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पटौदी, स्टीव, इमरान : क्रिकेट के तीन सबसे बेहतरीन कमबैक

क्रिकेट की दुनिया उन्हें सबसे महान कप्तानों के तौर पर जानती है, लेकिन उनकी ज़िन्दगी में भी हार के क्षण आए थे. पढ़िए, कैसे उन्होंने हार को बदला जीत में

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4 जून 2016 (Updated: 4 जून 2016, 10:19 AM IST) कॉमेंट्स
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यह आलेख क्रिकेट को चाहनेवाले लेखक कमलजीत सिंह की कलम से.


पेरिस. फ्रेंच अोपन. रोलेंड गैरोस. राफेल नडाल. पिछले एक दशक से ये चारों नाम एक-दूसरे के पर्यायवाची से बन गए थे. इसीलिए जब इस हफ़्ते पढ़ा कि कलाई की चोट के चलते राफेल नडाल ने अपना नाम फ्रेंच ओपन से हटा लिया है, बहुत निराशा हुई. फ्रेंच ओपन बिना नडाल वैसा ही है जैसा ब्लैक लेबल बिना नशे के अौर रोलिंग स्टोंस का म्यूजिक बिना गिटार के. याने एकदम बे-स्वाद.

मगर नडाल ने कहा है कि ये अंत नहीं है. मतलब ये कि एक और कमबैक अभी होना बाकी है. एक और इसलिए क्योंकि नडाल ने एक के बाद एक बहुत सारी इंजरी झेली हैं और हर बार वापसी की है. सिर्फ वापसी ही नहीं की, 2013 के कमबैक के बाद नडाल ने नंबर एक की रैंकिंग भी हासिल की थी.

तो चलिए, आज नडाल के बहाने उन चुनिंदा क्रिकेटर्स के बारे में बात करते हैं, जिनके कमबैक की कहानियां मिसाल के तौर पर जानी जाती हैं. वैसे तो क्रिकेट एक टीम स्पोर्ट है, मगर सब जानते हैं इसमें भी खेल की बारीकियों से ज्यादा बातें अक्सर खिलाड़ियों के बारे में होती हैं.

1. चीता, जिसने भारत को मैदान पर लड़ना सिखाया

सबसे पहले बात मंसूर अली खान पटौदी, उर्फ़ नवाब पटौदी की. बचपन से ही पटौदी बल्लेबाज़ी में बहुत अच्छे थे. उन्होंने इंग्लैंड की ससेक्स काउंटी की ओर से खेलते हुए 16 साल की उम्र में अपने फर्स्ट क्लास करियर की शुरुआत की. इसके बाद वे प्रतिष्ठित ऑक्सफोर्ड क्रिकेट टीम के पहले भारतीय कप्तान बने. इंग्लैंड क्रिकेट का गढ़ था अौर वहां चमकने वाला खिलाड़ी तब सीधा क्रिकेट संसार की नज़रों में चढ़ जाता था. उन दिनों इस युवा भारतीय बल्लेबाज़ की बल्लेबाज़ी की चर्चा हर अोर थी. लेकिन 20 साल की उम्र में इंग्लैंड के होव में उनकी कार का एक्सीडेंट हुआ, कार का टूटा हुआ कांच उनकी आंख में घुस गया था. मंसूर अली खान पटौदी की दाईं आंख हमेशा के लिए खराब हो गई. जवान पटौदी ने तब तक अपना पहला टेस्ट भी नहीं खेला था.

पटौदी बल्लेबाज़ी में अपने हैण्ड-आई कॉर्डिनेशन के लिए जाने जाते थे. अचानक एक आंख की रौशनी चले जाने से पटौदी को बहुत दिक्कतें हुईं. एक ही आंख से दिखाई देने के चलते वे चीज़ों की सही दिशा अौर गति का अंदाजा ही नहीं लगा पा रहे थे. रोज़मर्रा के जीवन में ऐसा होता कि वे जग से गिलास में पानी डालते, अौर पानी टेबल पर गिर जाता. सिगरेट जलाने की कोशिश करते अौर लाइटर सिगरेट से आधा इंच दूर रह जाता. क्रिकेट पिच पर तो यह अौर भी मुश्किल था. उन्हें गेंद की तेज़ी अौर सही दिशा का कोई अंदाजा ही नहीं हो पा रहा था. मगर नवाब पटौदी ने हार नहीं मानी और एक्सीडेंट के छः महीने के भीतर ही अपना टेस्ट डेब्यू किया. तीसरे ही टेस्ट में इंग्लैंड के खिलाफ मद्रास में 103 रन बनाकर उन्होंने इस फैसले को सही भी साबित किया. कुछ ही दिनों बाद, वेस्टइंडीज़ में कप्तान नारी कांट्रेक्टर के पिच पर घायल होने के चलते, सिर्फ़ 21 साल 77 दिन की उम्र में मंसूर अली खान पटौदी इंडिया के टेस्ट कप्तान बन गए. आज भी पटौदी भारतीय टीम के सबसे जवान कप्तान होने का खिताब अपने नाम रखते हैं.

