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भारी रिटर्न देख इन प्लैटफॉर्म पर निवेश करने में है खतरा, पैसा तो डूबेगा ही, कोई शिकायत भी नहीं सुनेगा

अगर आपको कहीं भी तगड़ा रिटर्न मिल रहा है, तो इसका मतलब बहुत कुछ दांव पर लगा है. इसलिए किसी भी चीज में निवेश करने से पहले उसे परत दर परत अच्छे से समझ लेना चाहिए.

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ऑल्टरनेट इनवेस्टमेंट ऑप्शन के नाम से पॉपुलर इन इंस्ट्रूमेंट में रिटर्स के साथ-साथ रिस्क भी बहुत है. (साभार- Freepik)

निवेश के नाम पर हमारे दिमाग में शेयर मार्केट (Share Market), म्यूचुअल फंड (Mutual Fund), एफडी (FD), बॉन्ड (Bond) और गोल्ड का नाम आता है. मगर बीते कुछ समय से बाजार में निवेश के कुछ नए तरीके बाजार में आए हैं. इनमें पी2पी लेंडिंग (P2P Lending), फ्रैक्शनल ओनरशिप (Fractional Ownership), इनवॉइस डिस्काउंटिंग (Invoice Discounting), लीज और इनवेंट्री फाइनेंसिंग (Lease and Inventory Financing), ऑल्टरनेट डेट इंस्ट्रूमेंट्स, लिटिगेशन फाइनेंसिंग और स्टार्ट-अप इक्विटी जैसी चीजों का नाम आता है.

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ये विकल्प बाजार में ऑल्टरनेटिव इनवेस्टमेंट इंस्ट्रूमेंट के नाम से उपलब्ध हैं. इनमें निवेशकों को तगड़े रिटर्न माने कि 11 से लेकर 20-23 पर्सेंट रिटर्न तक का दावा किया जा रहा है. रिटर्न सुनकर आपके मन में भी लालच आ रहा है, तो सावधान हो जाइए. 

Payme के सीईओ और फाउंडर महेश शुक्ला ने हमें बताया, ‘इन इंस्ट्रूमेंट्स में निवेश करके यकीनन बढ़िया रिटर्न कमाया जा सकता है. लेकिन इनके नियम कानून भी कुछ तय नहीं हैं. निवेशकों को पैसे की जरूरत पड़ी तो तुरंत पैसे निकाल भी नहीं सकते. इसलिए ये नए जमाने के विकल्प पारंपरिक इनवेस्टमेंट ऑप्शन से काफी ज्यादा रिस्की हैं.’

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अगर आपका निवेश करने का मन है ही तो सबसे पहले इन्हें अच्छे से समझ लें. निवेश कर रहे हैं तो पूरा पैसा न लगाएं. सिर्फ थोड़े पैसे ही इनवेस्ट करें. बेहतर होगा कि फाइनेंशियल एडवाइजर से सलाह ले लें. उसके बाद ही कोई फैसला करें. Payme एक NBFC कंपनी है. बैंकों के अलावा कुछ प्राइवेट कंपनियां भी लोन बांटती हैं. उन्हें ही NBFC कहते हैं.

निवेशकों को कहीं भी पैसा लगाने से पहले एक बात मन में गांठ बांध लेनी चाहिए- “पैसा पेड़ पर नहीं उगता.’’ अगर आपको कहीं भी तगड़ा रिटर्न मिल रहा है, मतलब बहुत कुछ दांव पर लगा है. इसलिए किसी भी चीज में निवेश करने से पहले उसे परत दर परत अच्छे से समझ लेना चाहिए. आज हम आपको इन्हीं नए नवेले इंस्ट्रूमेंट्स के बारे में बताएंगे. साथ में इनके साथ छुपे हुए रिस्क के बारे में भी जानेंगे.

1. पी2पी लेंडिंग

P2P पीयर टू पीयर लेंडिंग का छोटा नाम है. इसका मतलब होता है आपस में ही उधार लेना-देना. इसमें बैंक या वित्तीय कंपनी का कोई पचड़ा नहीं होता. बाजार में ऐसे कई ऐप भी आ गए हैं जो उधार लेने वाले और देने वाले को आपस में मिलाते हैं. मिसाल के तौर पर आपको पैसों की जरूरत है. दूसरी तरफ एक शख्स है जिसके पास इफरात पैसे हैं और आपको कुछ समय के लिए ब्याज के बदले उधार दे सकता है. पी2पी लेंडिंग प्लैटफॉर्म ऐसे ही दो लोगों को आपस में मिलाने का काम करते हैं.

