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एयरलिफ्ट: थीम जहां कमजोर पड़े, वहां 'भारत माता की जय'

याद रखिए. अक्षय कुमार अब नए इंडियामैन हैं. पर्दे पर. मोदी जी उनका एनआरआई कैंपेन में इस्तेमाल कर सकते हैं.

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फोटो - thelallantop

फिल्मः एयरलिफ्ट कौन कौन हैः अक्षय कुमार, निमरत कौर, इनामुलहक, प्रकाश बेलावाड़ी कित्ती लंबीः 2 घंटा 5 मिनट रेटिंगः 2.5

एक बिजनेसमैन है. कुवैत में. रहने वाला इंडिया का है. पर इंडियंस को थूथू करता रहता है. हचककर पइसा बना रहा है. सब शेख वेख से जान पहचान. डील करता है. फिर बिटिया को किस्सी देकर सोने भेज देता है. पत्नी को लेकर पार्टी करने जाता है. वाइन पीता है. गाना गाता है. बैली डांसर लोगन के साथ. फिर स्कॉच भी पीने लगता है. बैड कॉम्बिनेशन. धुड़ूम. बम फटा. गोली चली. इराक की फौज घुस आई कुवैत में. सब भगे भगे फिर रहे हैं. मैन भी वुमन, बिटिया संग सरकने की फिराक में. लेकिन पहले उसकी कंपनी, फिर इंडियन कम्युनिटी के लोग मदद के लिए आते रहते हैं. उसका बदल जाता है दिल. न पइसा देखता है. न पावर. लग जाता है मदद करने. और 2 घंटा 5 मिनट बाद सबको ले आता है इंडिया सुरक्षित. उसके पहले इराकी फौजियों को पेलता है. तिरंगा लहराता है. बैकग्राउंड में वंदे मातरम बजवाता है. हमारी आंखें छलछला उठती हैं. यही तो चाहते थे राजा. नाम राजा कृष्ण मेनन. फिल्म के डायरेक्टर हैं. शिंडलर्स लिस्ट और आरगो फेवरिट फिल्म रही होगी. पहली फिल्म, महान स्पीलबर्ग की. उसमें एक कारोबारी होता है. इसी नाम का. जब हिटलर की सेना जर्मनी में यहूदियों को चुन चुनकर मार रही है, शिंडलर बचाता है. उसके लिए एक फैक्टरी खोल लेता है. जबरन नौकरियां पैदा करता है. ताकि सेना को कह सके. ये आपकी सेवा कर रहे हैं हुजूर. और दूसरी फिल्म आरगो बेन एफ्लेक की. ईरानी क्रांति के दौरान 1979 में अमेरिकी एंबैसी की एंप्लॉई तेहरान के दूतावास में फंस जाते हैं. फिर कनाडा वालों की मदद से बाहर निकलते हैं. उसी की कहानी है ये. इन दो डीवीडी के बाद चाहिए था एक अदद प्लॉट. 1990 का ऑपरेशन एयरलिफ्ट. जब खाड़ी युद्ध हुआ. इराक ने कुवैत पर हमला कर दिया. पर सद्दाम हुसैन भारतीयों से कट्टी नहीं हुआ था. ऐसे में इंडियंस को कुवैत से जॉर्डन लाया गया. वहां से एयर इंडिया ने 488 उड़ानें भरीं. लाखों लोग घर लौटे. इस बड़े काम में कई लोगों ने अहम रोल निभाया. ये लोग कुवैत के भारतीय कारोबारी थे. राजा ने सबको एक में मिलाया. बन गया रंजीत कात्याल. यानी अक्षय कुमार. उन्होंने बढ़िया एक्टिंग की है. उनसे भी बढ़िया एक्टिंग की है उनकी पत्नी अमृता के रोल में निमरत कौर ने. निमरत अपना हुनर 'लंच बॉक्स' और 'होमलैंड सीजन 4' में दिखा चुकी हैं. बाकी जो तीन बढ़िया रोल हैं, वो मिले हैं कुमुद मिश्रा, प्रकाश बेलावाड़ी और इनामुलहक को. कुमद भारतीय विदेश सेवा के अफसर बने हैं. सरकारी गति को सजीव करते. प्रकाश ने रंजीत कात्याल को अपनी हरकतों से खूब चरस बोई. बेचारगी में भी क्लास कोंचने वाला इंसान. और इनामुलहक. वो इराकी अफसर बने हैं. उनके कैरेक्टर का हिंदी बोलना हजम नहीं होता. पर एक्टिंग आती है लड़के को. फिल्मिस्तान में भी बढ़िया काम किया था. काम एक्टर्स ने खूब किया. मगर स्क्रीन प्ले लिखने वालों ने नहीं. कहानी में झोल हैं. ऐसी फिल्मों की कुंजी होता है तनाव. बंदूक दिखे, न दिखे, उसकी मौजूदगी हर पल महसूस हो. खौफ हवा में घुला हो. और जब बात बचने की हो, तो डर के साथ जोखिम और रफ्तार मिल जाए. एयरलिफ्ट इन पैरामीटर्स पर कभी कभी ही लिफ्ट करती है. इस तरह की फिल्म में कई किरदार होते हैं. उनके बीच के छोटे छोटे टकरावों और जुड़ावों को उभार फिल्म को ज्यादा मानवीय, यकीनी और स्थायी बनाया जा सकता है. यहां ऐसा नहीं हुआ. हीरोइक एफर्ट दिखाने में ही खर्च हो गए. बाकी गू गोबर करने का काम गाने कर देते हैं. हर मौके के लिए हर साइज का गाना मिलता है हमारे स्टोर में. बताइए, आप क्या पसंद करेंगे. वैसे फिल्म भारत के बाहर बसे भारतीयों को याद दिलाती है. ये हर जगह डीडीएलजे नहीं चलेगा. डॉलर-वॉलर सब ठीक है. पर कभी भीर परी भारी, तो काम आएगी मुल्क की यारी. इसलिए देश को मत भूलिए. आप भी याद रखिए. अक्षय कुमार अब नए इंडियामैन हैं. पर्दे पर. मोदी जी उनका एनआरआई कैंपेन में इस्तेमाल कर सकते हैं. बाकी जहां थीम कमजोर पड़े वहां भारत माता की जय. लहराता तिरंगा और वंदे मातरम का गान. सब सध जाएगा, ऐसा मानते हैं भाई लोग.