शन डिज़ाइन सीरीज में आपको भंसाली के करोड़ों के लागत में बनने वाले सेट्स की भव्यता नहीं दिखेगी. शो के दौरान 'फ़िल्म सेट' का अहसास आपको होता रहेगा. 'शो में इस्तेमाल किए गए तलवार, ढाल जैसे प्रॉप्स पर चढ़ा ताज़ा चांदी का रंग भी शो के टाइट बजट की तरफ लगातार इशारा करता रहेगा. # एक्स्ट्रा हीरोइज़्म मुग़ल सल्तनत के हाथों राज्य छुड़वाने वाले राजा छत्रसाल बेशक वीर थे. लेकिन सीरीज़ में उनकी वीरता में जोड़ा गया एक्स्ट्रा 'सुपर हिरोइज्म' हल्का सा खलता है. जैसे जब बाल छत्रसाल पानी में बहुत सारे मगरों से तेज़ तैरकर बिना किसी सहारे 8 फ़ीट ऊपर लटक रही बेल को नागराज की तरह पकड़ लेते हैं. और तब, जब छत्रसाल के माता-पिता दो पहाड़ियों के बीच के लगभग 100 फीट के फांसले को कृष की तरह टाप लेते हैं. अगर एडिटिंग टेबल पर ये सीन्स छांट दिए जाते, तो शो और ज्यादा बेहतर होता. #बढ़िया एक्टिंग आशुतोष राणा शो में आलमगीर औरंगज़ेब के किरदार में हैं. सबसे पहले तो कास्टिंग पॉइंट ऑफ़ व्यू से देखा जाए, तो औरंगज़ेब के लिए आशुतोष राणा का चुनाव अच्छा है. पेंटिंग्स से औरंगज़ेब की जो छवि हमारी आंखों के आगे बनती है, उसमें आशुतोष एकदम फिट बैठते हैं. शो देख मालूम पड़ता है औरंगज़ेब के किरदार के लिए उन्होंने कुछ वज़न भी बढाया है. शाही लिबास के नीचे भारी शरीर काफ़ी असल लगता है. एक अधेड़ उम्र का औरंगज़ेब ऐसा ही रहा होगा. राजा छत्रसाल के किरदार में जितिन गुलाटी हैं. जितिन का आगमन चौथे एपिसोड में होता है. चौथे से बीसवें एपिसोड तक जितिन कहीं निराश नहीं करते. राजा छत्रसाल के जवानी से बुढ़ापे के सफ़र को जितिन ने सधे ढंग से निभाया है. 'एम्.एस धोनी :द अनटोल्ड स्टोरी' में छोटी भूमिका निभाने वाले जितिन के लिए राजा छत्रसाल का किरदार करना, वो भी आशुतोष राणा जैसे अभिनेता के सामने, करियर का टर्निंग पॉइंट है.

औरंगज़ेब के किरदार में आशुतोष राणा.
'छत्रसाल' की सूत्रधार हैं नीना गुप्ता. शुरुआत से अंत तक नीना जी भिन्न-भिन्न रॉयल साड़ियों में दर्शकों को कहानी से जोड़ती हुईं चलती हैं. जितिन के अपोज़ीट वैभवी शांडिल्य अच्छी हैं. किशोर छत्रसाल के रोल में रूद्र सोनी भी प्रशंसा के हकदार हैं. रूद्र कई फिल्मों और सीरीज़ में पौराणिक पात्रों का चित्रण कर अब इन तरीकों के किरदार निभाने में निपुण हो चुके हैं. #देखें या नहीं?
कई टेक्निकल मापदंडों पर 'छत्रसाल' भले कमज़ोर पड़ती है, लेकिन शो की स्टोरी यानी राजा 'छत्रसाल' की जीवनगाथा, उनकी औरंगज़ेब जैसे तानाशाह को पस्त कर देने की कहानी बहुत ही ज्ञानपूर्ण और रोचक है. धर्मनिरपेक्षताऔर समाजवाद के सिद्धांतों पर चलने वाले महाराज छत्रसाल की कहानी की आज के दौर में सख्त ज़रूरत है.