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जब आप सो रहे थे अमेरिका में एक बड़ा फैसला हो गया, शेयर बाजार से गोल्ड के भाव पर तगड़ा असर पड़ेगा?

अमेरिका के केन्द्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ने इस साल लगातार तीसरी बार अपनी ब्याज दरों में 25 बेसिस प्वाइंट्स की कटौती की है.

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अमेरिका में ब्याज दरें घटने से शेयर बाजार और सोने के दाम पर असर होगा (फोटो क्रेडिट: Business Today)

10-11 दिसंबर की दरम्यानी रात जब आप गहरी नींद में सो रहे थे अमेरिका में एक फैसला लिया गया. वहां के सेंट्रल बैंक फेडरल रिजर्व ने 10 दिसंबर को दो दिन की मीटिंग का ब्यौरा जारी किया . भारतीय समय के मुताबिक रात 12.30-1 बजे के आसपास. फेडरल रिजर्व ने इस साल लगातार तीसरी बार अपनी ब्याज दरों में 25 बेसिस प्वाइंट्स की कटौती की है. जिस तरह से भारत का केन्द्रीय बैंक भारतीय रिजर्व बैंक मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी (MPC) की बैठक होती है वैसे ही अमेरिका का केन्द्रीय बैंक भी फेडरल रिजर्व ओपन मार्केट कमेटी (FOMC)  ब्याज दरों को लेकर फैसला करती है.

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अमेरिका में ब्याज दरें 3.50%–3.75% के दायरे में आ गई हैं. यह दर साल 2022 के बाद अमेरिका में सबसे कम ब्याज दर है. इसी साल सितंबर और अक्टूबर में हुई अपनी बैठक में फेड ने अपनी ब्याज दरों में 25-25 बेसिस प्वाइंट्स की कटौती की थी. कुल मिलाकर, फेड ने इस साल ब्याज दरों में 0.75% की कमी की है.

अमेरिका में ब्याज दरें घटने से भारत पर क्या असर होगा?

जानकारों का कहना है कि जब अमेरिका में दरें कम होती हैं, तो बैंक जमा और बॉन्ड पर मिलने वाला रिटर्न कम हो जाता है. इसका मतलब हुआ कि विदेशी निवेशक जो अब तक अमेरिका में निवेश कर रहे थे बेहतर रिटर्न की तलाश में भारत जैसे देशों में निवेश बढ़ा सकते हैं. भारत के शेयर बाजार, बॉन्ड मार्केट में निवेश बढ़ सकता है. इसके अलावा सोने की कीमतों में तेजी आ सकती है क्योंकि जब भी अमेरिका में ब्याज दरें घटती हैं सोना महंगा होता है. निवेशक सुरक्षित विकल्प के तौर पर सोना खरीदना शुरू कर देते हैं.

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आमतौर पर जब अमेरिका में ब्याज दरें घटती हैं तो भारत समेत दुनियाभर के शेयर बाजारों में तेजी देखने को मिलती है. हालांकि , लाइवमिंट की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि भारतीय शेयर बाजार में फेडरल रिजर्व की पॉलिसी पर ज्यादा असर पड़ने की संभावना नहीं है. इसकी वजह ये है कि शेयर बाजार में निवेश करने वाले लोग यह पहले से ही मानकर चल रहे थे कि अमेरिका में ब्याज दरें घटेंगी और शेयर बाजार इसी उम्मीद में जितना चढ़ना चाहिए करीब करीब उतना ऊपर जा चुका है. 

इक्विनॉमिक्स रिसर्च प्राइवेट लिमिटेड के फाउंडर और रिसर्च हेड जी चोक्कलिंगम ने इकोनॉमिक टाइम्स से कहा, "हमें नहीं लगता कि फेड के इस कदम का भारतीय शेयर बाजार पर कोई बड़ा प्रभाव पड़ेगा. आईपीओ की बाढ़ के कारण घरेलू बाजार पैसे की कमी से जूझ रहा है. शेयर बाजार में तेजी बनाए रखने के लिए आईपीओ की दौड़ थमनी जरूरी है." फेडरल रिजर्व की तरफ से ब्याज दरें घटने के बाद, डॉलर सूचकांक 0.25% गिरकर 98.54 पर आ गया, जबकि अमेरिका का 10 साल वाले बॉन्ड यील्ड में कोई खास बदलाव नहीं हुआ. इससे संकेत मिलता है कि भारतीय शेयर बाजार में फेडरल रिजर्व की नीति का हल्का असर देखने को मिल सकता है. 

वहीं, ब्रोकरेज फर्म Geojit Investments के चीफ इन्वेस्टमेंट स्ट्रैटेजिस्ट वीके विजयकुमार का कहना है कि फेड की डॉट-प्लॉट रिपोर्ट से पता चलता है कि अगले साल यानी 2026 में एक बार और ब्याज दरों में कटौती हो सकती है. साथ ही साल 2027 में भी एक कटौती की उम्मीद बनी हुई है. Dot Plot Report फेडरल रिजर्व की तरफ से जारी किया जाने वाला एक चार्ट होता है. इसमें फेडरल रिजर्व मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी के प्रमुख सदस्य यह दिखाते हैं कि आने वाले सालों में ब्याज दरें कहां होनी चाहिए.

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इस बार के चार्ट में फेड के भीतर ब्याज दरों को लेकर दी गई राय में काफी अंतर दिखा, क्योंकि यह फैसला 9-3 के वोट स्प्लिट से पास हुआ. माना जा रहा है कि साल 2019 के बाद पहली बार इतना बड़ा मतभेद देखने को मिला है. इससे साफ है कि आगे आने वाले सालों में ब्याज दरों को लेकर फेड अधिकारियों के बीच असहमति महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी.

विजयकुमार बताते हैं कि चेयरमैन जेरोम पॉवेल ने खुद कहा है कि फेड अभी और आर्थिक डेटा का इंतज़ार करेगा. इस तरह से अगली दर कटौती लगभग तय मानी जा रही है, लेकिन आर्थिक हालात कैसे बदलते हैं, उसी पर आगे की दिशा निर्भर करेगी. इसलिए शेयर बाजार इस फैसले को मिले जुले रूप में देख रहा है. इसका एक कारण और भी ये है कि अमेरिका के हालिया महंगाई डेटा सितंबर के बाद उपलब्ध ही नहीं है, क्योंकि सरकारी बंदी (शटडाउन) चल रहा है.

विजयकुमार का मानना है कि फेड के इस फैसले का भारतीय शेयर बाजार पर सीधा असर बहुत ज्यादा नहीं पड़ेगा. भारतीय बाजार अभी दो परेशानियों से जूझ रहा है . एक तरफ लगातार विदेशी निवेशक भारतीय शेयर बाजार से पैसे निकाल रहे हैं और दूसरी तरफ पिछले छह तिमाहियों से कंपनियों के वित्तीय नतीजे कमजोर रहे हैं. यही वजह है कि फेड की घोषणा का प्रभाव भारतीय बाजार पर बहुत सीमित रहने वाला है. शेयर बाजार के निवेशकों की नजर भारत और अमेरिका के बीच ट्रेड डील को लेकर जारी बातचीत पर बनी हुई है. 

 

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