एक आंख खराब होने के बावजूद पटौदी ने 46 टेस्ट मैच खेलकर 6 सेंचुरी और 17 हाफ सेंचुरी की मदद से 2800 टेस्ट रन बनाए हैं. वो भी 35 के एवरेज से. पटौदी ने अपनी कप्तानी में भारत को पहली बार लड़ना अौर जीतना सिखाया. देश में तेज़ गेंदबाज़ों का अभाव देखकर उन्होंने मशहूर 'स्पिन चौकड़ी' की रचना की. फिर इसी रणनीति को साथ लेकर भारत ने 71 में वाडेकर की कप्तानी में इंग्लैंड अौर वेस्ट इंडीज़ में पहली सीरीज़ विजय हासिल की. पटौदी का क्षेत्ररक्षण भी मशहूर रहा, उन्हें खेलते देखने वालों का कहना है कि वे किसी चीते सी फुर्ती से गेंद पर लपकते थे. याद रखिए, यहां हम बात कर रहे हैं एक ऐसे क्रिकेटर की जिसके पास बस एक ही आंख थी. अौर हम उस वक्त की बात कर रहे हैं जब तेज़ गेंदबाजों को मैदान पर कितने भी बाउंसर्स फेंकने की छूट होती थी. पिचें रात को ढकी नहीं जाती थीं, और हेलमेट भी प्रचलन में नहीं आए थे. शायद इसीलिए नवाब पटौदी को 'टाइगर' पटौदी भी कहा जाता है, सच में उनका जिगरा टाइगर जैसा था.

https://www.youtube.com/watch?v=hCYG6IpHbGo

2. भाई ने जगह छीनी, पर वापस आकर टीम को बनाया विश्वविजेता

आस्ट्रेलियाई कप्तान स्टीव वॉ का करियर भी कमबैक से गुजरा है. स्टीव वॉ ने इंटरनेशनल क्रिकेट की शुरुआत एक सामान्य से खिलाड़ी के रूप में की थी. लोग उन्हें उनकी बल्लेबाज़ी के लिए कम, अौर गेंदबाज़ी के लिए ज्यादा जानते थे. कोई नहीं जानता था कि ये अजीब सी बॉलिंग करने वाला खिलाड़ी स्टीव वॉ एक दिन दुनिया के सबसे नामी कप्तानों में से एक माना जाएगा. स्टीव वॉ ने अपने फर्स्ट क्लास करियर की शुरुआत 1984 में साउथ वेल्स की तरफ से खेलते हुए की. और इसके करीब एक साल बाद उन्होंने 1985 के बॉक्सिंग डे टेस्ट मैच से अपना टेस्ट करियर शुरू किया. स्टार्टिंग बहुत ही खराब रही. अपनी पहली 4 इनिंग्स में वॉ ने 26 रन बनाए. इसके बाद न्यूजीलैंड के टूर के लिए सेलेक्ट किया गया. वहां भी वॉ कुछ खास नहीं कर पाए. उनका बैटिंग एवरेज रहा बस 17.4 का. लेकिन सेलेक्टर्स ने साथ नहीं छोड़ा. स्टीव वॉ को और मौके मिले. लेकिन एक साल के बाद उनकी बैटिंग एवरेज थी 12.56 की.

वनडे क्रिकेट में हालात थोड़े बेहतर थे. 1987 की जीत में स्टीव वॉ ने बहुत योगदान दिया. 55.66 की एवरेज से 167 रन बनाए और 11 विकेट भी लिए. मगर फिर भी टेस्ट में इनकंसिस्टेंसी बनी रही. चयनकर्ताअों ने आखिर 1990-91 की एशेज सीरीज से उनको ड्रॉप कर दिया. स्टीव वॉ के लिए शायद ये काफी बड़ा झटका था. इस झटके से बड़ी बात थी कि उनके ही जुड़वां भाई मार्क वॉ को उनकी जगह सेलेक्ट किया गया. मार्क वॉ ने भी मौके का पूरा फायदा उठाया और डेब्यू पर ही सेंचुरी ठोक दी. स्टीव वॉ फिर भी वन-डे क्रिकेट में ऑस्ट्रेलिया के लिए खेलते रहे. बैटिंग से ज्यादा उनकी बॉलिंग की वजह से उनकी जगह टीम में बनी रही. 18 महीने टेस्ट टीम से बाहर रहने के बाद वॉ ने टेस्ट क्रिकेट में कमबैक किया. उन्हें 1992-93 में वेस्टइंडीज के खिलाफ खेलने के लिए सेलेक्ट किया गया.

