हाल ही में Farhan Akhtar की फिल्म 120 Bahadur का टीज़र रिलीज़ हुई है. ये फिल्म साल 1962 में भारत-चीन के बीच लड़े गई रेजांग ला युद्ध पर आधारित है. कैसे 124 जवानों ने 1000 से ज़्यादा चीनी सैनिकों का सामना किया और उन्हें नतमस्तक होने पर मजबूर कर दिया. रेजांग ला की रूह कंपकंपाने वाली ठंड में 13 कुमाऊं रेजिमेंट की चार्ली कंपनी जिस तरह से लड़ी, वो आज भी खून को गर्म कर के रख देती है. उस कंपनी का नेतृत्व मेजर शैतान सिंह भाटी कर रहे थे. फरहान ने फिल्म में उनका ही रोल किया है. ‘120 बहादुर’ के टीज़र की शुरुआत में कुछ फौजी ज़ख्मी हालत में लौटते हैं. वो जो वृतांत बताते हैं, उस पर किसी को यकीन नहीं होता. उन्हें कहा जाता है कि ऐसा कैसे हो सकता है. वास्तविकता में भी ऐसा ही हुआ था. रेजांग ला के युद्ध से जीवित बचकर निकले सैनिकों पर किसी को भरोसा नहीं हुआ. यहां तक ऐसा भी कहा गया कि ये अपनी जान बचाकर भाग आए हैं.
कहानी मेजर शैतान सिंह की, पेट फटा, अंतड़ियां बाहर आई, फिर भी दुश्मन से लड़ते रहे
मेजर शैतान सिंह भाटी पहले आर्मी में भर्ती नहीं होना चाहते थे. फिर अपना फैसला क्यों बदला, जानने के लिए पूरी कहानी पढ़िए.

ऐसा इसलिए क्योंकि फरवरी 1963 तक किसी को इस युद्ध का पूरा आइडिया नहीं था. फरवरी में बर्फ पिघलनी शुरू हुई. लद्दाख का एक गड़रिया इत्तेफाक से रेजांग ला पहुंचा. वहां उसने जो मंज़र देखा, खौफनाक था. 113 भारतीय जवान बर्फ में दबे हुए थे. किसी के हाथ में बन्दूक थी, किसी के हाथ में पट्टी. देखकर लगता था मानो अभी भी मोर्चे पर जुटे हुए हों. गड़रिया वापस आया. उसने अधिकारियों को जानकारी दी. हालांकि रेजांग ला से लौटे कुछ जवानों ने पहले भी कहानी सुनाई थी, कि रेजांग ला में क्या हुआ था. लेकिन तब किसी ने उनकी बात को ज्यादा महत्व नहीं दिया था. 124 सैनिकों ने चीन की 3 हजार वाली फौज को रोक दिया था. सुनने में असंभव लगता था. ये संभव कैसे हुआ, उस कहानी को जानने से पहले मेजर शैतान सिंह भाटी को जानना होगा. कैसे ये आदमी सिर्फ 18 दिन अपनी कंपनी के साथ रहा, और उतने ही दिनों में हर एक जवान उनके ऑर्डर पर जान लुटाने को आतुर था.
# वो ऑफिसर जो कभी आर्मी जॉइन नहीं करना चाहता था
मेजर शैतान सिंह के व्यक्तिव को समझने के लिए हमने जय सामोता से बात की. जय ने मेजर शैतान सिंह की बायोग्राफी ‘PVC मेजर शैतान सिंह’ भी लिखी है. जय ने हमें मेजर शैतान सिंह के शुरुआती दिनों के बारे में बताया:
मेजर शैतान सिंह के पिता हेम सिंह जोधपुर स्टेट फोर्सेज़ में एक ऑनरेरी लेफ्टिनेंट कर्नल के रूप में रिटायर हुए थे. घर में वो माहौल था. लेकिन मेजर शैतान सिंह का शुरुआत से ही पढ़ाई पर फोकस ज़्यादा था. साल 1942 में उन्होंने दसवीं पास की. उनकी फुटबॉल में भी बहुत रुचि थी. दसवीं पास करने के बाद उनके कई दोस्त स्टेट फोर्सेज़ और पुलिस फोर्सेज़ में भर्ती हो गए. उन्होंने चुना कि वो कॉलेज जाएंगे. वो कॉलेज गए. BA की डिग्री ली. वहां उन्होंने अर्थशास्त्र, इतिहास, हिंदी की पढ़ाई की. उसके बाद उन्होंने सोचा कि इस बैचलर डिग्री से कुछ नहीं होगा, अब मुझे बैरिस्टर बनना है. जोधपुर स्टेट फोर्सेज़ के एक कर्नल हुआ करते थे, कर्नल मोहन सिंह. वो उस समय मेजर थे. वो जोधपुर स्टेट फोर्सेज़ की दुर्गा हॉर्स के कमांडिंग ऑफिसर हुआ करते थे. मेजर शैतान सिंह फुटबॉल के तगड़े खिलाड़ी थे. एक बार वो खेल रहे थे और कर्नल मोहन सिंह भी वहां मौजूद थे. कर्नल ने उन्हें पहचान लिया, कहा कि तुम तो कर्नल हेम सिंह के बेटे हो. पूछा कि आगे क्या करना चाहते हो. तब मेजर शैतान सिंह ने कहा कि मैं तो बैरिस्टर बनना चाहता हूं.
