लगभग हफ्ते भर पहले एप्पल का एक नया ऐड आया है. 'द ह्यूमन फैमिली' नाम से. ये उनकी ओलंपिक की अपनी तरफ से तैयारी थी. खेल रहे देशों के लोगों को इस ऐड में दिखाया गया है. जैसा कि आपने किसी भी फिल्म के पहले देखा होगा. 'Shot on iPhone' वाले कैंपेन से ये अपना प्रचार करते हैं. अब देखिए दिक्कत कहां है. इसमें इंडिया की तीन तस्वीरें दिखाई गईं हैं. एक तस्वीर में दो लड़के एक घाट पर बैठे हैं. अगली तस्वीर में एक किसान आसमान को ताक रहा है. तीसरी तस्वीर एक साधु की है. दिक्कत ये है कि भारत का मतलब सिर्फ किसान या साधु-संत नहीं है. भारत मतलब सिर्फ नदी के घाट, संन्यासी, किसान और खेत नहीं है. ये सच है कि ये हमारी संस्कृति का हिस्सा है. हम इनसे कितना घुले-मिले हैं इसमें कोई डाउट नहीं, लेकिन जब बाहर यही चीजें जाती हैं तो एक स्टीरियोटाइप बनता है. भारत चले जाओ, गंगा नहा लो. गरीब किसान रहते हैं. जो गांवों में रहते हैं. आज भी खेती के लिए आसमान तकते हैं.

उसी वीडियो में दूसरे देश की अकेली घूमती लड़की दिखती है. फक्कड़ से सयाने अंकल दिखते हैं. हंसते-खिलखिलाते कपल दिखते हैं. समंदर में गोते लगाते कपल दिखते हैं. बच्चे दिखते हैं. कोई गाल में साबुन लगा खिलखिलाता है. खुश-खुश सी लड़कियां दिखती हैं. पर भारत के नाम पर वही दिखता है जो आज से साठ साल पहले भी दिखाया जा रहा था. क्या हमारे यहां बच्चे नहीं होते. या कपल नहीं होते. कहने को इस वीडियो में कुछ गलत नहीं है. पर आप समझिए गलत क्या है. विज्ञापन होते हैं असर डालने को और अगर इस विज्ञापन से किसी के भी मन में हमारी वही नदी तीर वाली छवि बनती है तो इतने सालों में हमने कुछ नहीं किया क्या? हम भी न्यूक्लियर पॉवर हैं यार, चंदा-मंगल कहां नहीं पहुंचे हैं? और तुम दिखाते हो कि हमारा किसान आसमान निहार रहा है. ये उतना ही गलत है जितना औरत को घर के काम करते दिखाना. या किसी प्रदेश विशेष के आदमी को हर जगह नौकर या रिक्शे वाला दिखाना. https://www.youtube.com/watch?v=ztMfBZvZF_Y