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मूवी रिव्यू - बड़े मियां छोटे मियां

Bade Miyan Chote Miyan उस टॉफी की तरह है जो शुरू में जीभ पर रखते ही मीठापन छोड़ने की कोशिश करती है. लेकिन उसके खत्म होने तक मुंह में सिर्फ खटास रह जाती है.

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BMCM के मेकर्स को समझना चाहिए कि स्केल बड़ा करने से या विदेश में शूट करने से फिल्म बड़ी नहीं बनती.

Bade Miyan Chote Miyan
Director: Ali Abbas Zafar
Cast: Akshay Kumar, Tiger Shroff, Manushi Chillar, Prithviraj Sukumaran, Alaya F
Rating: 2 Stars (**)

Bade Miyan Chote Miyan की शुरुआत में भारत का एक ज़रूरी हथियार चोरी हो जाता है. चुराने वाला खुद को प्रलय बताता है. कहता है कि उसका इरादा पूरे हिंदुस्तान को घुटने पर लाने का है. ऐसे में इंडियन फोर्स अपने दो कोर्ट मार्शल हुए जवानों को बुलाती हैं. फिरोज़ और राकेश इनके ऑफिशियल नाम हैं. लेकिन सब उन्हें फ्रेडी और रॉकी बुलाते हैं. एक मिशन की वजह से उनके नाम से बड़े मियां और छोटे मियां भी जुड़ जाता है. खैर ये दोनों कैसे उस हथियार को वापस लाएंगे, उसमें ऐसा क्या है कि पूरे हिंदुस्तान पर खतरा मंडरा रहा है, यही फिल्म की कहानी है. 

अली अब्बास ज़फर ने अपनी फिल्म में दो एलिमेंट्स को साथ लाने की कोशिश की है. पहला है अक्षय कुमार और टाइगर श्रॉफ. और दूसरा है एक्शन और कॉमेडी. कुछ हद तक इन दोनों चीज़ों में कामयाब भी हुए और कमी भी छूट गई. अक्षय और टाइगर ऐसे ऑफिसर बने हैं जिनका आपस में लव-हेट टाइप रिलेशनशिप है. दोनों एक दूसरे पर तंज कसते रहते हैं. टांग खींचते हैं. लेकिन मिशन के लिए हमेशा साथ हो जाते हैं. फिल्म के फर्स्ट हाफ में जैसे कॉमेडिक पंचेज़ थे, वो अपना काम भी करते हैं. बस उनके साथ एक मसला है. फ्रेडी और रॉकी अपना एक मिशन शुरू करने वाले हैं. तब टाइगर का किरदार रॉकी कहता है कि मैं Pubg शुरू करता हूं. फ्रेडी तुरंत पलटकर कहता है, ‘चाइनीज़ गेम. देशद्रोही’. 

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फिल्म के एक एक्शन सीन में अक्षय कुमार और टाइगर श्रॉफ.

मिशन पूरा होता है. रॉकी कहता है कि Pubg ने 16 मारे. फौजी ने कितने मारे? आपको याद आता है कि कोरोना पैंडेमिक के दौरान Pubg को बैन कर दिया गया था. तब अक्षय ने ‘फौजी’ नाम का गेम शुरू किया. ये उसी को कॉल बैक था. खैर एक और जगह फ्रेडी ‘फिर हेरा फेरी’ के राजू वाला पोज़ देता है. एक जगह टाइगर कहते हैं कि टेररिज़म में भी नेपोटिज़्म होता है. वहां मौजूद सभी लोग उन्हें देखने लगते हैं. ऐसे सीन्स पर क्विक हंसी आती है. लेकिन फिर लगता है कि यहां ह्यूमर निकलवाने के लिए मेटा रेफ्रेंसिंग का इस्तेमाल हुआ. यानी किरदार की जगह एक्टर पर कमेंट्री कर के ऑडियंस से रिएक्शन निकलवाना. अक्षय की जितनी भी पॉपुलर कॉमेडी फिल्में हैं, वहां अक्षय पर कमेंट नहीं किया गया. बल्कि उनके किरदार की दशा दिखाई. जिससे ऑर्गैनिक ढंग से कॉमेडी निकली. एक्टर पर कमेंट्री करने से आप ऑडियंस और किरदार के बीच कोई ब्रिज बनने ही नहीं देते हैं. आपका दर्शक कहानी में इंवेस्टेड होना चाहता है, और तभी आप चुटकी बजाकर कह देते हैं कि ये तो एक फिल्म है. 

