एक एक्टर है मानव नाम का. सॉरी एक्टर नहीं स्टार है. एक एक्शन स्टार. अपनी फिल्म की शूटिंग के लिए हरियाणा पहुंचता है. वहां भाईसाहब के एक फैन को उनके साथ फोटो खिंचवानी है. फैन और स्टार का रिश्ता, इमोशनल कर देने वाला. फील गुड वाली फीलिंग देने वाला. लेकिन यहां ऐसा नहीं है. ये रिश्ता वैसा हो जाता है जैसे शाहरुख की फिल्म फैन में आर्यन और गौरव का था. या एमिनेम के क्लासिक गाने स्टैन में उनके और स्टेनली के बीच था.
मूवी रिव्यू - एन एक्शन हीरो
‘एन एक्शन हीरो’ आपको अच्छे से एंटरटेन तो करती है, लेकिन सिर्फ एंटरटेन नहीं करती. ये अपने समय पर कमेंट्री भी करती है, वो भी पूरे तीखेपन के साथ.

खैर, मानव और इस फैन के बीच गलतफहमी हो जाती है. जिसके चलते गलती से उस फैन का मर्डर हो जाता है. मानव हो जाता है वहां से फरार, क्योंकि अब उसके पीछे आ रहा है भूरा. ये मरने वाले शख्स का भाई है. मानव उससे कैसे बचेगा, कहां छुपेगा, आगे यही भाग-दौड़ चलती है. कहानी का मेन प्लॉट भले ही मानव और भूरा के बीच की दुश्मनी है, लेकिन फिल्म सिर्फ इतनी नहीं. इस बीच क्या कुछ घटता है, अब उस पर बात करते हैं.
# पिच्चर में पिच्चर चल रही है
हम में से अधिकांश लोगों का सिनेमा से परिचय हुआ मेनस्ट्रीम फिल्मों के ज़रिए. हमारे घर के बड़े कहेंगे कि उन्होंने अमिताभ बच्चन को एक्शन करते देखा. बड़े भईया कहेंगे कि वो अक्षय कुमार को कांच तोड़कर बिल्डिंग में घुसते देख सीटियां बजाते. हमारे सिनेमा का सफर ऐसे ही हीरोज़ से शुरू हुआ. ‘एन एक्शन हीरो’ इस बात के प्रति अवगत लगती है, साथ ही ऐसे सिनेमा को अपनी ओर से ट्रिब्यूट भी देती है. मानव एक एक्शन स्टार है. वो काम के लिए लड़ता है, अपने शौक के लिए नहीं. हालांकि मर्डर के बाद ये काम और शौक वाला फर्क खत्म हो जाता है.
आप मानव के यूनिवर्स में दाखिल होते हैं. उसके बाद ‘एन एक्शन हीरो’ नाम की फिल्म में एक और फिल्म चलती है. जिसके हीरो आयुष्मान खुराना नहीं, बल्कि मानव है. मानव के साथ वही टिपिकल चीज़ें होती हैं, जिन्हें हम एंटरटेनिंग एक्शन फिल्मों में देखते आए हैं. एक दुश्मन जो उसे मारने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है. कोई मुस्लिम किरदार मिलेगा जो गिरेबान जैसे उर्दू शब्द इस्तेमाल करेगा. फिल्म ऐसे सभी एलिमेंट्स के प्रति जागरूक होने के साथ-साथ उसकी एंटरटेनमेंट वैल्यू भी नहीं खोती. कुल मिलाकर एक्शन फिल्मों के एलिमेंट्स को ट्रिब्यूट देती हुई एक ऐसी फिल्म जो उतनी ही एंटरटेनिंग है.
फिल्म के डायरेक्टर अनिरुद्ध अय्यर के दिमाग से ही फिल्म की कहानी निकली. फिर उसके स्क्रीनप्ले और डायलॉग पर काम किया नीरज यादव ने. पिछले कुछ समय से हिन्दी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर असरदार नहीं साबित हुई. इसकी एक वजह ये सुनने और पढ़ने में मिलती है कि ये कोरोना से पहले की फिल्में थीं, कुछ करीब चार-पांच साल पुरानी. कोरोना के बाद बहुत कुछ बदल गया. इसके चलते ये फिल्में रेलेवेंट नहीं रह पाईं. ‘एन एक्शन हीरो’ आज के समय की कहानी. आज के सोशियो-पॉलिटिकल माहौल में सेट कहानी. किसी भी कहानी को बड़ी ऑडियंस तक पहुंचाने का तरीका है कि उसे एंटरटेनिंग बनाया जाए. इससे प्रोड्यूसर भी लगाए हुए पैसे पर मुनाफा बना ले.
‘एन एक्शन हीरो’ आपको अच्छे से एंटरटेन तो करती है, लेकिन सिर्फ एंटरटेन नहीं करती. ये अपने समय पर कमेंट्री भी करती है, वो भी पूरे तीखेपन के साथ. ऐसे में ये अपना स्टैंड भी बिना सटल हुए क्लियर करती है. फिर चाहे वो मीडिया पर टिप्पणी हो, या बॉयकॉट बॉलीवुड जैसे कैम्पेन पर. बस फिल्म ऐसा शांति से नहीं करती. हर थोड़ी देर में ये ऑब्वीयस होता रहता है कि फिल्म अपने दर्शकों से सीधा बात करना चाह रही है. एक मेनस्ट्रीम फिल्म में इस सटायर को या कमेंट्री को कैसे रिसीव किया जाता है, ये देखने लायक होगा.
# स्टार आखिर एक्टर कैसा है?
‘एन एक्शन हीरो’ मानव की दुनिया है और बाकी सब बस उसमें एग्ज़िस्ट करते हैं. मानव बने आयुष्मान खुराना ये पूरी तरह समझते हैं कि उन्हें यहां एक स्टार की एक्टिंग करनी है, एक एक्टर की नहीं. उसके साथ जो कुछ भी घटता है, वो पूरी तरह फिल्मी होता है. और आयुष्मान भी अपने एंड से आपको ये यकीन दिलवा पाते हैं. जैसे हीरो को मुक्का पड़ा और वो उठकर अपना जबड़ा ऐडजस्ट करना लगा. असलियत में भले ही हम ये नज़ारा नहीं देखते, लेकिन कितनी ही फिल्मों में ऐसा सीन रहा है. आयुष्मान उस स्टार वाले ऑरा को पूरी फिल्म में बनाकर चलते हैं.
उनके साथ-साथ इस कहानी को एंटरटेनिंग बनाते हैं जयदीप अहलावत. ‘पाताल लोक’ के बाद से ही लोग ये समझ चुके हैं कि जयदीप अपने हरियाणवी एक्सेंट में एक नॉर्मल बात बोलकर भी ह्यूमर निकाल सकते हैं. यहां उसका नमूना कई मौकों पर देखने को मिलता है. जैसा विलेन आयुष्मान के मानव को चाहिए, जयदीप उसे वैसी ही टक्कर देते हैं. उन्हें देखना फुल पैसा वसूल एक्सपीरियेंस था.
‘एन एक्शन हीरो’ देखते वक्त इस बात पर एक मिनट के लिए भी ध्यान नहीं गया कि ऑफिस जाकर रिव्यू लिखना है. या फोन चेक कर लूं कि इंस्टाग्राम पर कितने लोगों ने स्टोरी को लाइक किया. कहानी मुझे पूरी तरह खुद में इंवेस्टेड रख पाई. सौ बात की एक बात, मज़ा आया.
वीडियो: मूवी रिव्यू - डॉक्टर G