हमको तो पता भी नहीं कि कम्बख्त कैंसर शुरू काहे से होता है. इसलिए हमको हर अच्छी-बुरी चीज से कैंसर शुरू हुआ लगता है. इस सकल ब्रह्मांड में उल्कापिंड भी कसमसाए तो हम उसे कैंसर की वजह बता सकते हैं. जान बचाने को हम वो चीज छोड़ भी देते हैं.

Food Safety and Standards Authority of India नाम की अथॉरिटी है, आपके खाने-पीने का ख्याल रखती है. उसी ने पोटेशियम ब्रोमेट पर बैन लगाया है. फ्रीडम ऑफ स्पीच नहीं दबाई जा रही है. खदबदाइएगा नहीं ये कोई पोर्न साइट भी नहीं है. पोटेशियम ब्रोमेट फ़ूड एडिटिव होता है. फ़ूड एडिटिव्स खाने में मिलाए जाते हैं. क्वालिटी या टेस्ट बदलने को. जगजाहिर है बढ़ाने को. तो जो ये हौफा
था कि ब्रेड उर्फ डबलरोटी खाने से कैंसर होता है, वो इसी चीज के कारण था.

Source- funnyjunk
पिछले महीने से ही ये बात चली थी कि पोटेशियम ब्रोमेट एडिटिव के तौर पर खाने में मिलाने लायक है या नहीं. हेल्थ मिनिस्ट्री, सेंटर फॉर साइंस एंड इंवायरमेंट और FSSAI ने सिर खपाया और तय किया कि नहीं. सेंटर फॉर साइंस एंड इंवायरमेंट की स्टडी में ये बात आई थी कि जांच किए गए ब्रेड, बन और पाव वगैरह के 84 परसेंट सैंपल में पोटेशियम ब्रोमेट था, पोटेशियम आयोडेट भी था. FSSAI ने हेल्थ मिनिस्ट्री को सिफारिश भेजी और जायज फ़ूड एडीटिव्स की लिस्ट से पोटेशियम ब्रोमेट का नाम हटवा दिया.

पोटेशियम ब्रोमेट बला क्या है?
पोटेशियम ब्रोमेट, पोटेशियम का ब्रोमेट है, जैसे नरेंद्र नरों का इंद्र और गोपाल गायों को पालने वाला होता है. दरअसल ये बनता तब है जब लैब में ब्रोमीन को पोटेशियम हाइड्रोक्साइड से गुजारा जाता है. ज्यादा न सोचिए, कुछ ऐसा होता है.
इसे कैटगरी 2B का कार्सिनोजेन माना जाता है. कार्सिनोजेनिक माने वो जो इंसानों में कैंसर पैदा कर सकते हैं. इस पर तमाम मुल्कों में बैन लगा है. कनाडा से नाइजीरिया तक. साउथ कोरिया से पेरू तक. चाइना और श्रीलंका तक बैन लगाए बैठे हैं इस पर. जापान वालों ने शुरू-शुरू में चूहों- चुहियों पर आजमाकर बताया था कि इससे कैंसर होता है. वैसे ये सिर्फ खाने बस में नुकसान नहीं पहुंचाती. सीधे भी बॉडी के संपर्क में आ जाए तो नुकसान करती है.
पोटेशियम ब्रोमेट डालते काहे हैं?
ये ब्रेड में डाल दो तो वो चमकती है, वैसे नहीं जैसे जुगनू. सफेद दिखती है, समझते हैं न, सफेदी की चमकार टाइप. सफेद दिखने से ज्यादा फ्रेश लगती है. ये आटे की क्वालिटी सुधारने के लिए यूज होता है. टेक्निकली जो लोई होती है न ब्रेड की ये उसकी इलास्टिसिटी बढ़ाता है. उसकी मजबूती बढ़ाता है. इससे होता क्या है कि जब ब्रेड बेक होती है तो आड़ी-तिरछी या काली-पीली नहीं हो जाती. आटा खींच के कभी चिड़िया बनाए हैं? बनाए होंगे तो समझेंगे इसकी क्या इम्पोर्टेंस है.
ये काम ऐसे करता है कि ये ऑक्सीडाइजर है. ये केमिकल रिएक्शन से लोई को ब्लीच करता है. इसकी इलास्टिसिटी बढाता है तो मॉलिक्युल्स के बीच बंधन बनाता है. छोटे-छोटे जो पतले-गोलू बबल्स बनते हैं इसी कारण से. आटे को सिर्फ खुल्ली हवा के मुकाबले कहीं जल्दी पकाता है.

पार्ट पर मिलियन में इसका हिस्सा अगर 15-30 हो तो कहीं कुछ पता नहीं लगता, केमिकल लोचा होता है और वो हार्मलेस हो जाती है. लेकिन जब अकहाय धउंच
देते हैं तो दिक्कत शुरू हो जाती है. सस्ते में मिल जाती है, हर जगह मिल जाती है तो ज्यादा इस्तेमाल होती है. लोगों को कहा जाता है कि इसकी जगह एस्कोर्बिक एसिड डाल लो, विटामिन- सी डाल लो. लगभग वही काम करेगा. पर मानता कौन है. हमारे Food Safety and Standards Authority of India ने तो ये भी कहा कि ग्लूकोज ऑक्सीडेज नाम का एंजाइम इस्तेमाल कर लो. नहीं मानते लोग.
