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बैंकों ने 10.57 लाख करोड़ क्यों माफ कर दिये?

आरबीआई के मुताबिक पिछले पांच सालों में बैंकिंग सेक्टर द्वारा कुल 10.57 लाख करोड़ रुपये का कर्ज राइट ऑफ किया गया है

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बड़े पैमाने पर लोन राइट ऑफ होने से वजह से बैंकों का ग्रॉस एनपीए पिछले 10 साल में के निचले स्तर 3.9 फीसदी पर आ गया है

देश के सभी बैंकों ने वित्त वर्ष 2022-2023 के दौरान कुल 2.09 लाख करोड़ से ज्यादा के बैड लोन राइट ऑफ (bad loan write off) किए हैं. रिजर्व बैंक इंडिया ने समाचार पत्र इंडियन एक्सप्रेस को एक आरटीआई के जबाव में यह जानकारी दी है. आरबीआई के मुताबिक पिछले पांच सालों में बैंकिंग सेक्टर द्वारा कुल 10.57 लाख करोड़ रुपये का कर्ज राइट ऑफ किया गया है. बड़े पैमाने पर लोन राइट ऑफ होने से वजह से बैंकों का ग्रॉस एनपीए (GNPA) पिछले 10 साल में के निचले स्तर 3.9 फीसदी पर आ गया है. वित्त वर्ष 2018 में बैंकों का कुल एनपीए 10.21 लाख करोड़ रुपये था. एनपीए का ये आंकड़ा मार्च 2023 तक गिरकर 5.55 लाख करोड़ रुपये रह गया था. 

आगे बढ़ने से पहले जानते हैं कि एनपीए और लोन राइट ऑफ किसे कहते हैं . बैंक जो पैसा उधार देता है अगर उस पैसे के मूलधन या ब्याज की किस्त 90 दिनों तक वापस नहीं मिलती है तो उस लोन अकाउंट को नॉन परफॉर्मिंग एसेट यानी NPA मान लिया जाता है. एनपीए को बैड लोन या फंसा कर्ज भी कहा जाता है. जब इस तरह के फंसे कर्ज की कर्ज वापसी की उम्मीद नहीं रहती तो बैंक इस तरह के कर्जों को राइट ऑफ कर देते हैं यानी बट्टे खाते में डाल देते हैं. हालांकि, यह कर्जमाफी नहीं है क्योंकि बट्टे खाते में डालने के बाद बैंक डिफाल्टर से लोन की वसूली की कोशिश जारी रखते हैं.

अब समझते हैं कि बैंक अपने फंसे कर्जों को राइट ऑफ क्यों करते हैं. दरअसल एनपीए को बट्टे खाते में डालना बैंकों द्वारा बैलेंस शीट को साफ-सुधरा करने के लिए की जाने वाली एक नियमित प्रक्रिया का हिस्सा है. आरबीआई ने एक नोट में कहा था, “इस राइट-ऑफ़ का मुख्य उद्देश्य बैलेंस शीट को साफ करना और टैक्स बचाना है. इस तरह के लोन बैंकों के हेड ऑफिस द्वारा बट्टे खाते में डाले जाते हैं.  राइट-ऑफ़ से बैंक की टैक्स लायबिलिटी कम हो जाती है.”

आरबीआई के आंकड़ों के मुताबिक बैंकों ने वित्त वर्ष 2012-13 से अब तक 15 लाख 31 हजार 453 करोड़ रुपये की भारी भरकम रकम बट्टे खाते में डाली है. वहीं बट्टे खाते में डाले गए लोन की वसूली की बात करें तो यह काफी खराब रही है. आंकड़ों के मुताबिक वित्त वर्ष 2021 में बैंकों ने सिर्फ 30 हजार 104 करोड़ रुपये और वित्त वर्ष 2022 में महज 33 हजार 534 करोड़ वसूले हैं. इसी तरह वित्त वर्ष 2023 में बैंक अपने राइट ऑफ किये गए लोन में से सिर्फ 45 हजार 548 करोड़ रुपये वसूल पाने में सक्षम रहे हैं. आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले तीन वर्षों में राइट ऑफ किए गए 5 लाख 86 हजार 891 करोड़ लोन में से बैंक महज 1 लाख 9 हजार 186 करोड़ की वसूली कर पाए. इससे पता चलता है कि देश के सभी बैंक तीन साल की अवधि के दौरान अपने बट्टे खाते में डाले गए लोन का सिर्फ 18.60 फीसदी हिस्सा ही वसूल पाये.

वहीं, 28 जून 2023 को आरबीआई की छमाही फाइनेंशियल स्टेबिलिटी रिपोर्ट में कहा गया था कि आगे भी बैंकों के कुल एनपीए में गिरावट देखने को मिल सकती है. इसमें कहा गया था कि मार्च 2024 तक बैंकों का कुल एनपीए घटकर 3.6 फीसदी पर आ सकता है. आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने इस रिपोर्ट में जानकारी दी थी कि भारत में वित्तीय क्षेत्र मजबूत और काफी स्थिर है. देश में लोन की मांग लगातार बढ़ रही है. बैंकों का एनपीए घट रहा है और बैंकों के पास लोन देने के लिए पर्याप्त पैसा है. हालांकि इस रिपोर्ट में ये भी कहा गया था कि  यदि माइक्रो इकोनॉमिक माहौल खराब हुआ तो बैंकों का कुल एनपीए अनुपात  4.1 फीसदी और 5.1 फीसदी तक पहुंच सकता है.

 

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