Ashutosh Rana हाल ही में लल्लनटॉप के प्रोग्राम 'गेस्ट इन द न्यूज़ रूम' में पहुंचे थे. यहां उनके साथ जीवन से लेकर करियर, दर्शन समेत तमाम मसलों पर बात हुई. इस बातचीत के दौरान उनसे ओशो के बारे में पूछा गया. पूछा गया कि वो अपनी बातचीत में कभी ओशो का ज़िक्र नहीं करते. इस पर आशुतोष ने कहा कि ओशो का ज़िक्र पूरी दुनिया कर रही है. वो उन्हें फिलोसॉफर के तौर पर बहुत पसंद करते हैं. मगर उन्होंने कभी इस चीज़ का उल्लेख नहीं किया.
ओशो से किस बात पर ख़फ़ा हैं आशुतोष राणा?
Ashutosh Rana ने बताया कि उन्होंने Osho के बारे में कभी सोचा नहीं. वो उन्हें फिलोसॉफर के तौर पर पसंद करते हैं. मगर शायद उनके भीतर ओशो को लेकर एक टीस है.
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आशुतोष ने कहा कि उन्होंने इस बारे में कभी सोचा नहीं. मगर वो इस चर्चा के दौरान ही इस बारे में सोचना चाहेंगे. आशुतोष राणा सोचते हुए ओशो के बारे में कहते हैं,
गाडरवाडा एक बहुत छोटा सा गांव है. ओशो भी वहीं के हैं. महर्षि महेश योगी जैसे लोग वहां के हैं. दादा धूनीवाले वहां के हैं. वो एक पट्टा है पूरा. देखिए, हम और आप आत्मनिर्भर लोग नहीं हैं. हम परस्पर निर्भर हैं. कहीं न कहीं हम एक-दूसरे का निर्माण करते जाते हैं. एक-दूसरे का जगत हमारा निर्माण करते जाता है. आपकी ज़िम्मेदारी हो जाती है कि आप भी उसको कुछ लौटाएं. जैसे समुद्र, बादल को देकर भूल जाता है. लेकिन बादल, समुद्र से लेकर याद रखता है. और उसे लौटाता है समय पर.
मुझे लगता है कि कहीं न कहीं उनकी जिंदगी में गाडरवाड़ा का कॉन्ट्रिब्यूशन रहा होगा. लेकिन गाडवारा की ज़िंदगी में उनका कॉन्ट्रिब्यूशन हमें नहीं मिलता. आज जब आपने ज़िक्र किया ओशो का, तो मैं कहना चाहता हूं कि गाडरवाडा कहता घूम रहा है कि ओशो हमारे हैं. लेकिन क्या ओशो ये कहते हुए घूम रहे हैं कि गाडरवाड़ा मेरा है? ये है वो भूमि जहां से ये बीज आज एक महा वट वृक्ष में परिवर्तित हो गया. मेरा ये मानना है कि ये वृक्ष की ज़िम्मेदारी होती है कि वो भूमि की तरफ गुहार लगाए. हो सकता है कोई एक असोसिएशन कभी मेरे दिमाग में रहा हो. आपने मुझसे पूछा, तो मैं उसका एक कारण ढूंढ़ने का प्रयास कर रहा हूं. अन्यथा ऐसा और कोई कारण नहीं है. मैं उनकी राइटिंग की बहुत प्रशंसा करता हूं. मेरे लिए बहुत गौरव की बात है कि मेरा जन्म उस भूमि में हुआ, जहां ऐसे दिव्य आत्माएं, ऐसी बुद्ध चेतनाएं का जन्म हुआ. जिन्होंने पूरे विश्व को एक नवीन दर्शन से संपन्न किया. ये मेरे लिए गर्व की बात है. लेकिन हम उनके भक्त तो नहीं हैं. हम अपने गुरुदेव भगवान पूज्य दद्दा जी के अलावा किसी के भक्त नही हैं. वही हमारे मंज़िल हैं. वही हमारे मार्ग हैं. और वही हमारे मार्गीय हैं. मुझे लगता है कि शायद उन पर (दद्दा पर) फोकस्ड होने के कारण हम उनका (ओशो का) उल्लेख न कर पाए हों."
राणा ने इस इंटरव्यू में आगे अपने दद्दा प्रेम पर बात की. उन्होंने वो किस्सा बताया, जब वो NSD में दाखिले के लिए गए. मगर वहां इंटरव्यू लेने वाले व्यक्ति से उनकी जबर बहस हो गई. जिसके फेर में NSD की टीचिंग फैकल्टी दो गुटों में बंट गई. ऐसे तमाम किस्से आपको मिलेंगे ‘गेस्ट इन द न्यूज़रूम’ के इस एपिसोड में.
आशुतोष राणा पिछली बार अनुभव सिन्हा की फिल्म ‘भीड़’ में नज़र आए थे. इसके अलावा वो YRF स्पाय यूनिवर्स की फिल्म ‘पठान’ का भी हिस्सा थे. इसमें उन्हें कर्नल लूथरा का रोल किया. आने वाले दिनों में वो ‘सिंघम अगेन’ और ‘वॉर 2’ जैसी फिल्मों में नज़र आने वाले हैं.
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