मां के लिए संभव नहीं होगी मुझसे कविता अमर चिउंटियों का एक दस्ता मेरे मस्तिष्कमें रेंगता रहता है मां वहां हर रोज चुटकी-दो-चुटकी आटा डाल देती है मैं जब भीसोचना शुरू करता हूं यह किस तरह होता होगा घट्टी पीसने की आवाज मुझे घेरने लगती हैऔर मैं बैठे-बैठे दूसरी दुनिया में ऊंघने लगता हूं