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अगर आपके पास कुछ भारी भरकम रकम है और आप उस पर कुछ रिटर्न कमाना चाहते हैं तो इस प्लैटफॉर्म के जरिए उधार देकर कमाई कर सकते हैं. इस तरह के लोन पर आमतौर पर 12 से 35 फीसदी तक की दर से ब्याज मिल जाता है. लोन की अवधि 3 साल से 36 महीनों तक की रहती है. पैसे देने के बदले 12 से 35 फीसदी का रिटर्न देखकर दिल गार्डन गार्डन हो गया तो जरा ठहर जाइए. इनवेस्ट करने से पहले इसके रिस्क भी समझ लीजिए.

रिस्क भी जान लीजिए

इन प्लैटफॉर्म पर अक्सर ऐसे यूजर आते हैं जिन्हें बैंक जैसी अन्य जगहों से उधार लेने में मुश्किलें आती हैं. P2P प्लैटफॉर्म पर आपको लोन मिलेगा या नहीं इसका फैसला आपके क्रेडिट स्कोर से नहीं बल्कि आपके सोशल मीडिया अकाउंट से तय होगा. जिस शख्स ने लोन के लिए अप्लाई किया है उसकी सोशल मीडिया एक्टिविटी, ऐप यूसेज जैसी चीजें ट्रैक होती हैं. इसे रिस्क प्रोफाइलिंग कहते हैं.

जैसे ही यूजर ऐप डाउनलोड करता है उसी समय से उसकी रिस्क प्रोफाइलिंग शुरू हो जाती है. यूजर जब तक लोन एप्लिकेशन पूरा नहीं करता है तब तक लगातार सोशल मीडिया पर उसकी गतिविधियों पर नजर रखी जाती है. थर्ड पार्टी से भी डेटा जुटाते हैं. इस तरह कर्ज लेने वाले शख्स का रिस्क प्रोफाइल तैयार किया जाता है. कुल मिलाकर आपका सारा डेटा पी2पी लेंडर के पास चला जाता है.

दूसरा और सबसे बड़ा रिस्क है पैसे डूबने का. ये लोन अनसिक्योरर्ड होते हैं. यानी लोन लेने वाले से गारंटी के नाम पर कुछ नहीं लिया जाता. इसलिए यहां पैसा डूबने की गुंजाइश अधिक होती है. कुछ पी2पी प्लैटफॉर्म पर ऐसे मामले देखे गए हैं जहां लोगों के पैसे वापस नहीं मिले. प्लैटफॉर्म, आपको ब्याज या मूलधन दिलाने की गारंटी नहीं लेते. हालांकि, कुछ प्लैटफॉर्म डिफॉल्ट के मामलों में पैसा वसूलने में और लीगल नोटिस फाइल करने का वादा भी करते हैं. लेकिन जरूरी नहीं कि उससे बात बन ही जाए.

2. लीज और इनवेंट्री फाइनैंसिंग

लीज फाइनैंसिंग एक और अन्य तरीका है, जो काफी पॉपुलर हो रहा है. कई बार बिजनेसेज को काम के लिए कुछ असेट या इक्विपमेंट चाहिए होते हैं. जैसे- बड़ी संख्या में ट्रक या गोदाम या कोई मशीन. मगर उनके पास इन चीजों को खरीदने के लिए तत्काल पैसे नहीं होते. ये बिजनेस ऐसे लोगों की तलाश में रहते हैं जो उन्हें ये सारी चीजें किराये पर दे सकें. 

जो लोग ऐसे बिजनेसेज को पैसे देने में दिलचस्पी रखते हैं उनसे पैसे इकट्ठे किए जाते हैं. इन पैसों को मैनेज करने के लिए एक कंपनी बनाई जाती है. इसे स्पेशल परपज वीकल (SPV) या लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप (LLP) कहते हैं. कंपनी निवेशकों के पैसे से किसी कंपनी के लिए उसकी जरूरत के हिसाब से असेट खरीदती है और बिजनेसेज को किराये पर देती है. कंपनी से मिलने वाले किराये को निवेशकों के इनवेस्टमेंट के हिसाब से उन्हें बांट दिया जाता है. 