कर्नल मोहन सिंह ने कहा कि तुम्हारे पिताजी तो इतने बड़े फौजी है. तुम्हें भी फौजी बनना चाहिए. अपने परिवार की लेगेसी को आगे लेकर जाओ. मेजर शैतान सिंह ने कुछ दिन सोचा. फिर वो कर्नल मोहन सिंह के पास गए. वो फोर्सेज़ जॉइन करना चाहते थे. उन्हें दुर्गा हॉर्स में बतौर स्टेट ऑफिसर कैडेट भर्ती किया गया.
# पेट फटा, अंतड़ियां निकली, फिर भी दुश्मन से लड़ता रहा
तारीख 18 नवम्बर 1962. सुबह होने को थी. बर्फीला धुंधलका पसरा था. सूरज 17,000 फीट की ऊंचाई तक अभी नहीं चढ़ सका था. लद्दाख में ठंडी और कलेजा जमा देने वाली हवाएं चल रही थीं. यहां सीमा पर भारत के पहरुए मौजूद थे. 13 कुमाऊं बटालियन की 'सी' कम्पनी चुशूल सेक्टर में तैनात थी. सुबह के धुंधलके में रेजांग ला (रेजांग पास) पर चीन की तरफ से कुछ हलचल शुरू हुई. बटालियन के जवानों ने देखा कि उनकी तरफ रोशनी के कुछ गोले चले आ रहे हैं. टिमटिमाते हुए. बटालियन के अगुआ मेजर शैतान सिंह थे. उन्होंने गोली चलाने का आदेश दे दिया. थोड़ी देर बाद उन्हें पता चला कि ये रोशनी के गोले असल में लालटेन हैं. इन्हें कई सारे यॉक के गले में लटकाकर चीन की सेना ने भारत की तरफ भेजा था. ये एक चाल थी. भारतीय फौज के पास हथियार सीमित थे. 600 राउंड गोली, 9 लाइट मशीन गन, 3 दो इंची मोर्टार और 13 इंची मोर्टार. बंदूकें भी ऐसी जो एक बार में एक फायर करती थीं. इन्हें दूसरे वर्ल्ड-वार के बाद बेकार घोषित किया गया था.
इतने हथियारों के साथ रेजांग ला को बचाना था. इसके अलावा इन सैनिकों को इतनी हाइट कर लड़ने का अनुभव भी नहीं था. 13 कुमाऊं की बटालियन को सीधे कश्मीर से चुशूल भेजा गया था. ताकि वहां मौजूद एक मात्र हवाई पट्टी को बचाया जा सके. इतनी ऊंचाई तक आने के लिए कोई रोड नहीं थी. रसद पहुंचाने का एकमात्र तरीका हवाई जहाज थे. 18 हजार की ऊंचाई पर पड़ने वाली ठंड से बचने के लिए सैनिक पूरी तरह तैयार भी नहीं थे. अधिकतर जवान हरियाणा से थे, जिन्होंने अपनी जिंदगी में बर्फ भी पहले कभी नहीं देखी थी. न ढंग के कपड़े थे न ही बर्फ के जूते. कुछ रिक्रूट्स तो रानी खेत में ट्रेनिंग कर रहे थे. 18 -19 साल के इन लड़कों को सीधे चुशूल भेज दिया गया था. बहुत कुछ था जो नहीं था, लेकिन एक चीज की कोई कमी नहीं थी, जोश. जो उन्हें अपने लीडर मेजर शैतान सिंह से भरपूर मिल रहा था.
18 नवम्बर को जब लड़ाई शुरू हुई, मेजर शैतान सिंह ने अपने जवानों को पहाड़ी के सामने की ढलान पर तैनात कर दिया था. उनकी पोजीशन बेहतर थी. क्योंकि चीन का हमला नीचे से ऊपर की ओर होना था. हालांकि चीनी सेना पूरी तैयारी से आई थी. उन्हें ठंड में लड़ने की आदत थी और उनके पास पर्याप्त हथियार भी थे. हमले के पहले दौर में भारतीय फौज ने चीनियों को पीछे खदेड़ दिया. लेकिन शैतान सिंह जानते थे, चीनी फौज उनका गोला बारूद ख़त्म होने का इंतज़ार कर रही है. उन्होंने वायरलेस पर सीनियर अधिकारियों से बात की. मदद मांगी. सीनियर अफसरों ने कहा कि अभी मदद नहीं पहुंच सकती. आप चौकी छोड़कर पीछे हट जाएं. अपने साथियों की जान बचाएं. मेजर इसके लिए तैयार नहीं हुए. चौकी छोड़ने का मतलब था हार मानना. उन्होंने अपनी टुकड़ी के साथ एक छोटी सी मीटिंग की. सिचुएशन की ब्रीफिंग दी. कहा कि अगर कोई पीछे हटना चाहता हो तो हट सकता है लेकिन हम लड़ेंगे. गोलियां कम थीं. ठंड की वजह से उनके शरीर जवाब दे रहे थे. चीन से लड़ पाना नामुमकिन था. लेकिन बटालियन ने अपने मेजर के फैसले पर भरोसा दिखाया.
