The Lallantop

इन 10 बातों से तय कीजिए कि 'डियर जिंदगी' देखनी है या नहीं

ये बातें आपको किसी और फिल्म में नहीं, सिर्फ 'डियर जिंदगी' में ही मिलेंगी.

Advertisement
post-main-image
फोटो - thelallantop

हमारी फिल्मों का बर्ताव अक्सर ज़िंदगी जैसा होता है. वो किसी एक जगह से शुरुआत करती हैं और बहुत दूर किसी एक मुकाम पर जाकर खत्म हो जाती हैं. हमारी फिल्मों को तालीम ही सब कुछ एक साथ कहने की दी गई है. वो क्लियर भले न हों, लेकिन उनमें सब कुछ हो. लेकिन जिंदगी तो ढेर सारे पड़ावों का एक कंपाइलेशन है और ये नजरिया हमारी फिल्मों से गायब रहता है. 'डियर जिंदगी' ऐसे ही एक पड़ाव की फिल्म है.

Advertisement

ये फिल्म आपको शुरू से आखिर तक नहीं ले जाती. खूबसूरत से एक सफर में रखती है. जहां आप कुछ देख सकें, महसूस कर सकें, बेहतर बन सकें. तो आइए, आपको फिल्म के कुछ ऐसे पलों से मिलवाते हैं, जो वाकई आपके अंदर कुछ बदलते हैं, कुछ जोड़ते हैं.

1. प्रेमी की गुजारिश मानने वाली लड़की की निगाहें किसी और पर

फिल्म की शुरुआत इसी सीन से होती है. सिनेमेटोग्राफर कायरा एक शॉट शूट करती है, जिसमें एक लड़का अपनी नाराज प्रेमिका को मनाता है. मुश्किल से मानने के बाद वो लड़की जब लड़के को गले लगाती है, तभी बगल से एक लड़का गुजरता है और लड़की की निगाहें दूर तक उसका पीछा करती हैं. वो अपने बॉयफ्रेंड की जिस बात से नाखुश थी, अब वो खुद वही कर रही थी. ये दिखाता है कि इंसान वही करता है, जो उसे सही लगता है. जरूरी नहीं कि वो बाकी सबको सही लगे. सबके पैमाने अलग होते हैं और हर कोई इसके लिए आजाद है.

Advertisement

2. किसी के साथ रिलेशनशिप, किसी के साथ सोना

alia-bhatt

फिल्म के एक सीन में कायरा अपने बॉयफ्रेंड से कन्फेस करती है कि वर्क टूर के दौरान वो किसी और के साथ सोई थी. ये बताने के बाद कायरा उसे सॉरी कहती है. लेकिन, ये सॉरी अपराधबोध वाला नहीं था. ये सॉरी था किसी की फीलिंग्स हर्ट करने के लिए. कायरा के अंदर किसी तरह का गिल्ट नहीं था, क्योंकि उसने गिल्ट होने जैसा कुछ किया ही नहीं था. उसने सॉरी बोला, क्योंकि उसके लिए बॉयफ्रेंड की फीलिंग्स महत्वपूर्ण थीं. जरूरी नहीं कि जिस चीज से आप सहमत हैं, आपका पार्टनर भी उससे सहमत हो. कायरा का कन्फेशन उसकी ईमानदारी दिखाता है, लेकिन साथ में ये भी दिखाता है कि अपने फैसले लेने का अधिकार सिर्फ उसका है.

3. प्रेग्नेंसी पर खुश हों या नहीं

एक मौके पर कायरा की दोस्त उसे बताती है कि वो प्रेग्नेंट है. सुनते ही कायरा खुशी से उछल पड़ती है, लेकिन अगल ही पल पूछती है कि उसे खुश होना चाहिए या नहीं. सवाल सीधा सा था. क्या उसकी दोस्त इस बच्चे से खुश है या नहीं. कितनी साफगोई है इन नए लोगों में. कोई प्रेग्नेंट है, तो जरूरी तो नहीं कि सब उसकी मर्जी से हुआ हो या वो इससे खुश हो. ये 'एक्सीडेंट' या 'दबाव का नतीजा' भी हो सकता है. लेकिन इतना समझने के लिए मैच्योरिटी चाहिए. जो सोसायटी शादी के बाद 'वंश बढ़ाने' की जिद करने लगती है, वहां ऐसी चीजें देखना सुखद है.