https://www.youtube.com/watch?v=-rOUKJiSmds

वॉ ने सिडनी के टेस्ट में सेंचुरी लगाई और टीम में अपनी जगह बचाई. इसके बाद कुछ साल तक उनका टेस्ट क्रिकेट में ठीक-ठाक करियर रहा. बात बनी 1995 की फ्रेंक वॉरेल ट्राफी में. जब स्टीव वॉ ने 9 घंटे लगातार बैटिंग की और 200 रन की जबरदस्त इनिंग खेलकर दुनिया को बताया कि क्यों वो एक स्पेशल टैलेंट है. इसके बाद तो स्टीव वॉ का करियर बदल ही गया. उन्होंने 168 टेस्ट मैच खेले. ये रिकॉर्ड था, जब तक सचिन ने इसे नहीं तोड़ा. स्टीव वॉ टेस्ट क्रिकेट में 10,000 से ज्यादा रन बनाने वाले 12 खिलाडियों में से एक हैं. इनकी कप्तानी में ऑस्ट्रेलिया ने लगातार 15 टेस्ट मैच जीते. 1999 के क्रिकेट वर्ल्ड कप में ऑस्ट्रेलिया के कैप्टन स्टीव वॉ ही थे. स्टीव वॉ ने शुरुआत भले ही खराब की हो, टीम से बाहर भी निकले थे. लेकिन ऐसा कमबैक किया कि 32 सेंचुरी और 50 हाफ सेंचुरी के साथ करियर की एवरेज रही 51.06. साथ ही साथ 92 विकेट भी लिए. स्टीव वॉ सही मायने में महान क्रिकेटर हैं.

3. रिटायरमेंट से वापस आया कप्तान, टीम को विश्वकप जिताया

पकिस्तान क्रिकेट का सबसे बड़ा नाम हैं इमरान खान. उन्हें रिटायर हुए 24 साल से ऊपर हो गए लेकिन उनकी लोकप्रियता में आज भी कोई कमी नहीं आई है. उनके करियर की एक खास बात है जो कम ही फैंस को पता होगी. इमरान खान दरअसल उन क्रिकेटर्स में से एक हैं जिन्होंने रिटायरमेंट के बाद इंटरनेशनल क्रिकेट में वापसी की. फर्क ये है कि बाकी क्रिकेटर्स वापसी के बाद अपने करियर का मजाक बना लेते हैं, मगर इमरान खान ने वापसी के बाद भी वेस्टइंडीज के टूर पर 3 टेस्ट मैत्च में 23 विकेट लेकर मैन ऑफ द सीरीज का अवॉर्ड जीता था. इमरान खान ने सिर्फ कमबैक ही नहीं किया बल्कि पकिस्तान को 1992 का वर्ल्ड कप भी जिताया. 1992 का वर्ल्ड कप अॉस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में खेला गया था. क्रिकेट में रुचि रखने वाले जानते हैं कि अॉस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड की पिचों पर एशियाई टीमों के बैट्समैन कैसा डांस करते हैं. जब बॉल 140-150 की स्पीड से आती है और टप्पा खाकर सीधे सर फोड़ने की दिशा में बढ़ती है तो इंडिया, पाकिस्तान, श्रीलंका और बांग्लादेश के बल्लेबाज़ हुक शॉट खेलने की कम कोशिश करते हैं अौर अपने आप को बचाने की ज्यादा कोशिश करते हैं.

ऐसे हालात में एक एशियन टीम का अॉस्ट्रेलिया वर्ल्डकप जीतना बहुत बड़ी बात थी. उसके ऊपर पाकिस्तानी टीम का बैटिंग लाइनअप बहुत कमजोर था. इंजमाम ने कुछ ही दिन पहले डेब्यू किया था. आगे जाकर पाकिस्तानी बल्लेबाज़ी के सितारे बने मोहम्मद यूसुफ अभी इंटरनेशनल क्रिकेट से दूर थे और यूनिस खान तो अभी 15 साल के बच्चे थे. ऐसे मौके पर इमरान ने खुद को बैटिंग लाइनअप में प्रमोट किया. साबित किया कि क्यों उन्हें दुनिया के बेस्ट ऑलराउंडर में गिना जाता है. 39 साल की उम्र में इमरान ने पाकिस्तान को इकलौता वर्ल्ड कप जिताया. टूर्नामेंट इतना ड्रेमैटिक था कि आखिरी विकेट भी इमरान ने ही लिया और इंग्लैंड को 22 रन से हराया. इमरान खान का टेस्ट क्रिकेट में बैटिंग एवरेज है 37.69 का, और बॉलिंग एवरेज 22.81. वनडे क्रिकेट में उनका बैटिंग एवरेज है 33.41 की और बॉलिंग एवरेज है 26.61. उन्होंने टेस्ट में 362 विकेट लिए हैं. और वनडे में 182 विकेट. सच में इमरान एक खास क्रिकेटर हैं और पाकिस्तान के महानतम कप्तान. आजकल इमरान पाकिस्तान की पॉलिटिक्स में मसरूफ़ हैं. लेकिन वो हमेशा अपनी क्रिकेट लीडरशिप के लिए याद किया जाएंगे.

https://www.youtube.com/watch?v=TdZMHedsRZQ

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