चीन की तरफ से लगातार हमलों के बीच मेजर शैतान सिंह और उनके जवान मोर्चे पर जुटे रहे. चीन की तरफ से लगातार हमला हो रहा था. वो मोर्टार और MMG से हमला कर रहे थे. एक लम्बे वक्त तक मेजर शैतान सिंह और उनके साथियों ने चीन की फौज को रोके रखा. लेकिन संख्या में वो ज्यादा थे. इस हमले में भारत के ज्यादातर जवान शहीद हो गए और बहुत से जवान बुरी तरह घायल हो गए. मेजर शैतान सिंह खुद भी खून से सने हुए थे. दो सैनिक घायल मेजर शैतान सिंह को एक बड़ी बर्फीली चट्टान के पीछे ले गए. मेडिकल हेल्प वहां मौजूद नहीं थी. इसके लिए बर्फीली पहाड़ियों से नीचे उतरना पड़ता था. मेजर से सैनिकों ने मेडिकल हेल्प लेने की बात की लेकिन उन्होंने मना कर दिया. उन्होंने सैनिकों को आदेश दिया कि एक मशीन गन लेकर आओ. मशीन गन आ गई. उन्होंने कहा कि गन के ट्रिगर को रस्सी से मेरे एक पैर से बांध दो. उनके दोनों हाथ लथपथ थे. उन्होंने रस्सी की मदद से अपने एक पैर से फायरिंग करनी शुरू कर दी. इसके बाद उन्होंने दोनों जवानों से कहा, जाओ उन्हें बताना कि 13 कुमाऊं ने कैसे जंग लड़ी थी.
मेजर शैतान सिंह और उनके साथी वहीं बर्फ में दफ़्न हो गए. 5 लोगों को चीन ने युद्धबंदी बना लिया था. इनमें से दो भागकर आए. उन्होंने अपनी कहानी बताई लेकिन किसी ने विश्वास नहीं किया. बाद में जब रेजांग ला में 114 जवानों के शव मिले। तब जाकर रेजांग ला की लड़ाई की कहानी दुनिया के सामने आई. भारतीय आंकड़ों के अनुसार मेजर शैतान सिंह और उनके साथियों ने रेजांग ला में चीन के 1300 सैनिकों को मार गिराया था. आम तौर पर अपनी किसी भी हार से इंकार करने वाले चीन ने भी बाद में माना कि सेना का सबसे ज्यादा नुकसान रेजांग ला पर ही हुआ था. उनके अपने आंकड़ें के अनुसार चीन के 500 सैनिक मारे गए थे. रेजांग ला की लड़ाई में वीरगति को प्राप्त हुए मेजर शैतान सिंह को परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया.
जय सामोता बताते हैं कि मेजर शैतान सिंह के हाथ में गोली लगी. उसके बावजूद भी वो लड़ते रहे. उसके बाद उनके पेट में गोली लगी. बस्ट लगा. उन्होंने कोट पार्का पहना हुआ था. इसलिए पहले तो उन्हें ये नज़र नहीं आया. ऊपर से खून गर्म था तो उन्हें चोट महसूस नहीं हुई. बाद में जवानों ने देखा कि मेजर शैतान सिंह के पेट का बड़ा हिस्सा बाहर आ गया था. पेट फट चुका था. उनकी अंतड़ियां बाहर थी. क्योंकि उनका शव तुरंत नहीं मिला, इसलिए लोगों को विश्वास ही नहीं हुआ कि ऐसा कुछ भी हुआ था.
जय ने आगे बताया कि लंबे समय तक लोगों को यकीन नहीं हुआ कि इतना वीभत्स कुछ हुआ था. बाद में उस जगह की फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी भी हुई. प्रेस इंफॉर्मेशन ब्यूरो वहां पर फिल्म और सिने कैमरा लेकर गया और रिकॉर्ड किया. तब माना गया कि ये लड़ाई वास्तविकता में इतनी बुरी तरह हुई थी. अब इसी युद्ध की कहानी को फरहान अख्तर की फिल्म में दर्शाया जाएगा. इसे रजनीश ‘रेज़ी’ घई ने डायरेक्ट किया है. ‘120 बहादुर’ 21 नवंबर 2025 के दिन सिनेमाघरों में रिलीज़ होगी.
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