4. सिंगल होने की वजह से किराए के घर से निकाला जाना

alia-bhatt1

फिल्म में एक सीन है, जब कायरा का मकान-मालिक उसे फोन करके बताता है कि उसकी सोसायटी में अब सिंगल लोगों का रहना अलाऊड नहीं है, इसलिए अब उसे घर छोड़ना पड़ेगा. क्यों भाई? किसी के सिंगल रहने में दूसरों को क्यों परेशानी होती है. खासकर तब, जब उस एक शख्स की वजह से आपको किसी तरह की कोई परेशानी नहीं हो रही है. आखिर आपको किस बात की इनसिक्योरिटी है कि अकेले रहने वाला एक शख्स आपको विचलित कर देता है. सिंगल्स के लिए स्पेस क्यों नहीं है.

Advertisement

हर शादीशुदा और परिवार वाला इंसान भी कभी न कभी सिंगल होता है. अकेले रहना पसंद करने वालों से उनका हक क्यों छीना जाए? और ये सिर्फ मुंबई की समस्या नहीं है. दिल्ली-बेंगलुरु जैसे शहरों से लेकर भारत के हर कस्बाई इलाके का यही हाल है. इस पर बात हो रही है, ये अच्छा है.

5. मुश्किल रास्ता चुनना जरूरी नहीं है

कायरा के साथ सेशंस के दौरान जहांगीर एक बात कहता है, 'हम हर बार मुश्किल रास्ता चुनते हैं, क्योंकि हमें लगता है कि मंजिल पाने के लिए हमें तकलीफों से गुजरना ही पड़ेगा. जबकि हम आसान रास्ता भी चुन सकते हैं.' कितनी आसान हो जाएगी न जिंदगी, अगर हम इतना सा सीख लें. जरूरी तो नहीं कि हम खुद को तकलीफ दें. इंसान हैं. दिमाग मिला है हमें. हमारा आखिरी मकसद खुश रहना होता है, तो वहां तक पहुंचने के लिए क्यों परेशान रहें.

6. दूसरों की सोच का हम पर फर्क क्यों पड़ता है

कायरा अक्सर अपने घरवालों पर बरस जाती है. उसके बचपन की कड़वी यादें उसे फैमिली से जुड़ने ही नहीं देतीं. कहीं का गुस्सा कहीं और उतर जाता है. एक मौके पर कायरा मम्मी-पाप से कहती है, 'आप लोगों की सोच ही ऐसी है'. फिल्म में एक मेसेज ये भी है कि दूसरों की सोच का फर्क हम खुद पर क्यों पड़ने देते हैं. हम सब कुछ अपनी मर्जी से करना चाहते हैं और करते भी हैं. तो रिजल्ट के बाद क्यों दूसरों को खुद पर हावी होने देते हैं.

7. अलग-अलग रिश्तों की उम्मीदों का बोझ एक ही रिश्ते पर क्यों

shahrukh-khan

कायरा प्यार के रिश्ते में बड़ी डरी-डरी सी रहती है. एक लड़के में उसे कुछ चीजें पसंद आती हैं, तो कुछ नहीं भी, पर वो कुछ कह नहीं पाती. डरती है कि कहीं वो छोड़कर न चला जाए. इसी डर में लड़के के जाने से पहले वो खुद ही उसे छोड़ जाती है. फिर कोई और लड़का... फिर कोई और डर... फिर कुछ और आंसू. जहांगीर उसे बताता है कि हर रिश्ते और हर उम्मीद का बोझ उस एक रिश्ते पर क्यों डालना. अपने पार्टनर से सब कुछ समझने की उम्मीद क्यों करना.

जहांगीर कहता है कि कॉफी वाले दोस्तों के साथ आपकी हल्की-फुल्की बातें हो सकती हैं. गॉसिप वाले दोस्तों के साथ फुस-फुस हो सकती है. इंटेक्चुअल दोस्तों के साथ किताबी बातें हो सकती हैं. लेकिन ये सारी बातें किसी एक साथ तो नहीं हो सकती न. तो उस पर क्यों इतना बोझ डालना कि आपको ही परेशानी होने लगे.

