सूरजभान सिंह ने राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (RLJP) के सभी पदों और प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया (Surajbhan Singh resigns from RLJP). RLJP पूर्व केंद्रीय मंत्री और चिराग पासवान के चाचा पशुपति पारस की पार्टी है. सूरजभान ने कहा कि पार्टी में अब अंदरूनी लोकतंत्र नाममात्र का रह गया है.
सूरजभान का पशुपति पारस की पार्टी से इस्तीफा, कहीं पत्नी के टिकट का कनेक्शन तो नहीं?
सूरजभान की पत्नी वीणा देवी मोकामा विधानसभा सीट से RJD की उम्मीदवार हैं. उनका मुकाबला JDU के दबंग नेता अनंत सिंह से होगा.


सूरजभान सिंह ने अपने इस्तीफे में कहा कि राष्ट्रीय नेतृत्व कोई फैसला सबकी सहमति से नहीं लेता. उन्होंने बताया,
“मैंने दिवंगत नेता रामविलास पासवान जी के साथ 20 साल से ज्यादा समय तक पार्टी को खड़ा करने का काम किया. राजनीतिक जीवन की शुरुआत से ही मैं पासवान जी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चला. मेरे विरोध के बाद भी पार्टी को तोड़ा गया, फिर भी ईमानदारी से बना रहा. लेकिन अब पार्टी पासवान जी के सिद्धांतों, विचारधारा और मूल्यों से पूरी तरह भटक गई है.”
सूरजभान ने आगे कहा,
"पासवान जी के लाखों कार्यकर्ताओं का सम्मान बचाने के लिए मैं कोई भी कुर्बानी दे सकता हूं. पदों की परवाह नहीं. दुखी और व्यथित होकर इस पार्टी को अलविदा कह रहा हूं. कार्यकर्ताओं के मान सम्मान एवं स्वाभिमान को बचाने हेतु पार्टी से इस्तीफा दे रहा हूं.”
इस्तीफे की खबर के बीच गौर करने वाली बात ये है कि सूरजभान की पत्नी वीणा देवी मोकामा विधानसभा सीट से RJD की उम्मीदवार हैं. यहां उनका मुकाबला JDU के दबंग नेता अनंत सिंह से होगा. साल 2000 में सूरजभान ने जेल से ही अनंत के भाई दिलीप सिंह को हराया था. 25 साल बाद ये महा-मुकाबला फिर से शुरू हो सकता है. सूरजभान का भाई चंदन सिंह लखीसराय से RJD टिकट की दौड़ में हैं.
सूरजभान के राजनीतिक सफर में मोकामा की अहमियत समझने के लिए हमें थोड़ा इतिहास पर नज़र डालनी पड़ेगी. साल 1985. मोकामा से श्यामसुंदर सिंह धीरज विधायक बने. मोकामा के ही दिलीप सिंह उनके लिए बूथ कब्जा किया करते थे. एक दिन दिलीप सिंह दिन में धीरज के पटना आवास पर मिलने पहुंच गए. धीरज इस बात पर बिफर गए. उन्होंने दिलीप सिंह को डांटते हुए कहा,
"तुम कोई अच्छे आदमी तो हो नहीं, रात के अंधेरे में आया करो. आइंदा दिनदहाड़े मत आना."
ये बात दिलीप सिंह को तीर कर गई. 1985 में वो धीरज के खिलाफ चुनाव लड़ गए. लेकिन नतीजा फेवर में नहीं रहा. वो करीबी मुकाबले में हार गए. फिर साल आया 1990 का. लालू यादव की मदद से उन्होंने धीरज को हरा दिया. लेकिन लालू यादव ने उन्हें मंत्री नहीं बनाया. साल 1995 में वो फिर जीते. इस बार मंत्री बने.

1990 के आसपास दिलीप के खेमे में मोकामा का एक उभरता हुआ बाहुबली शामिल हो चुका था. नाम था सूरजभान सिंह. वो उनके छोटे भाई अनंत सिंह के साथ मिलकर दिलीप के लिए रंगदारी और वसूली का काम कर रहा था. साल 1997. बाढ़ के एसपी रहे अमिताभ दास के मुताबिक, दिलीप सिंह के ऊपर कोई जघन्य अपराध का मामला नहीं था. लेकिन अनंत सिंह और सूरजभान के दम पर इलाके में उनकी धाक जमी थी.
सूरजभान की जिम्मेदारी दिलीप सिंह के लिए वसूली करना, बूथ लूटना और जरूरत पड़ने पर मर्डर करना भी था. अब दिलीप सिंह भी जुर्म की दुनिया से होते हुए ही सफेदपोश हुए थे. इसीलिए सूरजभान ने भी वही ख्वाब पाल लिए. इधर दिलीप सिंह से लगातार दो बार मात खाए श्याम सुंदर सिंह धीरज को एक ऐसे व्यक्ति की तलाश थी, जो दिलीप सिंह के साम्राज्य को चुनौती दे सके. और फिर से उनके लिए रास्ता बना सके. उनकी नजर टिकी सूरजभान सिंह पर.
साल 1995. विधानसभा चुनाव के बाद उन्होंने सूरजभान सिंह को अपने खेमे में शामिल कर लिया. सिर से दिलीप सिंह का हाथ उठते ही सूरजभान को किसी मामले में जेल भेज दिया गया. लेकिन अंदर से वो अपनी बिसात बिछाते रहे. इधर, श्यामसुंदर सिंह धीरज को उम्मीद थी कि सूरजभान की मदद से वो इस बार चुनाव निकाल लेंगे. लेकिन सूरजभान के दिमाग में कुछ और चल रहा था.
समय बदल गया था. बिहार की राजनीति ने अलग करवट ले ली थी. लालू यादव के पुराने साथी नीतीश कुमार उनके खिलाफ ताल ठोक रहे थे. उनको भी मोकामा सीट से एक मजबूत प्रत्याशी की जरूरत थी.
इस वक्त तक भूमिहारों का एक बड़ा हिस्सा लालू यादव के खिलाफ हो चुका था. ऐसे में नीतीश कुमार के दोस्त राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने सूरजभान को अपने पाले में किया. हालांकि, सूरजभान को समता पार्टी का सिंबल नहीं मिला. लेकिन नीतीश कुमार का समर्थन उनके साथ था. साल 2000 के विधानसभा चुनाव में वो निर्दलीय ही चुनावी मैदान में उतरे. और दिलीप सिंह को लगभग 70 हजार वोटों से हरा दिया. इस तरह से सूरजभान भी बाहुबली से माननीय हो गए.
LJP में शामिल हुए
साल 2004 में सूरजभान सिंह रामविलास पासवान की LJP में शामिल हुए. बलिया लोकसभा सीट से सांसद बने. 2004 से 2009 तक सांसद रहे. रामविलास पासवान के करीबी रहे और पार्टी को मजबूत करने में योगदान दिया. LJP के विभाजन के बाद वो पशुपति कुमार पारस के गुट RLJP में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और केंद्रीय संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष बने.
सूरजभान ने नीतीश कुमार सरकार में संकटमोचक की भूमिका भी निभाई. साल 2014 में पत्नी वीणा देवी को मुंगेर से सांसद बनवाया. 2019 में भाई चंदन सिंह को नवादा से सांसद बनवाया.
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