'परिवर्तन जीवन का नियम है.'
ये नेता जनरल का टिकट लेकर चढ़े थे और अब एसी का सफर करेंगे
इन नेताओं की किस्मत की दाद देनी चाहिए.

बाएं से दाएंः स्वामी प्रसाद मौर्य, रीता बहुगुणा जोशी, एस पी बघेल.
'ठहरा हुआ पानी सड़ जाता है, बहता हुआ पानी निर्मल रहता है.'
ऐसी सत्रह सौ सूक्तियां हैं जो पीढ़ी दर पीढ़ी बड़े-बुज़ुर्गों से होते हुए हम तक आई हैं. इनका मकसद इंसान को ये याद दिलाना है कि एक ही जगह रुके रहने से उसका विकास अवरुद्ध हो जाता है. इसलिए उसे चलते रहना चाहिए. चलते-चलते पार्टी भी बदल जाए तो कोई बात नहीं. बड़े-बुज़ुर्गों की सीख है, फलती ज़रूर है. यहां बेकार में थ्योरी वाला ज्ञान नहीं दिया जा रहा. उत्तर प्रदेश का नया नवेला कैबिनेट ताज़ी-ताज़ी मिसाल है.कल योगी आदित्यनाथ ने यूपी के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. साथ में 46 और विधायकों ने मंत्री पद की शपथ ली. किस चीज़ के मंत्री, फिलहाल नहीं पता. लेकिन भई मंत्री तो मंत्री होता है. और इन 46 में कई ऐसे थे जिनकी इस चुनाव में डबल लॉटरी लगी थी. एक तो ये कि ये किसी दूसरी पार्टी से भाजपा में आए और टिकट पाकर जीत भी गए. और दूसरी ये कि विधायकी के साथ बोनस में मंत्री पद बोनस में मिला. माने इनके पास टिकट जनरल का बस था लेकिन ये अब सफर पांच साल तक एसी में करेंगे.
जानिए योगी कैबिनेट के उन चेहरों के बारे में जो (पार्टी) परिवर्तन के नियम के तहत भाजपा में शामिल हुए थे:
रीता बहुगुणा जोशी

रीता बहुगुणा जोशी शपथ लेते हुए (फोटोःएएनआई)
रीता कांग्रेस की दिग्गज नेता रही हैं. पिछले साल भाजपा में शामिल हुईं. इस बार जिस लखनऊ कैंट सीट से भाजपा टिकट पर चुनाव जीतीं, वहीं से कांग्रेस में रहते हुए भी विधायक रह चुकी हैं. कांग्रेस से रीता का लंबा नाता रहा है. इनके पिता हेमवति नंदन बहुगुणा भी कांग्रेस में थे. वे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे थे. इनकी मां भी सांसद रही थीं. रीता के भाई विजय बहुगुणा उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे हैं. 2016 में जब वे भाजपा में शामिल हुईं, तो उन्हें कांग्रेस में 26 साल हो गए थे. सुनी-सुनाई है कि रीता इस बात से नाराज थीं कि कांग्रेस ने यूपी में शीला दीक्षित को सीएम कैंडिडेट बना दिया. रीता इलाहाबाद यूनीवर्सिटी से इतिहास पढ़ी हैं, और राजनीति में आने से पहले इतिहास पर किताबें लिख चुकी हैं. रीता ने इन चुनावों में मुलायम सिंह की छोटी बहू अपर्णा यादव को लगभग 38000 वोटों की लीड से हराया.
स्वामी प्रसाद मौर्य

स्वामी प्रसाद मौर्य शपथ लेते हुए (फोटोःएएनआई)
स्वामी प्रसाद मौर्य का भाजपा में जाना मायावती के लिए बड़ा झटका था. तिस पर वे अपने कई करीबियों को भी ले गए. भाजपा में आने पर लंबे समय तक रूठने-मनाने का दौर चला. टिकटों को लेकर खींचातानी भी हुई, लेकिन किसी तरह वह अपने साथ-साथ अपने बेटे को टिकट दिलाने में कामयाब हो गए. बेटा उत्कृष्ट उंचाहार से चुनाव हार गया, लेकिन खुद पडरौना से चुनाव जीत गए. लेकिन अंत भला तो सब भला. मौर्य के दांव ने आखिर काम किया और कैबिनेट में जगह भी मिली.
दारा सिंह चौहान

