1. नवरात्रि क्यों मनाई जाती है?

कई जगह नवरात्रि को राम-रावण युद्ध से जोड़ा गया है.
पौराणिक आख्यानों में इसको लेकर दो मत सामने आते हैं. पहला राम-रावण युद्ध से जुड़ा है. इसमें भगवान राम ने लंका पर विजय पाने के लिए दुर्गा का आह्वान किया था. ये पूजा नौ दिनों तक चली थी. पूजा के लिए राम ने 108 नीलकमल की व्यवस्था की थी, लेकिन अंतिम दिन एक नीलकमल कम हो गया. बताया जाता है कि ये नीलकमल रावण ने गायब करवाया था. इसके बाद भगवान राम फूल की जगह अपनी आंख निकालकर पूजा पूरी करने वाले थे. जैसे ही उन्होंने आंख निकालने के लिए अपना तीर निकाला, दुर्गा प्रकट हुईं और जीत का आशीर्वाद दिया. इसी के बाद से नवदुर्गा की पूजा होने लगी.

माना जाता है कि देवी ने महिषासुर का वध किया था.
दूसरी कहानी ये है कि महिषासुर नाम के राक्षस ने पूरे ब्रह्मांड में आतंक फैला रखा था. उससे लड़ने के लिए सभी देवताओं ने अपनी शक्तियां देकर दुर्गा का आह्वान किया. देवी दुर्गा और महिषासुर के बीच नौ दिनों तक युद्ध हुआ, जिसके बाद देवी ने महिषासुर का वध कर दिया. इसी के बाद से नवरात्रि मनाई जाने लगी.
2.नवरात्र में देवी प्रतिमा की पूजा की परंपरा कब शुरू हुई थी?

भक्त देवी मूर्ति की स्थापना करते हैं.
ऐसी मान्यता है कि सबसे पहले देवी प्रतिमा की पूजा पश्चिम बंगाल से शुरू हुई थी. माना जाता है कि साल 1790 में पहली बार कलकत्ता के पास हुगली के 12 ब्राह्मणों ने दुर्गा पूजा के सामूहिक अनुष्ठान की शुरुआत की थी. एक मान्यता ये भी है कि 1583 ई. में बंगाल के ताहिरपुर के महाराजा कंस नारायण ने इसकी शुरुआत की थी, जो धीरे-धीरे पूरे देश में प्रचलित हो गई. हालांकि इसका कोई लिखित इतिहास नहीं मिलता है.
3. दुर्गा का जो रूप हमें दिखाई देता है, वो सबसे पहले कब सामने आई थी?

राजा रवि वर्मा
एक व्यक्ति था, जिसका नाम था राजा रवि वर्मा. ये एक चित्रकार थे, जिनका जन्म 1848 में हुआ था. मौत 1906 में हुई. इन्होंने ही सभी देवी-देवताओं के चित्र बनाए थे. ऐसे में देवी दुर्गा की जो तस्वीर हम देखते हैं, उसे बनाने का भी श्रेय राजा रवि वर्मा को ही माना जाता है.
4. दुर्गा के कौन-कौन से रूप हैं? इनका क्या मतलब होता है?
दुर्गा के नौ रूप होते हैं.
नवरात्रि में देवी के नौ रूपों की पूजा होती है.
1. शैलपुत्री : शिव की पत्नी थीं पार्वती. वो पर्वतराज हिमालय की बेटी थीं. पहाड़ का एक और नाम शैल भी है. उनकी बेटी होने के कारण इन्हें 'शैलपुत्री' कहा जाता है. 2. ब्रह्मचारिणी : ब्रह्म को अखंड और शाश्वत माना जाता है, जो कभी खत्म न हो. पार्वती ने शिव को पाने के लिए बहुत लंबे समय तक अखंड व्रत रखा था. चारिणी का अर्थ चलने वाली से है. माना जाता है कि लंबे समय तक अखंड व्रत रखने के कारण इन्हें ब्रह्मचारिणी कहा जाता है. 3. चंद्रघंटा : चंद्र का अर्थ चंद्रमा यानी चांद और घंटा का अर्थ चमक होता है. देवी का चेहरा चांद की तरह चमकता है, इसलिए उन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है. 4. कूष्माण्डा: कुष का अर्थ होता है पैर और माण्डा का अर्थ होता है पैर. पूरी दुनिया इनके पैरों में मानी जाती है, इसलिए इन्हें कूष्माण्डा कहते हैं. 5. स्कंदमाता : भगवान कार्तिकेय शिव-पार्वती के बेटे हैं. उनका एक नाम स्कंद भी है. उनकी माता होने के कारण इन्हें ये नाम दिया गया है. 6. कात्यायनी : माना जाता है कि देवी पार्वती का जन्म कात्यायन आश्रम में हुआ था. इस वजह से देवी का एक नाम कात्यायनी है. 7. कालरात्रि : काल को मृत्यु का देवता कहा जाता है. माना जाता है कि इस रात में देवी काल का भी नाश कर सकती हैं. इसलिए इन्हें कालरात्रि कहा जाता है. 8. महागौरी : महा का मतलब होता है ज्यादा और गौरी का मतलब है सफेद या गोरा. देवी का रंग सफेद होने की वजह से इन्हें महागौरी कहा जाता है. 9. सिद्धिदात्री : सिद्धिदात्री का मतलब है ज्ञान और शक्ति देने वाली. देवी के इस रूप को ज्ञान और शक्ति देने वाला माना जाता है, इसलिए इन्हें सिद्धिदात्री कहते हैं.
5.देश में कुल कितने शक्तिपीठ माने जाते हैं?
पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक भारतीय उपमहाद्वीप में कुल 52 शक्तिपीठ हैं.6. इनकी संख्या 52 ही क्यों है?

