दुल्ला भट्टी न होते तो लाहौर, लाहौर न होता. सलीम कभी जहांगीर न हो पाता. अकबर कोभांड न बनना पड़ता. मिर्जा-साहिबा के किस्सों में संदल बार न आता. पंजाब वाले दुल्लेदी वार न गाते और जानो कि लोहड़ी भी न होती. वाघा बॉर्डर से लगभग 200 किलोमीटर पार,पाकिस्तान के पंजाब में पिंडी भट्टियां है. वहीं लद्दी और फरीद खान के यहां 1547में हुए राय अब्दुल्ला खान, जिन्हें दुनिया अब दुल्ला भट्टी बुलाती है. राजपूतमुसलमान थे वो. उनके पैदा होने से चार महीने पहले ही उनके दादा संदल भट्टी और बापको हुमायूं ने मरवा दिया था. खाल में भूसा भरवा के गांव के बाहर लटकवा दिया. वजह येकि मुगलों को लगान देने से मना कर दिया था. आज भी पंजाब वाले हुमायूं की बर्बरताके किस्से कहते हैं. जानिए दुल्ला भट्टी की पूरी कहानी.