अमूमन लीज का कॉन्ट्रैक्ट 2 से 3 सालों के लिए चलता है. प्लैटफॉर्म भी करीबन 2 फीसदी का सर्विस चार्ज लेते हैं. ये चार्ज निकालने के बाद भी निवेशकों को 12 पर्सेंट का रिटर्न मिल सकता है. कुछ मामलों में प्लैटफॉर्म लॉक- इन पीरियड भी तय करते हैं. माने उस समय से पहले पैसे नहीं मिलेंगे.

रिस्क भी समझ लीजिए

इस निवेश पर आपको मिलने वाला रिटर्न एक अनुमान भर है. मतलब जितना कहा गया है उतना रिटर्न मिलेगा इसकी गारंटी नहीं है. इस बात की भी कोई गारंटी नहीं होती कि कंपनी समय पर पैसा लौटा ही देगी. अगर किसी स्थिति में कंपनी डीफॉल्ट करती है तो लीज पर दिए गए सामान को बेचकर पैसा निकालने की कोशिश होगी. मगर जरूरी नहीं कि उससे पूरे नुकसान की भरपाई हो जाए. ऐसी स्थिति में लीज के अंत में मिलने वाला रिटर्न अनुमान से कम भी रह सकता है.

3. फ्रैक्शनल कमर्शियल ओनरशिप

आजकल निवेशकों के पास कम निवेश में भी बड़े कमर्शियल प्रोजेक्ट्स में भी हिस्सेदारी लेने का रास्ता है. इन्हें फ्रैक्शनल कमर्शियल ओनरशिप (Fractional Commercial Ownership) कहते हैं. कई फिनटेक प्लैटफॉर्म ये सुविधा दे रहे हैं. आप जितना निवेश करेंगे उसी अनुपात में प्रॉपर्टी में आपको हिस्सेदारी मिलेगी.

आप जैसे और निवेशकों से पैसे जुटाने के बाद एक कमर्शियल प्रॉपर्टी बनती है. उसे किराये पर दिया जाता है. किराये से जो कमाई होती है उसे निवेशकों में बांटा जाता है. इस तरह निवेशक इन कमर्शियल प्रॉपर्टी में नाम भर की हिस्सेदारी पर भी अच्छा रिटर्न कमा सकते हैं.

रिस्क भी हैं साथ में

सुनने में ये जितना आकर्षक है उतना ही रिस्की भी है. कई बार ऐसा होता है कि प्लेटफॉर्म पर दिख रही प्रॉपर्टी फर्जी हो. अगर सावधानी नहीं दिखाई तो कोई आपकी मेहनत की कमाई लेकर फुर्र भी हो सकता है. आप इसकी कहीं शिकायत भी नहीं कर सकते.

इस तरह की कमर्शियल प्रॉपर्टी की कमाई सिर्फ कंपनियों से मिलने वाले किराये से होती है. ऐसा भी हो सकता है कि कंपनियां अपना कॉन्ट्रैक्ट रिन्यू न कराएं और प्रॉपर्टी लंबी समय तक खाली रह जाए. इस तरह आपका पैसा फंस सकता है.

4. इनवॉइस डिस्काउंटिंग

सामान या सर्विस बेचने वाले वेंडर्स को पेमेंट मिलने में काफी समय लग जाता है. ऐसे में उन्हें आगे बिजनेस के लिए नगदी की दिक्कत हो जाती है. वेंडर ऐसा रास्ता ढूंढते हैं जहां उन्हें बिल के बदले एडवांस में कैश मिल जाए. मार्केट में ऐसे कई प्लेटफॉर्म हैं जो उनकी ये दिक्कत दूर कर रहे हैं. ये प्लेटफॉर्म वेंडर्स को ऐसे इनवेस्टर्स से मिलाते हैं जो बकाया बिल के बदले उन्हें एडवांस देने को तैयार होते हैं.

इन वेंडर्स के इनवॉयस लाखों- करोड़ों रुपयों में होते हैं. रिटेल इनवेस्टर इस बिल का कुछ हिस्सा खरीद सकते हैं. यह निवेश 30 से 90 दिनों का होता है. इसमें 50,000 से 1 लाख रुपये तक का निवेश कर सकते हैं. जहां आपको करीबन 11-15 फीसदी रिटर्न का वादा किया जाता है.