दारा सिंह चौहान (फोटोःएएनआई)
मौर्य की तरह ही दारा सिंह भी बसपा से ही भाजपा में आए हैं. लेकिन फर्क इतना रहा कि इन्हें पार्टी छोड़कर आने का सुख नहीं मिला. इन्हें पिछले साल बसपा से निकाल दिया गया था. दारा सिंह ने करियर बसपा से शुरू किया था. उसके बाद कुछ समय सपा में रहे. फिर बसपा में वापस आ गए. इन्होंने घोसी से 2014 का आम चुनाव भाजपा कैंडिडेट के खिलाफ ही लड़ा था, लेकिन हार गए थे. भाजपा में आए तो ओबीसी मोर्चा के अध्यक्ष बनाए गए. मऊ की मधुबन सीट से जीते हैं.
ब्रजेश पाठक

ब्रजेश पाठक (दाएं)
ब्रजेश जब बसपा में थे तो पार्टी के ब्राह्मण चेहरों में से खास थे. इन्होंने अपना करियर लखनऊ यूनिवर्सिटी में छात्र राजनीति से शुरु किया. 2004 में उन्नाव से बसपा के टिकट पर सांसद बने थे. 2009 में राज्य सभा सदस्य बने. पिछले साल अगस्त में मायावती की आगरा में हुई माहारैली में दिखे और फिर चौबीस घंटे बाद दिल्ली में भाजपा के दफ्तर में दिखे जहां उन्हें अमित शाह ने पार्टी में शामिल किया.
एस पी बघेल

एस पी बघेल शपथ लेते हुए (फोटोःएएनआई)
बघेल बसपा से आए हैं. इन्हें फिरोजाबाद की टुंडला विधानसभा सीट से उतारा गया था, जहां इन्होंने 1,18584 वोट हासिल किए और बीएसपी के राकेश बाबू को 55 हजार से ज्यादा वोटों से हराया. बघेल जलेसर लोकसभा सीट से तीन बार सांसद रह चुके हैं, लेकिन फिरोजाबाद सीट से तीन बार चुनाव हार भी चुके हैं. हालांकि, टुंडला से वो हमेशा जीते हैं, जहां वो डिंपल यादव, अक्षय यादव, ओमपाल सिंह निडर, रामवीर उपाध्याय और उपदेश सिंह खलीफा जैसे अलग-अलग पार्टियों के कई बड़े नेताओं को हरा चुके हैं. 2015 में बघेल को बीजेपी ओबीसी मोर्चा का अध्यक्ष बनाया गया था.
नंद गोपाल गुप्ता 'नन्दी'

नंद गोपाल गुप्ता शपथ लेते हुए (फोटोःएएनआई)
नंद गोपाल गुप्ता 'नन्दी' इलाहाबाद दक्षिण से चुनाव जीतकर आए हैं. ताज़ा-ताज़ा जनवरी में भाजपा में आए हैं. इस पहले ये बसपा और कांग्रेस के साथ रहे चुके हैं. इनकी पत्नी मेयर अभिलाषा गुप्ता के भी इनके साथ बीजेपी में आई हैं. जब नन्दी ने कांग्रेस छोड़कर बीजेपी का दामन थामा था तो बीजेपी कार्यकर्ताओं ने खूब विरोध किया था. गली-गली में शोर है, नंद गोपाल गुप्ता चोर हैं के नारे भी लगे थे. इन पर 23 मुकदमें चल रहे हैं. 2007 में बसपा के टिकट पर इन्होंने विधानसभा अध्यक्ष और भाजपा प्रत्याशी केसरी नाथ त्रिपाठी को हराया था. जिसकी वजह से पार्टी ने इन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया था. 2014 में कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा का चुनाव भी लड़ चुके हैं लेकिन मोदी लहर के सामने टिक नहीं पाए थे.
अनिल राजभर

अनिल राजभर शपथ लेते हुए (फोटोःएएनआई)
वाराणसी के शिवपुर विधानसभा क्षेत्र से अनिल राजभर जीते हैं. इसके पहले ये समाजवादी पार्टी के साथ थे. इन्होंने सपा प्रत्याशी आनंद मोहन गुड्डू को 60 हजार मतों से हराया है. इनके पिता रामजीत राजभर चिरईगांव विधानसभा सीट से सपा के विधायक थे. उनके मौक के बाद सपा ने अनिल राजभर को अपना प्रत्याशी बनाया था लेकिन वो चुनाव हार गए थे.
लक्ष्मी नारायण चौधरी

लक्ष्मीनारायण चौधरी शपथ लेते हुए. (फोटोःएएनआई)
लक्ष्मी नारायण चौधरी बसपा से भाजपा में आए हैं. मथुरा की छाता सीट से चुनाव जीते हैं. लंबे समय से राजनीति में हैं. पहली बार विधायक 1985 में बने. कल्याण सिंह, राजनाथ सिंह और मायावती की सरकारों में मंत्री रह चुके हैं. इनका नाम ढेंचा बीच घोटाले में आया था. मथुरा के आसपास के इलाके में काफी संख्या में जाट हैं और चौधरी इस बिरादरी के कद्दावर नेता माने जाते हैं.
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