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ऐक्सीडेंट के बाद ट्रॉमा सेंटर में डॉक्टर सबसे पहले क्या करते हैं, AIIMS के सर्जन ने बताया

डॉ. अमित गुप्ता ने बताया ट्रॉमा सर्जन और सर्जन के बीच बुनियादी फर्क.

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सांकेतिक तस्वीर

आप बीमार होते हैं तो अस्पताल जाते हैं. बीमारी से संबंधित डॉक्टर से अपना इलाज कराते हैं. अगर किसी को गंभीर बीमारी होती है और जरूरत पड़ती है तो ऑपरेशन भी किया जाता है. ऑपरेशन सर्जन करते हैं. यानी आमतौर पर हम लोग बीमार होने पर दो तरह के डॉक्टरों से इलाज कराते हैं. पहले सामान्य चिकित्सक और दूसरे सर्जन. लेकिन एक और तरह के डॉक्टर होते हैं जिन्हें ट्रॉमा सर्जन कहा जाता है. अब सवाल ये है कि ट्रॉमा सर्जन होते कौन हैं और सर्जन और ट्रॉमा सर्जन में क्या अंतर होता है?

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इस सवाल का जवाब हमें मिला आपके पसंदीदा शॉ गेस्ट इन द न्यूज़ रूम में. जहां इस हफ्ते के महमान थे AIIMS के ट्रॉमा सर्जन अमित गुप्ता. 

ट्रॉमा सर्जन और सर्जन के बीच फर्क

ट्रॉमा सर्जन भी एक तरह के सर्जन होते हैं. जब एक डॉक्टर सर्जन बनता है तो उसे खास तरह की ट्रेनिंग दी जाती है. इस ट्रेनिंग में घायलों, एक्सीडेंट वाले मरीजों का इलाज करना सिखाया जाता है. इस बात को उदाहरण के साथ समझाते हुए डॉ. अमित गुप्ता ने कहा कि, 

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मान लीजिए अगर किसी व्यक्ति का एक्सीडेंट हो जाता है और वो घायल हो जाता है. ऐसे में उस व्यक्ति का इलाज नॉर्मल सर्जन नहीं करेंगे. उस मरीज को डायरेक्ट ट्रॉमा सेंटर में भर्ती कराया जाएगा. यहां सबसे पहले मरीज को प्राथमिक चिकित्सा दी जाएगी. इसके बाद ये जाना जाएगा कि मरीज को कौन सी ऐसी चोटें आईं है जो जानलेवा हैं. इसके बाद उसी दिशा में डॉक्टरों का काम शुरू होता है. मरीज को बेहतर तरीके से टेकल करने की कोशिश की जाती है. 

इसे और स्पष्ट करते हुए डॉ. गुप्ता ने बताया कि, मान लीजिए किसी मरीज को ट्रॉमा सेंटर लाया जाता है और वो बेहोशी की हालात में है. ऐसे में सबसे ज्यादा कॉमन होता है ऐयर पैसेज यानी कि सांस की नली का ब्लॉक होने का खतरा. इसके साथ कई और दिक्कतें भी हो सकती है. जैसे हमारी जीभ का पीछे जाना. पेट में जितना भी समान है या अम्ल है वो फेफड़ों में जा सकता है. ऐसी स्थिति में सबसे जरूरी होता है कि मरीज सांस लेता रहे. 

इसके बाद बारी आती है लंग्स की. ये पता करने की कोशिश की जाती है कि लंग्स यानी फेफड़ों में कितनी चोट आई है. तीसरी ध्यान देनी वाली बात होती है. खून का रिसाव. कैसे भी करके उसे जल्द से जल्द कंट्रोल किया जाना बेहद जरूरी है. इसे आईवी लाइन और आईवी फ्लूड के जरिए कंट्रोल किया जाता है. ये पूरा काम ट्रॉमा सर्जन करता है. 

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डॉ. गुप्ता कहते हैं कि अगर इस पूरी प्रक्रिया में कहीं भी गैप है यानी इस प्रक्रिया को फॉलो नहीं किया जाता तो इसे ट्रॉमा सेंटर नहीं कहा जा सकता है. यानी ट्रॉमा सेंटर में एक सिस्टेमेटिक ऑपरोच है जो मरीज को पूरी तरह से ठीक करने के लिए जरूरी है. 

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