8. कुर्सी वाली कहानी

रिलेशनशिप को लेकर कायरा के मन में चल रहे द्वंद पर जहांगीर एक कहानी सुनाता है. वो बताता है कि जब लोग कुर्सी खरीदने जाते हैं, तो ढेर सारी कुर्सियों पर बार-बार बैठकर देखते हैं. कुछ कुर्सियां देखने में खूबसूरत होती हैं, लेकिन बैठने पर कंफर्टबल नहीं होतीं. कुछ कुर्सियां दिखती अच्छी नहीं हैं, लेकिन कंफर्टबल होती हैं. ढेर सारी कुर्सियां ट्राई करने के बाद आपको आखिर में एक कुर्सी पसंद आती है. लेकिन, इसका ये मतलब तो नहीं कि बाकी सारी कुर्सियां ट्राई करना गलत है.

इसी तरह बार-बार प्यार करना भी गलत नहीं है. जरूरी नहीं जिस शख्स के साथ आप प्यार में हो, वो आपके लिए परफेक्ट हो. हो सकता है आपके कई पार्टनर आपके लिए परफेक्ट न हों. ऐसे में आंसू बहाते हुए तो नहीं बैठ सकते. न थम सकते हैं. तो क्यों लोड लेना.

9. चुपचाप अकेले दर्द सहकर क्या होगा

shahrukh-khan1

फीलिंग्स एक्सप्रेस करने का महत्व बताने वाली ये फिल्म आपके ज़हन में सवाल छोड़ती है कि चुपचाप अकेले दर्द सहकर क्या होगा. आप ढेर सारी चीजों का ढेर बनाते जाते हैं अपने अंदर. खुद में ही दबाए रहते हैं उन्हें. घरवालों से लेकर दोस्तों तक, किसी को नहीं बताते. खुद भी उनके बारे में नहीं सोचते. पर इससे वो दर्द, वो वजहें खत्म तो नहीं होंगी. तो अकेले सफर क्यों करना. एक्सप्रेस कीजिए. सब कुछ. हंसी, गुस्सा, नाराजगी, प्यार... सब कुछ. अच्छा लगेगा.

10. डॉना मारिया

फिल्म के आखिर में कायरा की बनाई हुई शॉर्ट फिल्म दिखाई जाती है, जिसका मुख्य किरदार डॉना मारिया नाम की एक लड़की है. पुर्तगाली आर्मी के सैनिकों के बीच खुद को बचाने के लिए वो मर्द के भेष में लड़ती है. एक दिन मैदान में वो घायल हो जाती है और उसका भेद खुल जाता है. किस्मत से वहां उसे अच्छे दिल का एक सैनिक मिलता है, जो उसे बचाता है. बाद में डॉना लड़की बनकर ही सामने आती है और अपने दम पर कमांडर की पोस्ट तक पहुंचती है.

ये छोटी सी कहानी बहुत कुछ कह जाती है. जब तक आप किसी और पहचान के साथ लड़ते रहेंगे, तब तक आप सिर्फ सरवाइव कर पाएंगे. इससे ज्यादा कुछ नहीं. अगर आपको जीतना है, बेहतर होना है, खुश रहना है, तो आपको अपनी पहचान के साथ ही जीना होगा. लड़की हो या लड़का, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. पर आपको खुद को पहचानना होगा. ये संदेश उन सब लोगों के लिए भी है, जो औरतों से कहते हैं 'प्ले लाइक अ मैन'. या फर 'खूब लड़ी मर्दानी'.

एक औरत को मजबूत होने के लिए पुरुष जैसा होने की जरूरत नहीं है.

https://www.youtube.com/watch?v=mKyTEJKF_SA  
ये भी पढ़ें:

रिव्यू: अपने वक्त से बहुत आगे की फिल्म है 'डियर जिंदगी'

फिल्म रिव्यू: डिअर जिंदगी

इस पोस्ट से जुड़े हुए हैशटैग्स
Advertisement