ये हैं रिस्क

इस मामले में जरूरी नहीं कि निवेशकों को तय तारीख के दिन पैसे मिल ही जाएं. हो सकता है वेंडर का खरीदार पेमेंट देने में देरी कर दे. ये भी हो सकता है कि खरीदार वेंडर के सामान या सर्विस से संतुष्ट ना हो और आधी अधूरी पेमेंट ही दे. निवेशक समय से पहले अपने पैसे वापस नहीं ले सकते. डील में जो तारीख दी गई है तब तक निवेशित रहना ही होगा.

हमें ये भी मालूम है कि पूरी स्टोरी में रिस्क से ज्यादा आपकी नजर रिटर्न के नाम पर दिख रहे मोटे नंबरों पर गई होगी. आप में से कुछ ने तो ऐप भी डाउनलोड कर लिए होंगे. लेकिन हमारा काम है आपको आगाह करना. सो एक बार फिर आपको बता देते हैं कि इस तरह के इंस्ट्रूमेंट में किस तरह का रिस्क है.

  • इन ऑल्टरनेटिव इनवेस्टमेंट्स के तरीकों में कई तरह के रिस्क भी हैं. जिन्हें निवेशकों को बिल्कुल अनदेखा नहीं करना चाहिए. इन प्लैटफॉर्म्स पर रजिस्टर्ड सभी कंपनियां भरोसेमंद नहीं होतीं.
  • कई बार पता चलता है कि जो कंपनी ज्यादा रिटर्न दे रही है वो हाल ही में इस बिजनेस में उतरी है. रिटेल निवेशक के लिए सबसे बड़ा रिस्क ये है कि इस तरह के इंस्ट्रूमेंट्स में गारंटी नहीं होती कि आपको पैसे मिलेंगे ही.
  • ऐसी सुविधाएं देने वाले प्लैटफॉर्म उधार लेने वाली पार्टी की पूरी तरह जांच पड़ताल का दावा भले ठोकते हों, फिर भी निवेशकों को उनके रिस्क आंकने के तरीके पर आंख मूंद कर भरोसा नहीं करना चाहिए.
  • डील की मैच्योरिटी अवधि खत्म होने तक कोई पैसे नहीं निकाल सकता. यानी इमरजेंसी में पैसे निकालना भी आसान नहीं है. जबकि, शेयर, गोल्ड, बॉन्ड जैसे विकल्पों में आसानी से बेचकर नगदी हासिल की जा सकती है.
  • ऑल्टरनेटिव स्पेस इस मामले में काफी अलग है. शेयर बाजार की तरह निवेश भुनाने के लिए यहां सेकंड्री मार्केट नहीं होते. ये भी जरूरी नहीं कि आपको समय पर कोई खरीदार मिल ही जाए. इसलिए ऐसे इस तरह प्रॉडक्ट में बहुत ज्यादा निवेश करने से बचना चाहिए.
  • डील चाहे कितनी भी आकर्षक लगती हो मगर हकीकत यही है कि ये सभी प्रॉडक्ट बाजार में बिल्कुल नए हैं. वैसे तो अभी तक इन प्लैटफॉर्म्स पर कोई बड़ा डिफॉल्ट सामने नहीं आया है. चूंकि ये प्लैटफॉर्म ज्यादा लंबे समय से सर्विस नहीं दे रहे हैं इसलिए ये नहीं पता चल सका है कि अगर पैसे डूबते हैं तो रिकवरी का तरीका क्या है.
  • सबसे बड़ी दिक्कत है कोई नियामकीय निगरानी का न होना. इनकी कोई भी एक्टिविटी न सेबी की निगरानी के दायरे में आती है और न RBI के. अगर कुछ गलत होता है तो निवेशकों के पास शिकायत के लिए कोई जगह नहीं होगी. लीज और इनवेंट्री फाइनैंसिंग या इनवॉयस डिस्काउंटिंग जैसे इंस्ट्रूमेंट जैसे स्पेस में भारी घाटा होने की आशंका रहती है.
  • पारंपरिक विकल्पों के अलावा अलग से चाहें तो इनमें जरूर पैसे लगा सकते हैं. नए जमाने के इन विकल्पों को फिक्स इनकम का दूसरा जरिया समझा जा सकता है मगर ये समझना कि ये फिक्स्ड डिपॉजिट की जगह ले सकते हैं ये गलत है. बहुत हद तक मुमकिन है कि ये आपका पूरा पैसा इसमें डूब जाए.

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