भगवान शिव सती की मृत्यु के बाद उनके शव को लेकर घूमे थे.
मान्यताओं के मुताबिक भगवान शिव की पत्नी सती बिना शिव की अनुमति के अपने पिता दक्ष के यहां हो रहे यज्ञ में शामिल होने गई थीं. वहां दक्ष ने शिव का अपमान किया, जिसके बाद सती ने आत्मदाह कर लिया. जब शिव को इसका पता चला तो वो जलता हुआ शव लेकर पूरे ब्रह्मांड का चक्कर लगाने लगे. इसे देखकर भगवान विष्णु ने अपने चक्र से शव के टुकड़े कर दिए. ये टुकड़े 52 जगहों पर गिरे थे, जो बाद में शक्तिपीठ बने.
7.शुम्भ और निशुम्भ कौन थे?

माना जाता है कि देवी ने राक्षसों का संहार किया था.
शुम्भ और निशुम्भ दोनों भाई थे. उनके एक भाई नमुचि को इंद्र ने मार डाला था. इससे नाराज होकर शुम्भ और निशुम्भ ने इंद्र से उनका राजपाठ छीन लिया और खुद शासन करने लगे. इंद्र दुर्गा की शरण में पहुंचे. दुर्गा ने दोनों भाइयों से कहा कि जो भी उनको युद्ध में हरा देगा, वो उससे विवाह कर लेंगी. दुर्गा और दोनों भाइयों के बीच युद्ध हुआ और दोनों भाई मारे गए.
8.नवरात्रि में भैंसे की बलि क्यों दी जाती है?
ऐसी मान्यता है कि जिस महिषासुर को देवी दुर्गा ने लड़ाई में मार गिराया, वो भैंसे से दुनिया घूमता था. महिषासुर पर जीत के उपलक्ष्य में कुछ जगहों पर उसकी सवारी की बलि देने की प्रथा है.9.नवरात्रि के दौरान दुर्गा प्रतिमा के आस-पास और देवी-देवताओं की मूर्ति क्यों होती है?

कई भक्त नौ दिन का उपवास करते हैं.
दुर्गा पूजा के दौरान भगवान गणेश, कार्तिकेय और देवी सरस्वती की मूर्तियां होती हैं. गणेश और कार्तिकेय को देवी पार्वती का बेटा माना जाता है, जिन्हें दुर्गा का ही एक रूप माना जाता है. इसलिए उनके बेटे के तौर पर उनकी पूजा की जाती है. इसके अलावा देवी सरस्वती ज्ञान का प्रतीक मानी जाती हैं, इसलिए शक्ति के साथ ज्ञान की भी पूजा होती है.
10. व्रत जरूरी है क्या?
पौराणिक आख्यानों में ऐसी कई कहानियां हैं, जिनमें देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए उपवास करते हैं. ऐसे में देवी दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए भी लोग नौ दिनों तक व्रत रखते हैं. इसके अलावा कुछ लोग पहले दिन और कुछ लोग अंतिम दिन व्रत रखते हैं.11.व्रत टूटने पर प्रायश्चित कैसे करें?
ऐसा कुछ नहीं है. किसी तरह की कोई बाध्यता नहीं है. मान्यता ऐसी है कि अगर जानबूझकर व्रत तोड़ दिया जाता है, तो देवी उसकी पूजा स्वीकार नहीं करेंगी.12.औरतों-मर्दों का व्रत अलग-अलग होता है क्या?
नहीं, सभी के लिए व्रत की विधि एक सी ही है. सिर्फ पूजा विधान में इतना अंतर होता है कि देवी प्रतिमा पर पुरुष सिंदूर नहीं चढ़ा सकते हैं.13. किसी खास दिन की कोई मान्यता है क्या? देवी प्रतिमा के पट सप्तमी को ही क्यों खुलते हैं?

लोग अपने घरों में कलश की स्थापना करते है.
माना जाता है कि शुरुआत के छह दिन देवी के जो रूप हैं, वो शिव की पत्नी पार्वती के हैं. सभी रूपों का नाम उनके जन्म के आधार पर रखा गया है. वहीं सप्तमी को देवी कालरात्रि की पूजा होती है. इस दिन वो काल का भी नाश कर देने वाली शक्ति रखती हैं. इसके बाद उनकी शक्तियों के दिन शुरू हो जाते हैं. इसलिए सप्तमी के दिन से ही देवी प्रतिमा के पट खोले जाते हैं.
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