दूसरा पक्ष है फिल्म का एक्शन. फिल्म में कुछ कूल एक्शन सीक्वेंसेज़ हैं जहां हीरोइज़्म को अच्छे ढंग से भुनाया गया है. ऐसा नहीं था कि हीरो ने हाथ उठाया और 100 की भीड़ हवा में. एक्टर्स को एक्शन करते हुए देखकर लगता है कि वहां मेहनत की गई है. बस कुछ जगह एक्शन सीन्स के बीच में कंटिन्यूटी टूटती है. लेकिन वो इतने बड़े फर्क की तरह नहीं लगता कि सीन का मज़ा खराब हो. फ्रेडी और रॉकी के पहले एक्शन सीन को बड़ा बनाया गया. फिर चाहे वो बमबारी हो या फिर हैंड-टू-हैंड कॉम्बैट. एक्शन के मामले में टाइगर श्रॉफ और अक्षय कुमार का सही इस्तेमाल हुआ है. बस दिक्कत ये है कि ऐसे सीन चुनिंदा मोमेंट्स बनकर रह जाते हैं. 

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फिल्म ने पृथ्वीराज सुकुमारन को खर्च कर दिया.  

अक्षय कुमार समेत फिल्म से जुड़े काफी लोगों ने अपने इंटरव्यूज में कहा कि वो हॉलीवुड वाले नेरेटिव से पक गए हैं. कि दुनिया पर मुसीबत आए तो अमेरिका हम फर्स्ट, हम फर्स्ट कर के आगे आ जाता है. ‘इंडिपेंडेंस डे’ समेत दर्जनों फिल्में इसी फॉर्मूले पर बनी हैं. अक्षय ने कहा कि BMCM के ज़रिए वो ये दिखाना चाहते हैं कि इंडिया भी ये काम कर सकता है. ग्लोबल जाने के चक्कर में ‘बड़े मियां छोटे मियां’ की कहानी इंडिया के अलावा पूरी दुनिया में घूमती है. कभी जॉर्डन जा रहे हैं, कभी ग्लासगो जा रहे हैं, मज़े ही मज़े. ग्लोबल होने के चक्कर में ये फिल्म अपनी इंडियन नेस या भारतीयता बनाकर नहीं रख पाती. हम देखते हैं कि हमारी जैसी चमड़ी वाले लोग हमारी जैसी भाषा बोल रहे हैं. उसके अलावा सब कुछ बाहर का लगता है. वही टेक्नोलॉजी और वही विलन का मास्क और भारी लेदर वाला कॉस्ट्यूम. फिल्मों के आगे ‘हाई आक्टेन’, ‘बिग स्केल’ जैसे लेबल जोड़ने के चक्कर में अक्सर मेकर्स फिल्म की जड़ें भूल जाते हैं. 

‘बड़े मियां छोटे मियां’ में अक्षय और टाइगर की केमिस्ट्री कुछ जगहों पर फन थी. दोनों ने सही एक्शन किया. कुछ कॉमेडिक पंचेज़ भी काम करते हैं. उनके अलावा मानुषी छिल्लर ने कैप्टन मीशा का रोल किया. उन्होंने अपने डायलॉग एक एक्सप्रेशन और एक टोन के साथ बोलते हैं. बाकी अलाया एफ टेक के मामले में इन लोगों की मदद करती हैं. उनके किरदार को पहले सीन में जैसा दिखाया गया, वो आगे की फिल्म में बस उसी को कम-ज़्यादा कर के पेश करती रहती हैं. सोनाक्षी सिन्हा के हिस्से ज़्यादा स्क्रीनटाइम नहीं आया. बाकी पृथ्वीराज सुकुमारन को भी खर्च किया गया है. उनके विलन को मोटिव दिया, बस फिल्म उसके जुनून की गहराई में उतरने में इच्छुक नहीं दिखती.

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दुनियाभर में घूमने के चक्कर में फिल्म अपनी भारतीयता बनाकर नहीं रख पाती. 

BMCM के मेकर्स से बस इतना ही कहना है कि अगर आपको अपनी फिल्म पर यकीन था, तो इसकी लंबाई के साथ समझौता नहीं करना चाहिए थे. क्लाइमैक्स इतना खट-खट होकर निकलता है कि कोई इम्पैक्ट नहीं छोड़ता. उसके बाद एक लाइन का मोनोलॉग आता है और पिक्चर खतम. क्रेडिट्स आ रहे हैं. लोग अपनी सीटों से उठ रहे हैं. इस बात पर किसी का ध्यान नहीं जाता कि पोस्ट क्रेडिट्स में मेकर्स ने दो गाने चिपकाकर अपने कर्तव्य से छुट्टी पा ली. उनका ऐसा ही रवैया फिल्म के बाकी गानों को लेकर भी था. वो गाने जिनके बोल इरशाद कामिल ने लिखे और विशाल मिश्रा ने म्यूज़िक दिया. इन गानों का रिटेंशन बस 15 सेकंड वाली रील के बराबर बनकर रह जाता है.                                                               
 

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